अच्छा स्वास्थ्य शारीरिक रूप से स्वस्थ शरीर भर नहीं, उससे कुछ ज्यादा होता है ; एक स्वस्थ व्यक्ति का दिमाग भी स्वस्थ होना चाहिए । एक स्वस्थ दिमाग वाले व्यक्ति में स्पष्ट सोचने और जीवन में सामने आने वाली समस्याओं, का समाधान करने की क्षमता होनी चाहिए । मित्रों, कार्यस्थली पर सहकर्मियों और परिवार के साथ उसके संबंध अच्छे होने चाहिए । उसे आत्मिक रूप से शांत और सहज महसूस करना चाहिए और समुदाय के दूसरे लोगों को खुशी देनी चाहिए । स्वास्थ्य के इन पहलुओं को मानसिक स्वास्थ्य माना जा सकता है ।
हम भले ही शरीर और दिमाग के बारे में इस लहजे में बात करते हों जैसे वे दो अलग चीजों हो, लेकिन हकीकत में वे एक ही सिक्के के दो पहलुओं के समान हैं । दोनों में बहुत कुछ की साझेदारी है, पर हमारे आसपास के संसार को वे अलग दिखते हैं । अगर दोनों में से किसी एक पर कोई असर पड़ता है, तो इससे दूसरा भी लगभग निश्चित रूप से प्रभावित होगा । अगर हम शरीर और दिमाग को अलग कर सोचते हैं, तो इसका यह अर्थ नहीं है कि वे एक-दसूरे से स्वतंत्र हैं ।
ठीक जैसे हमारा शरीर बीमार पड़ सकता है, उसी तरह दिमाग ही रोगी हो सकता है । इस स्थिति को मनोरोग कहा जाता है । “किसी व्यक्ति द्वारा अनुभव की जाने वाली कोई भी बीमारी जो उसी भावनाओं, विचारों और व्यवहार को इस तरह प्रभावित करती है कि वे उसकी सांस्कृति मान्यताओं तथा व्यक्तित्व से मेल न खाएं और उस व्यक्ति तथा उसके परिवार की जिंदगी पर नकारात्मक असर डालें” , तो वह बीमारी मनोरोग कहलाएगी ।
दो महत्वपूर्ण बिंदु हैं जो इस मार्गदर्शिका की सामग्री का आधार निर्मित करते हैं :
• मानसिक रोगों के कारणों और उनके उपचार की हमारी समझ में बहुत ज्यादा बढ़ोतरी हुई है । ज्यादातर उपचार सामान्य या सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यकर्त्ता के द्वारा प्रभावी रूप से किए जा सकते हैं ।
• मनोरोग के दायरे में बहुत तरह की स्वास्थ्य समस्याएं आती हैं । ज्यादातर लोग मनोरोग को हिंसा, उत्तेजना और असहज यौनवृत्ति जैसे गंभीर व्यवहार संबंधी विचलनों से जुडी बीमारी मानते हैं । ऐसे विचलन अक्सर गंभीर मानसिक अस्वस्थताओं का परिणाम होते हैं । लेकिन, मनोरोग से पीड़ित ज्यादातर लोग दूसरे सामान्य लोगों जैसा ही व्यवहार करते हैं और वैसे ही दिखते हैं । इन आम मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं में अवसाद, चिंता, यौन समस्याएं तथा व्यसनों की लग शामिल हैं ।
कई कारण हैं जिनके चलते आपको मनोरोगों के प्रति चिंतित होने की जरुरत है ।
• क्योंकि वे हम सभी को प्रभावित करते हैं । ऐसा अंदाजा है कि पांच व्यस्क व्यक्तियों में से एक अपने जीवन में किस समय मनोरोग के अनुभव से गुजरता है । इससे पता लगता है कि मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं कितनी आम बात हैं । कोई भी मानसिक स्वास्थ्य समस्या से पीड़ित हो सकता है ।
