विभिन्न दवाओं के कारण किडनी को क्षति पहुचना आम समस्या है।
दवाइँ के सेवन से किडनी को नुकसान होने की संभावना ज्यादा रहने के दो मुख्य कारण हैं:
1. दर्दशामक दवाइँ (Pain Killer):
शरीर और जोड़ों में छोटे-मोटे दर्द के लिए डॉक्टर की सलाह के बिना दर्दशामक दवाइँ लेना आम चलन बन गया है। इस तरह अपने आप दवाइँ लेने के कारण खराब होने के मामलों में ये दर्दशामक दवाईयाँ सबसे अधिक जिम्मेदार होती हैं।
दर्दशामक दवाइँ क्या हैं? इनमें कौन-कौन सी दवाईयाँ शामिल हैं?
दर्द रोकने और बुखार उतारने में प्रयोग की जानेवाली दवाओं को दर्दशामक (Nonsteroidal anti inflammatory drugs - NSAIDs) दवाइँ कहते हैं। इस प्रकार की ज्यादातर इस्तेमाल की जानेवाली दवाइयें में आइब्यूप्रोफेन, कीटोप्रूफेन, डाइक्लोफेनाक सोडियम, नीमेसुलाइड इत्यादि दवाईयाँ हैं।
दवाइँ की वजह से किडनी खराब होने का मुख्य कारण दर्दशामक दवायाँ हैं।
नहीं, डॉक्टर की सलाह के अनुसार सामान्य व्यक्ति में उचित मात्रा और समय के लिए ली गई दर्दशामक दवाइँ का उपयोग पूरी तरह से सुरक्षित होता है। पर यह ध्यान रखना चाहिए की एमाइनोग्लाईकोसाईड्स (एक विशेष एंटीबायोटिक) के बाद दर्द निवारक दवाएँ दूसरे स्थान पर है जिनसे किडनी ख़राब हो सकती है।
किडनी डिजीज के मरीजों में पैरासिटामॉल अन्य दर्दशामक दवाओं से अधिक सुरक्षित है।
ह्रदय की तकलीफ में एस्पीरीन नियमित परन्तु कम मात्रा में लेने की सलाह दी जाती है, जो किडनी के लिए नुकसानदायक नहीं होती है।
जब दर्दशामक दवाइँ का उपयोग अल्प समय तक करने से किडनी अचानक खराब हो गई हो, तब उचित उपचार और दर्दशामक दवा बंद करने से किडनी, फिर से ठीक हो सकती है।
मनमाने तरीके से ली गई दर्दशामक दवाईयाँ किडनी के लिए खतरनाक हो सकती हैं।
बड़ी उम्र के कई मरीजों को जोड़ों के दर्द के लिए नियमितरूप से, लंबे समय (सालों) तक दर्दशामक दवाइँ लेनी पड़ती है। ऐसे कुछ मरीजों की किडनी इस तरह धीरे-धीरे खराब होने लगती है की फिर से ठीक न हो सके। ऐसे मरीजों को किडनी की सुरक्षा के लिए दर्दशामक दवाइँ डॉक्टर की सलाह और देखरेख में ही लेनी चाहिए।
पेशाब की जाँच में यदि प्रोटीन जा रहा हो, तो यह किडनी पर कुप्रभाव की सर्वप्रथम और एकमात्र निशानी हो सकती है। किडनी ज्यादा खराब होने पर खून की जाँच में क्रीएटिनिन की मात्रा बढ़ी हुई मिलती है।
दर्द निवारक दवाओं से किडनी की क्षति को रोकने के लिए सरल उपाय निम्नलिखित हैं:
1. एमाइनोग्लाईकोसाईड्स:
एमाइनोग्लाईकोसाईड्स, एंटीबायोटिक दवाओं का एक समूह है जिसका उपयोग चिकित्सा के लिए प्रायः किया जाता है। परन्तु यह किडनी को क्षति पहुँचाने का एक आम कारण है। प्रायः किडनी को क्षति, चिकित्सा की शुरुआत के 7 - 10 दिनों के बाद होती है। इस समस्या का निदान प्रायः नहीं हो पाता क्योंकि पेशाब की मात्रा में कोई बदलाव नहीं होता है। एमाइनोग्लाईकोसाईड्स के कारण किडनी खराब होने का खतरा बड़ी उम्र में, शरीर में पानी की कमी होने पर, पहले से ही कोई किडनी की बीमारी होने पर, पौटेशियम और मैग्नेशियम की कमी होने पर लम्बे समय तक ज्यादा मात्रा में दवाई का सेवन से एवं दूसरी दवाओं के साथ संयोजित चिकित्सा से ज्यादा बढ़ जाता है। इनसे जिगर की बीमारी, और कंजेस्टिव ह्रदय रोग होने का भी खतरा होता है।
एमाइनोग्लाईकोसाईड्स से किडनी को खराब होने से कैसे बचाया जा सकता है ?
