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क्रोनिक किडनी डिजीज के लक्षण और निदान

क्रोनिक किडनी डिजीज के लक्षण और निदान

भूमिका

क्रोनिक किडनी डिजीज (CKD) में, दोनों किडनी को खराब होने में महीनों से सालों तक का समय लगता है। इसकी शुरूआत में दोनों किडनी की कार्यक्षमता में अधिक कमी नहीं होने के कारण कोई लक्षण दिखाई नहीं देते है । किन्तु जैसे जैसे किडनी ज्यादा खराब होने लगती है, क्रमशः मरीज की तकलीफ बढ़ती जाती है ।

क्रोनिक किडनी डिजीज (सी.के.डी.) के क्या लक्षण होते हैं?

क्रोनिक किडनी डिजीज के लक्षण किडनी की क्षति की गंभीरता के आधार पर बदलते है। सी.के.डी. को पाँच चरणों में विभाजित किया गया है। किडनी की कार्यक्षमता के दर या eGFR के स्तर पर यह विभाजन आधारित होते है। eGFR का अनुमान रक्त में क्रीएटिनिन की मात्रा से पता लगाते हैं। सामान्यतः eGFR 90ml/min से ज्यादा होता है।

सी.के.डी. का पहला चरण:

क्रोनिक किडनी डिजीज के पहले चरण में किडनी की कार्यक्षमता 90 - 100 % होती है। इस स्थिति में eGFR 90 मि.लि./मिनिट से ज्यादा रहता है। इस अवस्था में मरीजों में कोई लक्षण दिखने शुरू नहीं होते हैं। पेशाब में असामान्यताएँ हो सकती है जैसे पेशाब में प्रोटीन जाना। एस्करे. एम. आर. आई., सी. टी. स्कैन या सोनोग्राफी से किडनी में खराबी दिखाई पड सकती है या सी.के.डी. नामक बीमारी का पता लग जाता है।

सी.के.डी. का दूसरा चरण:

इसमें eGFR 60 से 89 मि. लि./ मिनिट होता है। इन मरीजों में किसी भी प्रकार का कोई लक्षण नहीं पाया जाता है। किन्तु कुछ मरीज रात में बार-बार पेशाब जाना या उच्च रक्तचाप होना आदि शिकायतें कर सकते हैं। इनकी पेशाब जाँच में कुछ असामान्यताएं एवं रक्त जाँच में सीरम क्रीएटिनिन की थोड़ी बढ़ी मात्रा हो सकती है।

क्रोनिक किडनी डिजीज के मरीज में खून का दबाव बहुत ही ज्यादा बढ़ सकता है।

सी.के.डी. का तीसरा चरण:

इसमें eGFR 30 तो 59 मि. लि./ मिनिट होता है। मरीज अक्सर बिना किसी लक्षण के या हल्के लक्षणों के साथ उपस्थित हो सकते हैं। इनकी पेशाब जाँच में कुछ असामान्यताएं एवं रक्त जाँच में सीरम क्रीएटिनिन की मात्रा थोड़ी बढ़ी हो सकती है।

सी.के.डी. का चौथा चरण:

क्रोनिक किडनी डिजीज की चौथी अवस्था में eGFR में अर्थात किडनी की कार्यक्षमता में 15-29 मि. लि./ मिनिट तक की कमी आ सकती है। अब लक्षण हल्के, अस्पष्ट और अनिश्चित हो सकते हैं या बहुत तीव्र भी हो सकते हैं। यह किडनी की विफलता और उससे जुडी बीमारी के मूल कारणों पर निर्भर करता है।

सी.के.डी. का पाँचवा चरण (किडनी की 15% से कम कार्यक्षमता) :

सी.के.डी. की पाँचवी अवस्था बहुत गंभीर होती है। इससे eGFR अर्थात किडनी की कार्यक्षमता में 15 % से कम हो सकती है। इसे किडनी डिजीज की अंतिम अवस्था भी कहते हैं। ऐसी अवस्था में मरीज को डायालिसिस या किडनी प्रत्यारोपण की आवश्यकता हो सकती है। मरीज में लक्षण स्पस्ट या तीव्र हो सकते हैं और उनके जीवन के लिए खतरा और जटिलताएां बढ़ सकती है।

एन्ड स्टेज किडनी डिजीज के सामान्य लक्षण

प्रत्येक मरीज में किडनी खराब होने के लक्षण और उसकी गंभीरता अलग अलग होती है। रोग की इस अवस्था में पाये जाने वाले लक्षण इस प्रकार हैं :