• क्योंकि वे सार्वजानिक स्वास्थ्य पर एक बड़ा बोझ हैं । विश्व के लगभग हर कोने में किए गए मनोरोग व्यक्ति की घर ओर बाहर काम करने की क्षमता को प्रभावित कर सकता है । अध्ययन इस बात को दर्शाते हैं कि सामान्य स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं में खुद को दिखाने आने वाले वयस्कों में से 40 प्रतिशत किसी न किसी मनोरोग से पीड़ित हैं । सामान्य या सामुदायिक स्वास्थ्य सेवाओं में आने वाले अनेकों लोग अस्पष्ट शारीरिक स्वास्थ्य समस्याओं के उपचार के लिए आते हैं । इन समस्याओं को ‘साइकोसोमेटिक’ यानि मनो – शारीरिक या इसी तरह का कोई नाम दिया जा सकता है । दरअसल, इनमें से अनेकों लोग मानसिक स्वास्थ्य संबंधी किसी समस्या से पीड़ित होते हैं ।
• क्योंकि वे व्यक्ति को बहुत असमर्थ बना देते हैं । हालांकि आम मान्यता यह है कि मानसिक बीमारियां शारीरिक बीमारी के मुकाबले कम गंभीर होती हैं, पर हकीकत में वे गंभीर असमर्थता पैदा करती हैं । आत्महत्या या दुर्घटना के कारण उनसे मृत्यु भी हो सकती है । कुछ लोग किसी मानसिक रोग के साथ-साथ शारीरिक रूप से भी पीड़ित होते हैं । ऐसे लोंगों में मानसिक रोग शारीरक रोग को और बढ़ा सकता है । 2001 में विश्व स्वास्थ्य संगठन की विश्व स्वास्थ्य रपट से यह बात सामने आई कि संसार भर में दस में से चार लोगों को जो रोग सबसे ज्यादा असमर्थ बनाते हैं, वे हैं मनोरोग । अवसाद सबसे ज्यादा असमर्थ बनाने वाली बीमारी पाई गई । एनीमिया, मलेरिया व अन्य सभी स्वास्थ्य समस्याओं से भी ज्यादा ।
• क्योंकि मानसिक स्वास्थ्य सेवाएं बहुत अपर्याप्त हैं । ज्यादातर देशों में मनोचिकित्सकों, मनोवैज्ञानिकों व अन्य मानसिक स्वास्थ्य पेशेवरों का घोर अकाल है । वे विशेषज्ञ अपना ज्यादातर वक्त उन लोगों की देखभाल में लगाते हैं जो गंभीर मानसिक अस्वस्थताओं (साइकोसिस) से पीड़ित हैं । हालांकि ऐसे मनोरोग बहुत कम होते हैं, पर यही वे रोग हैं जिन्हें समुदाय मानसिक बीमारी के रूप में देखता है । अवसाद या शराब पीने जैसी अपेक्षाकृत बहुत आम मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं से पीड़ित ज्यादातर लोग किसी मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ से सलाह लेने के लिए नहीं आते । इसलिए, सामान्य स्वास्थ्य कार्यकर्त्ता ही इन रोगों का उपचार करने की सबसे बेहतर स्थिति में है ।
• क्योंकि हमारे समाज तेजी से बदल रहे हैं । संसार में अनेकों समाजों में नाटकीय आर्थिक व सामाजिक बदलाव आ रहे हैं । तीव्र विकास, पलायन, बढ़ती हुई आर्थिक असमानता, बेरोजगारी और हिंसा के स्तरों से होती बढोत्तरी के चलते समुदायों का सामाजिक ताना-बाना बदल रहा है । ये सभी कारण खराब मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े हुए हैं ।
• क्योंकि मनोरोग के कारण सामाजिक लांछन लगता है । मानसिक स्वास्थ्य से सम्बंधित समस्या से पीड़ित ज्यादातर लोग मानाने को तैयार ही नहीं होते कि उन्हें कोई रोग है । जिन लोगों को मानसिक रोग होता है, उनके साथ अक्सर समुदाय और उनके परिवार के द्वारा भेदभाव किया जाता है । स्वास्थ्य कार्यकर्ता आम तौर पर उनसे सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार नहीं करते ।