एमाइनोग्लाईकोसाईड्स के कारण किडनी की क्षति को रोकने के निम्नलिखित उपाय हैं। एमाइनोग्लाईकोसाईड्स का सतर्कता से उपयोग -
जिन व्यक्तियों को उच्च जोखिम हो उन पर एमाइनोग्लाईकोसाईड्स का सतर्कता से उपयोग करना चाहिए।
उच्च जोखिम वाले कारण को हटाना एवं उसका उपचार महत्वपूर्ण है।
पूर्व मौजूदा किडनी की क्षति की उपस्थिति में एमाइनोग्लाईकोसाईड्स की खुराक और चिकित्सा की अवधि का संशोधन करना (दवा की मात्रा कम करना)।
किडनी की क्षति का जल्दी पता लगाने के लिए हर दूसरे दिन सीरम क्रीएटिनिन की जाँच करना।
जेन्टमाइसिन नामक इंजेक्शन जब लम्बे समय, तक ज्यादा मात्रा में लेना पड़े अथवा बड़ी उम्र में कमजोर किडनी हो और शरीर में पानी की मात्रा कम हो, तो ऐसे मरीजों में यह इंजेक्शन लेने पर किडनी खराब होने की संभावनाएँ ज्यादा रहती है। इस इंजेक्शन को, यदि तुरन्त बंद कर दिया जाए, तो अधिकांश मरीजों की किडनी थोड़े समय में पूरी तरह काम करने लगती है।
जिन व्यक्तियों को उच्च जोखिम हो उन पर एमाइनोग्लाईकोसाईड्स का सतर्कता से उपयोग करना चाहिए।
2. रेडियो कॉन्ट्रास्ट इंजेक्शन :
ज्यादा उम्र, किडनी डिजीज, डायाबिटीज, शरीर में पानी की मात्रा कम हो अथवा साथ में किडनी के लिए नुकसानदायक कोई अन्य दवा ली जा रही हो, तो ऐसे मरीजों में आयोडीन वाले पदार्थ के इंजेक्शन लगाकर एक्सरे परीक्षण कराने के बाद किडनी खराब होने की संभावना ज्यादा रहती है। अधिकांश मरीजों की किडनी को हुआ नुकसान धीरे-धीरे ठीक हो जाता है।
इन विभिन्न उपायों से किडनी की क्षति को रोका जा सकता है। इसके अलावा अन्य महत्वपूर्ण उपायों का उपयोग किया जा सकता है जैसे नॉनआयोनिक दवाओं का उपयोग करना, आई. वी. तरल पदार्थ से पर्याप्त द्रव की मात्रा को बनाए रखना एवं सोडियम बाइकार्बोनेट और एसीटिल सिस्टीन जैसी दवाओं का उचित प्रबंधन करना।
3. अन्य दवाइयाँ -
अन्य दवाइयाँ जो किडनी को क्षति पहुँचा सकती है उनमे कुछ एंटीबायोटिक दवायें, कैंसर विरोधी दवाएँ और टी. बी. विरोधी दवाएँ आदि।
4. आयुर्वेदिक दवाइँ:
आयुर्वेदिक दवाओं का कभी कोई विपरीत असर नहीं होता है - यह गलत मान्यता है।
आयुर्वेदिक दवाओं में उपयोग की जानेवाली भारी धातुओं (जैसे सीसा, पारा वगैरह) से किडनी को नुकसान हो सकता है।
किडनी डिजीज के मरीजों में विभिन्न प्रकार की आयुर्वेदिक दवाइँ कई बार खतरनाक हो सकती हैं।
कई आयुर्वेदिक दवाओं में पोटैशियम की ज्यादा मात्रा, किडनी डिजीज के मरीजों के लिए जानलेवा हो सकती है।
आयुर्वेदिक दवाईयाँ किडनी के लिए पूरी तरह से सुरक्षित हैं, यह गलत धारणा है।
स्त्रोत: किडनी एजुकेशन फाउंडेशन
अंतिम बार संशोधित : 2/3/2023
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