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दवाओं के कारण होनेवाली किडनी की समस्याएं

दवाओं के कारण होनेवाली किडनी की समस्याएं

  1. दवाइँ लेने से, शरीर के अन्य अंगों के मुकाबले किडनी को नुकसान होने का डर क्यों रहता है?
  2. किडनी को नुकसान पहुँचनेवाली मुख्य दवाईयां
  3. क्या दर्दशामक दवाओं से प्रत्येक मरीज की किडनी खराब होने का खतरा रहता है?
  4. दर्दशामक दवाओं से किडनी खराब होने का खतरा कब रहता है?
  5. किडनी डिजीज के मरीजों में कौन सी दर्दशामक दवा सबसे अधिक सुरक्षित है?
  6. बहुत से मरीजों को हृदय की तकलीफ के लिए हमेशा एस्पीरीन लेने की सलाह दी जाती है, तो क्या यह दवा किडनी को नुकसान पहुँचा सकती है?
  7. क्या दर्दशामक दवाओं से खराब हुई किडनी फिर से ठीक हो सकती है ?
  8. ज्यादा समय तक दर्दशामक दवाओं का सेवन करने के कारण किडनी पर होनेवाले कुप्रभाव का शीघ्र निदान किस प्रकार किया जाता है?
  9. दर्द निवारक दवा से कैसे किडनी को खराब होने से बचाया जा सकता है?

विभिन्न दवाओं के कारण किडनी को क्षति पहुचना आम समस्या है।

दवाइँ लेने से, शरीर के अन्य अंगों के मुकाबले किडनी को नुकसान होने का डर क्यों रहता है?

दवाइँ के सेवन से किडनी को नुकसान होने की संभावना ज्यादा रहने के दो मुख्य कारण हैं:

  1. किडनी अधिकांश दवाओं को शरीर से बाहर निकालती है। इस प्रक्रिया के दौरान कई दवाइँ या उनके रूपान्तरित पदार्थों से किडनी को नुकसान हो सकता है।
  2. हृदय से प्रत्येक मिनट में निकलने वाले खून का पाँचवां भाग किडनी में जाता है। कद और वजन के अनुसार पुरे शरीर में सबसे ज्यादा खून किडनी में जाता है। इसी कारण किडनी को नुकसान पहुँचनेवाली दवाईयाँ तथा अन्य पदार्थ कम समय में एवं अधिक मात्रा में किडनी में पहुँचते हैं, जिसके कारण किडनी को नुकसान होने की संभावना बढ़ जाती है।

किडनी को नुकसान पहुँचनेवाली मुख्य दवाईयां

1. दर्दशामक दवाइँ (Pain Killer):

शरीर और जोड़ों में छोटे-मोटे दर्द के लिए डॉक्टर की सलाह के बिना दर्दशामक दवाइँ लेना आम चलन बन गया है। इस तरह अपने आप दवाइँ लेने के कारण खराब होने के मामलों में ये दर्दशामक दवाईयाँ सबसे अधिक जिम्मेदार होती हैं।

दर्दशामक दवाइँ क्या हैं? इनमें कौन-कौन सी दवाईयाँ शामिल हैं?

दर्द रोकने और बुखार उतारने में प्रयोग की जानेवाली दवाओं को दर्दशामक (Nonsteroidal anti inflammatory drugs - NSAIDs) दवाइँ कहते हैं। इस प्रकार की ज्यादातर इस्तेमाल की जानेवाली दवाइयें में आइब्यूप्रोफेन, कीटोप्रूफेन, डाइक्लोफेनाक सोडियम, नीमेसुलाइड इत्यादि दवाईयाँ हैं।

दवाइँ की वजह से किडनी खराब होने का मुख्य कारण दर्दशामक दवायाँ हैं।

क्या दर्दशामक दवाओं से प्रत्येक मरीज की किडनी खराब होने का खतरा रहता है?

नहीं, डॉक्टर की सलाह के अनुसार सामान्य व्यक्ति में उचित मात्रा और समय के लिए ली गई दर्दशामक दवाइँ का उपयोग पूरी तरह से सुरक्षित होता है। पर यह ध्यान रखना चाहिए की एमाइनोग्लाईकोसाईड्स (एक विशेष एंटीबायोटिक) के बाद दर्द निवारक दवाएँ दूसरे स्थान पर है जिनसे किडनी ख़राब हो सकती है।

दर्दशामक दवाओं से किडनी खराब होने का खतरा कब रहता है?