• क्योंकि मनोरोग का सरल और अपेक्षाकृत सस्ते तरीकों से उपचार किया जा सकता है । यह सही है कि मनोरोग ‘ठीक’ नहीं हो सकते । लेकिन कैंसर, मधुमेह, उच्च रक्तचाप और जोड़ों के गठिया जैसे अनेकों शारीरिक रोग भी ‘ठीक’ नहीं हो सकते । पर इसके बावजूद, इन शारीरिक रोगों से पीड़ित व्यक्तियों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार कनरे के लिए काफी कुछ किया जा सकता है । यही बात मनोरोग पर भी लागू होती है ।
किसी मनोरोग को पहचानने और उसका निदान करने के लिए आपको लगभग पूरी तरह उन बातों पर ही निर्भर करना पड़ता है जो कि लोग आपको बताते हैं । इसके निदान का प्रमुख उपकरण उस व्यक्ति के साथ साक्षात्कार करना है । मनोरोगों से ऐसे लक्षण पैदा होते हैं जिन्हें उनसे पीड़ित व्यक्ति और उनके आसपास के लोग महसूस कर सकते हैं । ये लक्षण मुख्य रूप से पांच प्रकार के होते हैं :
• शारीरिक – ‘सोमेटिक लक्षण’ । ये शरीर के अंगों और शारीरिक क्रियाकलापों पर असर डालते हैं । इनमें विभिन्न तरह के दर्द, थकान तथा नींद संबंधी समस्याएं शामिल हैं । इस बात को याद रखना जरुरी है कि मनोरोग अक्सर शारीरिक लक्षण पैदा करते हैं ।
• महसूस करना – भावनात्मक लक्षण । उदास या डरा हुआ महसूस करना इसके प्रतिनिधि उदहारण हैं ।
• सोचना – ‘ बौद्धिक’ लक्षण । आत्महत्या के बारे में सोचना, यह सोचना कि कोई आपको नुकसान पहुंचाने जा रहा है, साफ़-साफ सोचने में मुश्किल आना तथा भुल्लकड़पन इसके प्रतिनिधि उदहारण हैं ।
• व्यवहार – व्यवहार संबंधी लक्षण । ये लक्षण व्यक्ति द्वारा किए जाने वाले क्रियाकलापों से सम्बंधित हैं । इसके उदहारण हैं : आक्रमक तरीके से व्यवहार करना और आत्महत्या की कोशिश करना ।
• निराधार कल्पनाएँ करना – इन्द्रियबोध संबंधी लक्षण । ये किसी इंद्रिय द्वारा पैदा किये जाते हैं और इनमें ऐसी आवाजें सुनना, चीजें देखना शामिल हैं जिन्हें और लोग सुन-देख नहीं सकते ।
हकीकत में यह सभी अलग-अलग तरह के लक्षण एक दूसरे से बहुत निकट से जुड़े हैं । उदहारण के लिए, देखिए कि किसी एक ही व्यक्ति में ये अलग-अलग लक्षण हो सकते हैं ।
मोटे तौर पर मनोरोग की छः श्रेणियां है :
• आम मानसिक अस्वस्थताएं (अवसाद और चिंता से ग्रस्त रहना) ;
• ‘बुरी आदतें’ जैसे शराब और नशीली दवाओं के बिना न रह सकना ;
• गंभीर मानसिक अस्वस्थताएं (मनोविकृतियाँ या साइकोसिस) ;
• मंदबुद्धि होना ;
• बुजुर्गों की मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं ;
• बच्चों की मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं ।
आम मानसिक अस्वस्थताएं (अवसाद और चिंता से ग्रस्त रहना )
केस 1