  • खाने में अरुचि होना, उल्टी, उबकाई आना।
  • कमजोरी महसूस होना, वजन कम हो जाना।
  • पैरों के निचले हिस्से में सूजन आना
  • प्रायः सुबह के समय आँखों के चारों तरफ और चेहरे पर सूजन आना
  • थोड़ा काम करने पर थकावट महसूस होना, साँस फूलना ।
  • खून में फीकापन रक्तअल्पता (एनीमिया ) होना। किडनी में बनने वाला एरिथ्रोपोएटिन नामक हार्मोन में कमी होने से शरीर में खून कम बनता है।
  • शरीर में खुजली होना ।
  • पीठ के निचले हिस्से में दर्द होना ।
  • विशेष रूप से रात के समय बार-बार पेशाब जाना (nocturia) ।
  • याद्दाश्त में कमी होना, नींद में नियमित क्रम में परिवर्तन होना ।
  • दवा लेने के बाद भी उच्च रक्तचाप का नियत्रण में नहीं आना ।
  • स्त्रियों में मासिक में अनियमितता और पुरुषों में नपुंसकता का होना ।
  • किडनी में बनने वाला सक्रिय विटामिन 'डी' का कम बनना, जिससे बच्चो की ऊंचाई कम बढ़ती है और वयस्कों में हड्डियों में दर्द रहता है।

भोजन में अरुचि, कमजोरी और जी मिचलाना क्रोनिक किडनी डिजीज के अधिकांश मरीजों के मुख्य लक्षण है।

उच्च रक्तचाप से पीड़ित व्यक्ति में सी.के.डी. होने की संभावना कब होती है?

किसी व्यक्ति में उच्च रक्तचाप है तो सी.के.डी. की संभावनाएँ हो सकती हैं यदि

  • 30 से कम या 50 से अधिक उम्र में उच्च रक्तचाप होने का पता चले।
  • निदान के समय में गंभीर उच्च रक्तचाप (200/120 mm of Hg) हो।
  • नियमित रूप से उपचार के बावजूद अनियंत्रण उच्च रक्तचाप हो।
  • दृष्टि में खराबी होना।
  • पेशाब में प्रोटीन जाना।
  • उन लक्षणों की उपस्थिति होना जो सी.के.डी. की संभावनाएं दर्शाता है जैसे शरीर में सूजन का होना, भूख की कमी, कमजोरी लगना आदि।

अंतिम चरण के सी.के.डी. की क्या जटिलताएँ होती है?

  • सांस लेने में अत्यधिक तकलीफ और फेफड़ों में पानी भर जाने के कारण सीने में दर्द होना (पलमनरी एडिमा) ।
  • गंभीर उच्च रक्तचाप होना ।
  • मतली और उलटी होना ।
  • अत्यधिक कमजोरी महसूस होना ।
  • केन्द्रीय तंत्रिका में जटिलता उत्पन्न होना जैसे, झटका आना, बहुत नींद आना, ऐंठन होना और कोमा में चले जाना आदि।
  • रक्त में अधिक मात्रा में पोटैशियम बढ़ जाना (हाइपरकेलिमिया) । यह ह्रदय के कार्य करने की क्षमता को प्रभावित कर सकती है और यह जीवन के लिए खतरनाक भी हो सकता है।
  • पैरीकाडाइटिस (Pericarditis) होना। थैली की तरह की झिल्ली जो ह्रदय के चारों तरफ रहती है उसमें सूजन आना या पानी भर जाना। यह ह्रदय के कार्य को बाधित करती है एवं छाती में अत्यधिक दर्द हो सकता है।

दवा लेने के बावजूद खून के फीकापन में कोई सुधार न होने का कारण किडनी डिजीज भी हो सकता है।

निदान

प्रारंभिक अवस्था में सी. के. डी. में किसी भी प्रकार के लक्षण नहीं दिखते हैं। प्रायः सी. के. डी. का पता तब चलता है जब उच्च रक्तचाप की जाँच होती है, खून की जाँच में सीरम क्रीएटिनिन की बढ़ी मात्रा या पेशाब परीक्षण में एल्बुमिन का होना पाया जाता है। हर उस व्यक्ति की, सी. के. डी. के लिए जाँच होनी चाहिए जिनकी किडनी के क्षतिग्रस्त होने की संभावनाएँ अधिक हो (मधुमेह, उच्च रक्तचाप, अधिक उम्र, परिवार के अन्य सदस्यों में सी. के. डी. का होना आदि में) ।

किसी भी मरीज की तकलीफ देखकर या मरीज की जाँच के दौरान किडनी डिजीज होने की शंका हो, तो निम्नलिखित जाँचों द्वारा निदान किया जा सकता है ।

खून में हीमोग्लोबिन की मात्रा :

यह मात्रा क्रोनिक किडनी डिजीज के मरीजों में कम होती है । किडनी के द्वारा एरिथ्रोपोएटिन नामक हार्मोन के उत्पादन में कमी की वजह रक्ताल्पता या एनीमिया होता है।

पेशाब की जाँच :