  • डॉक्टर की देखरेख के बिना लम्बे समय तक ज्यादा मात्रा में दवाइँ का उपयोग करने से किडनी खराब होने का खतरा ज्यादा रहता है।
  • लम्बे समय तक ऐसी दवा का इस्तेमाल करने, जिसमें कई दवाएँ मिली हों उनसे किडनी को क्षति पहुँच सकती है।
  • बड़ी उम्र, किडनी डिजीज, डायबिटीज और शरीर में पानी की मात्रा कम हो तो ऐसे मरीजों में दर्दशामक दवाईयो का उपयोग खतरनाक हो सकता है।

किडनी डिजीज के मरीजों में कौन सी दर्दशामक दवा सबसे अधिक सुरक्षित है?

किडनी डिजीज के मरीजों में पैरासिटामॉल अन्य दर्दशामक दवाओं से अधिक सुरक्षित है।

बहुत से मरीजों को हृदय की तकलीफ के लिए हमेशा एस्पीरीन लेने की सलाह दी जाती है, तो क्या यह दवा किडनी को नुकसान पहुँचा सकती है?

ह्रदय की तकलीफ में एस्पीरीन नियमित परन्तु कम मात्रा में लेने की सलाह दी जाती है, जो किडनी के लिए नुकसानदायक नहीं होती है।

क्या दर्दशामक दवाओं से खराब हुई किडनी फिर से ठीक हो सकती है ?

जब दर्दशामक दवाइँ का उपयोग अल्प समय तक करने से किडनी अचानक खराब हो गई हो, तब उचित उपचार और दर्दशामक दवा बंद करने से किडनी, फिर से ठीक हो सकती है।

मनमाने तरीके से ली गई दर्दशामक दवाईयाँ किडनी के लिए खतरनाक हो सकती हैं।

बड़ी उम्र के कई मरीजों को जोड़ों के दर्द के लिए नियमितरूप से, लंबे समय (सालों) तक दर्दशामक दवाइँ लेनी पड़ती है। ऐसे कुछ मरीजों की किडनी इस तरह धीरे-धीरे खराब होने लगती है की फिर से ठीक न हो सके। ऐसे मरीजों को किडनी की सुरक्षा के लिए दर्दशामक दवाइँ डॉक्टर की सलाह और देखरेख में ही लेनी चाहिए।

ज्यादा समय तक दर्दशामक दवाओं का सेवन करने के कारण किडनी पर होनेवाले कुप्रभाव का शीघ्र निदान किस प्रकार किया जाता है?

पेशाब की जाँच में यदि प्रोटीन जा रहा हो, तो यह किडनी पर कुप्रभाव की सर्वप्रथम और एकमात्र निशानी हो सकती है। किडनी ज्यादा खराब होने पर खून की जाँच में क्रीएटिनिन की मात्रा बढ़ी हुई मिलती है।

दर्द निवारक दवा से कैसे किडनी को खराब होने से बचाया जा सकता है?

दर्द निवारक दवाओं से किडनी की क्षति को रोकने के लिए सरल उपाय निम्नलिखित हैं:

  • उच्च जोखिम जैसे मधुमेह, उच्च रक्तचाप आदि से पीड़ित व्यक्तियों में एन. एस. ए. आई. डी. (NSAID ) के प्रयोग से बचें।
  • दर्द निवारक दवाओं का अंधाधुंध उपयोग न करें तथा ओ. टी. सी. दर्द निवारक दवाओं का प्रयोग न करें।
  • जब लम्बी अवधि के लिए एन. एस. ए. आई. डी. (NSAID ) जरुरी हो तो उसे चिकित्सक की सख्त निगरानी में ही लिया जाना चाहिए।
  • एन. एस. ए. आई. डी. की खुराक और उपचार की अवधि को तय सीमा में ही रखें।
  • लम्बी अवधि के लिए बहुत सारी दर्द निवारक दवाओं के मिश्रण के संयोजन से बचें।
  • प्रतिदिन पर्याप्त मात्रा में तरल पदार्थों का सेवन किडनी में उचित मात्रा में रक्त की आपूर्ति बनाये रखने के लिए और किडनी को नुकसान से बचाने के लिए महत्वपूर्ण होता है।
  • अधिक उम्र, डायबिटीज और शरीर में पानी की मात्रा कम हो, तब दवाओं से किडनी पर विपरीत प्रभाव पड़ने का भय अधिक रहता है।

1. एमाइनोग्लाईकोसाईड्स:

एमाइनोग्लाईकोसाईड्स, एंटीबायोटिक दवाओं का एक समूह है जिसका उपयोग चिकित्सा के लिए प्रायः किया जाता है। परन्तु यह किडनी को क्षति पहुँचाने का एक आम कारण है। प्रायः किडनी को क्षति, चिकित्सा की शुरुआत के 7 - 10 दिनों के बाद होती है। इस समस्या का निदान प्रायः नहीं हो पाता क्योंकि पेशाब की मात्रा में कोई बदलाव नहीं होता है। एमाइनोग्लाईकोसाईड्स के कारण किडनी खराब होने का खतरा बड़ी उम्र में, शरीर में पानी की कमी होने पर, पहले से ही कोई किडनी की बीमारी होने पर, पौटेशियम और मैग्नेशियम की कमी होने पर लम्बे समय तक ज्यादा मात्रा में दवाई का सेवन से एवं दूसरी दवाओं के साथ संयोजित चिकित्सा से ज्यादा बढ़ जाता है। इनसे जिगर की बीमारी, और कंजेस्टिव ह्रदय रोग होने का भी खतरा होता है।

एमाइनोग्लाईकोसाईड्स से किडनी को खराब होने से कैसे बचाया जा सकता है ?

एमाइनोग्लाईकोसाईड्स के कारण किडनी की क्षति को रोकने के निम्नलिखित उपाय हैं। एमाइनोग्लाईकोसाईड्स का सतर्कता से उपयोग -

जिन व्यक्तियों को उच्च जोखिम हो उन पर एमाइनोग्लाईकोसाईड्स का सतर्कता से उपयोग करना चाहिए।

उच्च जोखिम वाले कारण को हटाना एवं उसका उपचार महत्वपूर्ण है।

पूर्व मौजूदा किडनी की क्षति की उपस्थिति में एमाइनोग्लाईकोसाईड्स की खुराक और चिकित्सा की अवधि का संशोधन करना (दवा की मात्रा कम करना)।

किडनी की क्षति का जल्दी पता लगाने के लिए हर दूसरे दिन सीरम क्रीएटिनिन की जाँच करना।

जेन्टमाइसिन नामक इंजेक्शन जब लम्बे समय, तक ज्यादा मात्रा में लेना पड़े अथवा बड़ी उम्र में कमजोर किडनी हो और शरीर में पानी की मात्रा कम हो, तो ऐसे मरीजों में यह इंजेक्शन लेने पर किडनी खराब होने की संभावनाएँ ज्यादा रहती है। इस इंजेक्शन को, यदि तुरन्त बंद कर दिया जाए, तो अधिकांश मरीजों की किडनी थोड़े समय में पूरी तरह काम करने लगती है।

जिन व्यक्तियों को उच्च जोखिम हो उन पर एमाइनोग्लाईकोसाईड्स का सतर्कता से उपयोग करना चाहिए।

2. रेडियो कॉन्ट्रास्ट इंजेक्शन :

ज्यादा उम्र, किडनी डिजीज, डायाबिटीज, शरीर में पानी की मात्रा कम हो अथवा साथ में किडनी के लिए नुकसानदायक कोई अन्य दवा ली जा रही हो, तो ऐसे मरीजों में आयोडीन वाले पदार्थ के इंजेक्शन लगाकर एक्सरे परीक्षण कराने के बाद किडनी खराब होने की संभावना ज्यादा रहती है। अधिकांश मरीजों की किडनी को हुआ नुकसान धीरे-धीरे ठीक हो जाता है।

इन विभिन्न उपायों से किडनी की क्षति को रोका जा सकता है। इसके अलावा अन्य महत्वपूर्ण उपायों का उपयोग किया जा सकता है जैसे नॉनआयोनिक दवाओं का उपयोग करना, आई. वी. तरल पदार्थ से पर्याप्त द्रव की मात्रा को बनाए रखना एवं सोडियम बाइकार्बोनेट और एसीटिल सिस्टीन जैसी दवाओं का उचित प्रबंधन करना।

3. अन्य दवाइयाँ -

अन्य दवाइयाँ जो किडनी को क्षति पहुँचा सकती है उनमे कुछ एंटीबायोटिक दवायें, कैंसर विरोधी दवाएँ और टी. बी. विरोधी दवाएँ आदि।

4. आयुर्वेदिक दवाइँ:

आयुर्वेदिक दवाओं का कभी कोई विपरीत असर नहीं होता है - यह गलत मान्यता है।

आयुर्वेदिक दवाओं में उपयोग की जानेवाली भारी धातुओं (जैसे सीसा, पारा वगैरह) से किडनी को नुकसान हो सकता है।

किडनी डिजीज के मरीजों में विभिन्न प्रकार की आयुर्वेदिक दवाइँ कई बार खतरनाक हो सकती हैं।

कई आयुर्वेदिक दवाओं में पोटैशियम की ज्यादा मात्रा, किडनी डिजीज के मरीजों के लिए जानलेवा हो सकती है।

आयुर्वेदिक दवाईयाँ किडनी के लिए पूरी तरह से सुरक्षित हैं, यह गलत धारणा है।

स्त्रोत: किडनी एजुकेशन फाउंडेशन

 

अंतिम बार संशोधित : 2/3/2023



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