पहला बच्चा होने के वक्त लूसी 23 साल की थी । बच्चे के जन्म के बाद शुरू के कुछ दिनों के दौरान यह थकान और उलझन महसूस कर रही थी । दाई ने उसे यकीन दिलाया कि वह भावनात्मक परेशानी से एक छोटे से दौर भर से गुजर रही है और ऐसा अनेकों माताओं को महसूस होता है । उसने सलाह दी कि लूसी और उसका पति काफी समय साथ गुजारें और मिल कर बच्चों की देखभाल करें । इससे उसकी मानसिक स्थिति में सुधार आएगा । उम्मीद के मुताबिक ही लूसी हो कुछ ही दिनों के भीतर अच्छा महसूस होने लगा । एक महीने तक सब टिक लगता रहा, उसके बाद बहुत धीरे-धीरे वह फिर थका और कमजोर महसूस करने लगी । उसकी नींद उचटने लगी । वह हालांकि थका महसूस करती, पर काफी सुबह जग जाती । उसके दिमाग में खुद अपने और अपने बच्चे तक के बारे में गलत ख्याल आते । दूसरी बात उसे और ज्यादा डराती । घर की जिम्मेदारीयों में उसकी दिलचस्पी खत्म होनी शुरू हो गई । लूसी के पति को उसका व्यवहार आलसी और लापरवाह लगता है और इससे वह चिढ़ने लगा । जब सामुदायिक नर्स बच्चे की रूटीन जाँच के लिए आई, तब कहीं जाकर लूसी के अवसाद का निदान हुआ ।
समस्या क्या है ? लूसी एक किस्म के ऐसे अवसाद से पीड़ित थी जो बच्चे के जन्म के बात मातों को हो जाता है । इससे प्रसव – पाश्चात (पोस्टनेटेल) का अवसाद कहते हैं ।
केस 2
रीता 58 साल की महिला थी जिसका पति पिछले साल अचानक मर गया था । उसके सब बच्चे बड़े हो गए थे और रोजगार के बेहतर अवसरों की तलाश में एक बड़े शहर चले गए थे । अपने पति की मौत के फौरन बाद उसे कम नींद आने लगी है और उसकी भूख खत्म हो गई । पिता की अंत्योष्टि के बाद उसके बच्चे गाँव से चले गए और उसके ये लक्षण और बिगड़ गए । उसके सर, पीठ और पेट दर्द के अलावा दूसरी जिस्मानी परेशानियाँ भी होने लगी । इनके कारण वह एक स्थानीय क्लीनिक में सलाह लेने पहुंची । वहां उसे बताया गया कि वह ठीकठाक है और नींद की गोलियां और विटामिन लिख दिए गए । इसके फ़ौरन बाद उसे बेहतर महसूस हुआ । खासकर उसकी नींद में सुधार हो गया । लेकिन, दो सप्ताह के भीतर ही उसे फिर कम नींद आनी शुरू हो गई और वह दुबारा से क्लीनिक पहुंची । उसे और ज्यादा नींद की गोलियां और इंजेक्शन दिए गए । महीनों तक यही कुछ चलता रहा और आखिर में हालत यहाँ तक पहुंच गई कि उसे गोलियों के बगैर नींद आनी बंद हो गई ।
समस्या क्या है ? पति की मौत और बच्चों के अब उससे दूर चले जाने से पैदा हुए अवसाद के लक्षण उसमें शारीरिक रूप से सामने आ रहे थे । क्लीनिक के डॉक्टर ने उससे उसकी भावनाओं के बारे में नहीं पूछा और उसे नींद की गोलियां दे दीं । इसके कारण उसे नींद की गोलियों की आदत हो गई ।
अवसाद से पीड़ित व्यक्ति के निम्न में से कुछ लक्षणों का अनुभव होगा :
शारीरिक
• थकान और चूर-चूर होने व कमजोरी का अहसास
• पुरे शरीर में अजीब से दर्द व पीड़ा
भावनात्मक
• उदास और दुखी महसूस करना
• जीवन सामाजिक संबंधों और काम इत्यादि में दिलचस्पी का खत्म होना
• अपराध बोध की भावनाएं
सोच संबंधी
• भविष्य को लेकर निराशा
• फैसले लेने में मुश्किलें
• यह सोच कि वह बाकि लोगों से कमतर है (आत्म सम्मान की कमी)