यदि पेशाब में प्रोटीन जाता हो, तो यह क्रोनिक किडनी डिजीज की प्रथम भयसूचक निशानी हो सकती है। यह भी सत्य है की पेशाब में प्रोटीन का जाना, किडनी डिजीज के अलावा अन्य कारणों से भी होता है। इससे यह नहीं मान लेना चाहिए की पेशाब में प्रोटीन का जाना क्रोनिक किडनी डिजीज का मामला है। पेशाब के संक्रमण का निदान भी इस जाँच द्वारा हो सकता है।

खून में क्रिएटिनिन और यूरिया की जाँच :

क्रोनिक किडनी डिजीज के निदान और उपचार के नियंत्रण के लिए यह 

उच्च रक्तचाप का होना और पेशाब में प्रोटीन का जाना इस रोग की पहली निशानी हो सकती है।

सबसे महत्वपूर्ण जाँच है। किडनी के ज्यादा खराब होने के साथ साथ खून में क्रीएटिनिन और यूरिया की मात्रा भी बढ़ती जाती है। किडनी डिजीज के मरीजों में नियमित अवधि में यह जाँच करते रहने से यह जानकारी प्राप्त होती है की किडनी कितनी खराब हुई है तथा उपचार से उसमें कितना सुधार आया है। उम्र और लिंग के साथ सीरम क्रीएटिनिन की मात्रा को जाँच कर किडनी की eGFR अर्थात उसकी कार्यक्षमता का अनुमान लगाने में प्रयोग किया जाता है। eGFR के आधार पर सी. के. डी. को पाँच अवस्थाओं में विभाजित किया गया है। यह विभाजन अतिरिक्त परीक्षणों और उचित उपचार के सुझावों के लिए उपयोगी होता है।

किडनी की सोनोग्राफी :

किडनी के डॉक्टरों की तीसरी आँख कही जानेवाली यह जाँच किडनी किस कारण से खराब हुई है, इसके निदान के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। अधिकांश क्रोनिक किडनी डिजीज के रोगियों में किडनी का आकार छोटा एवं संकुचित हो जाता है। एक्यूट किडनी फेल्योर, डायबिटीज़, एमाइलोडोसिस जैसे रोगों के कारण जब किडनी खराब होती है, तो किडनी के आकार में वृद्धि दिखाई देती है। पथरी, मूत्रमार्ग में अवरोध और पोलिसिस्टिक किडनी डिजीज जैसे किडनी डिजीज के कारणों का सही निदान भी सोनोग्राफी द्वारा हो सकता है।

खून की अन्य जाँच :

सी.के.डी. के कारण किडनी के विभिन्न कार्यों में गड़बड़ी उत्पन्न होती है। इन गड़बड़ियों का मूल्यांकन करने के लिए विभिन्न परीक्षण किये जाते हैं। जैसे - इलेक्ट्रोलाइट और एसिड बेस संतुलन का परीक्षण (सोडियम, पोटैशियम, मेगनिशियम, बाईकार्बोनेट), रक्ताल्पता का परीक्षण (हिमेटोक्रीट, फेरीटिन, ट्रांस्फेर्रिन सेचुरेशन, पेरिफेरल स्मियर), हड्डी रोग के लिए परीक्षण (कैल्शियम, फॉसकोस, अलक्लाइन फोस्फेट्स, पैराथाइरॉइड होरमोन), दूसरे अन्य सामान्य परीक्षण (सीरम एल्बुमिन, कोलेस्ट्रॉल, ट्राइग्लिसराइड्स, रक्त में ग्लूकोज की मात्रा, हीमोग्लोबिन, ई. सी. जी. और इकोकार्डियोग्राफी) आदि है।

सोनोग्राफी में यदि दोनों किडनी छोटी एवं सिकुंडी हुई दिखाई दे, तो यह क्रोनिक किडनी डिजीज की निशानी है।

सी. के. डी. के रोगी को कब डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए?

सी. के. डी. के रोगी को डॉक्टर से संपर्क तुरंत करना चाहिए अगर उसे निम्नलिखित में से कोई भी लक्षण हों तो -

  • बिना कारण वजन बढ़ना, पेशाब की मात्रा में उल्लेखनीय कमी, सूजन में वृध्दि बिस्तर में लेटने पर सांस लेने में तकलीफ या सांस की कमी होना।
  • सीने में दर्द, बहुत धीमी या तेज दिल की धड़कन होना।
  • बुखार, गंभीर दस्त, भूख में काफी कमी, गंभीर उलटी, उलटी में खून, अकारण वजन घटना आदि।
  • मांसपेशियों में गंभीर कमजोरी होना।
  • भ्रम, उनींदापन या शरीर में बेहोशी या ऐंठन होना।
  • लाल रंग का पेशाब होना, अत्यधिक रक्तस्त्राव होना आदि।
  • अच्छी तरह नियंत्रित उच्च रक्तचाप में गड़बड़ी होना।

स्त्रोत: किडनी एजुकेशन

 

अंतिम बार संशोधित : 2/22/2020



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