• यह सोच कि उसका जीवित न रहना ही बेहतर होगा
• आत्महत्या के खयाल और योजनाएं
• दिमाग को एकाग्र करने में कठिनाई
व्यवहार संबंधी
• नींद की परेशानी ( आम तौर पर कम नींद आना, पर कभी-कभी बहुत नीदं आना)
• भूख कम लगना (कभी-कभी ज्यादा लगना)
• कामेच्छा में कमी आना
केस 3
30 साल की उम्र में रवि के साथ एक गंभीर दुर्घटना हुई । वह मोटर साइकिल पर था और उसके पीछे की सीट पर उसका करीबी दोस्त सवार था । बाइको को पीछे से धक्का मारा और रवि और उसका दोषत बाइक से निचे गिर गए । रवि ये देख कर भौंचक रह गया कि उसका दोस्त बस के पहियों के नीचे जा गिरा और कुचला गया और फ़ौरन ही मर गया । कुछ दिनों की गहरी उदासी और सदमे के बाद रवि को डर के दौरे पड़ने लगे । इनकी शुरुआत तबसे हुई जब वह बाजार में खरीदारी कर रहा था । उसे अचानक लगा कि उसका दम घुट रहा है और दिले तेजी से धड़क रहा है । उसके पिता को दिल की शिकायत थी और उसे चिंता हो गई कि उसे भी दिल की बीमारी है । वह बहुत डर गया । डाक्टरों ने उसे जांचों के लिए भेजा और उनसे पता लगा कि उसक दिल स्वस्थ हालत में है । रवि को रातों को बुरे सपने भी आने लगे जिनमें वह फिर से उस दुर्घटना के होते हुए देखता । यहाँ तक की कभी-कभी जागते हुए भी उसे पूरी दुर्घटना दिखलाई देने लगी । तब वह डर जाता और तनाव में आ जाता । उसकी नींद खराब होनी शुरू हो गई और जल्दी ही उनके मन में आत्महत्या के भाव आने लगे ।
समस्या क्या है ? रवि चिंताग्रस्तता के रोग से पीड़ित था और यह किसी भी ऐसे व्यक्ति को हो सकता है जो शारीरिक या भावनात्मक चोट/ आघात का शिकार हुआ हो । इसे कभी-कभी ‘पोस्ट-ट्रौमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर या चोट के बाद पैदा तनाव से हुई अस्वस्थता कहा जाता है ।
आम मानसिक अस्वस्थताओं में दो तरह की भावनात्मक समस्याएं आती है : अवसाद तथा चिंताग्रस्त । अवसाद का मतलब है मन का डूबी-डूबी, उदास, उकताई हुई या दुखी हालत में रहना । यह एक ऐसा अहसास है जिससे जिंदगी में हर आदमी कभी-न-कभी गुजरता है । कुछ हद तक इस भावना को ‘सामान्य’ कहा जा सकता है । पर कभी-कभी ऐसे दौर आते हैं जब अवसाद जिंदगी में दखल देने लगता है । तब यह एक समस्या बन जाता है । उदहारण के लिए, हर आदमी ऐसे दौरों से गुजरता है, जब वह उदास महसूस करता है, पर ज्यादातर लोग इसके बावजूद अपनी जिंदगी चलाए रखते हैं और यह दौर गुजर जाता है । पर कभी-कभी अवसाद ज्यादा लम्बे समय तक चलता है, एक महीने से भी ज्यादा । इसमें थकान और दिमाग को एकाग्र न कर पाने जैसे असमर्थ बना देने वाले लक्षण पैदा हो जाते हैं । यह अहसास रोजमर्रा की जिंदगी को प्रभावित करने लगता है और इसके कारम काम करना या घर में छोटे बच्चों की देखभाल करना मुश्किल हो जाता है । अगर अवसाद जिंदगी के राते में आने लगे और लम्बे समय तक चले, तो हम मान सकते हैं कि वह व्यक्ति किसी रोग में पीड़ित है । अवसाद की मुख्या विशेषताएं बाक्स 1.1 में दर्शाई गई है । चिंताग्रस्त डरा हुआ तथा घबराया हुआ होने की भावना है । अवसाद की तरह ही कुछ स्थितियों में यह एक सामान्य बात है । उदहारण के लिए, मंच पर जाने से पहले एक अभिनेता तथा परीक्षा से पहले एक विधार्थी चिंतित तथा तनावग्रस्त महसूस करते हैं । कुछ लोग हमेशा ही चिंताग्रस्त जान पड़ते हैं, पर इसके बावजूद वे अपनी जिंदगी का कामकाज जारी रख पाते हैं । अवसाद की तरह ही चिंताग्रस्त महसूस करते हैं । कुछ लोग हमेशा ही चिंताग्रस्त जान पड़ते हैं, पर इसके बावजूद वे अपनी जिंदगी का कामकाज जारी रख पाते हैं । अवसाद की तरह चिंताग्रस्त उस स्थिति में एक रोग बन जाती है जब यह लम्बे समय तक बनी रहे (आम तौर पर दो सप्ताह से ज्यादा) और व्यक्ति की जिंदगी में दखल देने लगे या गंभीर किस्म के लक्षण पैदा कर दे । चिंताग्रस्त की मुख्या विशेषताएं बाक्स 1.2 में दिखलाई गई हैं ।
आम मानसिक अव्स्थताओं से पीड़ित ज्यादातर व्यतियों में अवसाद और चिंताग्रस्त, दोनों के ही लक्षण दिखाई पड़ते हैं । ज्यादातर भावनात्मक या सोच संबंधी लक्षणों की शिकायत नहीं करते, बल्कि उन्हें शारीरिक व व्यवहार संबंधी लक्षणों का अनुभव होता है (जैसा केस 1.2 में) । ऐसा काई कारणों से हो सकता है । उदहारण के लिए, उन्हें लग सकता है कि अगर उनहोंने मनोवैज्ञानिक लक्षण बताए, तो उन पर ‘मेंटल’ केस होने का बिल्ला लग जाएगा ।
आम मानसिक अस्वस्थताओं की तीन किस्में विशष्ट या असाधारण शिकायतों के साथ सामने आ सकती हैं :
• जब चिंताग्रस्त के भीषण दौर पड़ते हैं, तो उसे संत्रास या ‘पेनिक’ कहा जाता है । ये आम तौर पर केवल कुछ ही मिनट के लिए पड़ते हैं । आम तौर पर संत्रास के दौरे कुछ अचानक शुरू होते हैं । इनमें चिंताग्रस्त के गंभीर शारीरिक लक्षण प्रकट होते हैं और इनसे पीड़ित व्यक्ति को बहुत भय लगता है कि उसके साथ कुछ भयानक होने जा रहा है या वह मरने जा रहा है । संत्रास के दौरे इसलिए पड़ते हैं कि डरे हुए लोग सामान्य के मुकाबले ज्यादा तेजी से सांस लेते हैं । इसके कारण उनके रक्त में रासायनिक बदलाव होते हैं और इन्हीं की वजह से ये लक्षण प्रकट होते हैं ।
• भय या फोबिया तब होता है, जब कोई व्यक्ति किसी खास स्थिति में भयभीत महसूस करता है ( और उस स्थिति में उसे अक्सर फोबिया का दौरा पड़ता है ) । ऐसी आम स्थित्तियों में बाजार और बसों जैसी भीड़ भरी जगहें ( जैसा कि केस 1.3 के मामले में है) , छोटे कमरों या लिफ्ट जैसी छोटी जगहें और लोगों से मिलने जैसी सामाजिक स्थितियां शामिल हैं । फोबियाग्रस्त व्यक्ति अक्सर उस खास स्थिति से बचना शुरू कर देता है । इसके कारण गंभीर मामलों में व्यक्ति घर से बाहर निकलना बिल्कुल बंद कर सकता है ।
• मनोग्रस्ति – मनोबध्यता (ओब्सेसिव-कम्पल्सिव) की अस्वस्थताएं ऐसी स्थितियां हैं जिनमें किसी व्यक्ति के दिमाग में बार-बार वही-वही खयाल आते हैं (मनोग्रस्ति) या व्यक्ति बार-बार वही काम करता है (मनोबाध्यता), जबकि वह व्यक्ति जानता है कि ऐसा सोचना या करना अनावश्यक या मूर्खतापूर्ण है । मनोग्रास्तियाँ और मनोबाध्यताएं इतनी ज्यादा बार घटित होने लगती हैं कि व्यक्ति के दिमाग की एकाग्रता को प्रभावित कर दें । इससे अवसाद की स्थिति पैदा हो सकती है ।
स्वास्थ्य देखभाल स्थलियों में अवसाद और चिंताग्रस्त अनेकों रूपों में प्रकट हो सकती है । इस सम्बन्ध में सलाह तथा इन समस्याओं को नियंत्रित करने के तरीकों के बारे में अध्याय पांच व सात में बताया गया है ।
चिंताग्रस्तता की मुख्य विशेषताएं
चिंताग्रस्त व्यक्ति को निम्न में से कुछ लक्षणों का अनुभव हो सकता है :
शारीरिक
• अपने दिल के तेजी से धड़कने का अहसास
• दम घुटने का अहसास
• सिर चकराना
• कांपना, पुरे शारीर में कंपन
• सरदर्द
• अपने अंगों या चेहरों पर पिनें या सुइयां चुभोने का अहसास
भावनात्मक
• यह महसूस करना कि उसके साथ कुछ भयानक होने जा रहा है ।
• भयभीत महसूस करना
सोच संबंधी
• अपनी समस्याओं का स्वास्थ्य के बारे में बहुत ज्यादा चिंता करना
• यह सोचना कि वह मरने, बेकाबू या पागल होने जा रही है । ( ये सोच अक्सर गंभीर शारीरिक लक्षणों और घोर भय से जुड़े होते हैं )
• न चाहने और नियंत्रित करने की कोशिश के बावजूद किसी परेशान करने वाले विचार के बार-बार सोचना
व्यवहार संबंधी
• उन स्थितियों से बचना जिनमें व्यक्ति को भय महसूस होता है, जैसे बाजार या सार्वजनिक परिवहन
• ठीक से नींद न आना
केस 4
44 वर्षीय माइकेल कई तरह की शारीरिक शिकायतें के साथ कई महीनों से क्लीनिक आ रहा था । उसकी मुख्य समस्या यह थी कि उसे ठीक से नींद नहीं आती, कि सुबह अक्सर उसे उबकाई आती रहती है, कि आम तौर पर उसे अपने स्वस्थ होने का अहसास नहीं होता । एक दिन, पेट में तेज जलन और दर्द की शिकायत लेकर क्लीनिक आया । अम्लरोधियों (एन्टएसिड्स) से उसे पहले जितना फायदा नहीं हुआ । डाक्टर ने उसे देखा अरु अधिक मात्रा में अम्लरोधी, रैनीटीडाइन और पेट के घावों को ठीक करने के लिए एक दावा लिख दी । माइकेल जब क्लीनिक से जाने को हुआ, तब डाक्टर ने देखा कि उसे बहुत पसीना आ रहा था और उसके हाथ जैसे कांप रहे थे । डाक्टर ने माइकेल से पूछा कि क्या उसे कोई और भी दिक्कत थी । माइकेल बैठ गया और रोने लगा । उस ने स्वीकार किया कि उसकी मुख्या समस्या यह रही थी कि पिछले कुछ महीनों से काम के तनाव का सामना करने के लिए वह बढ़ती मात्रा में शराब पीता रहा था । पर अब शराब पीना ही खुद में एक समस्या बन गई थी । बिना शराब पिए वह कुछ घंटे भी नहीं गुजार पाता था ।
समस्या क्या है ? माइकेल शराब का आदि हो गया था । उसकी अनेकों समस्याएं शराब द्वारा उसके शरीर को पहुंचे नुकसान का सीधा नतीजा थीं । कुछ लक्षण ‘विदड्रअल सिम्पटम्स’ के कारण पैदा हुई परेशानी का नतीजा थे ।
केस 5
मुरली 18 साल का एक स्कूल जाने वाला विद्यार्थी था । वह सदा से एक औसत विद्यार्थी रहा था, मेहनती और ईमानदार । लेकिन, पिछले कुछ समय से उसकी माँ ने गौर किया था कि मुरली रात को देर तक बाहर रहने लगा है, उसके स्कूल के ग्रेड गिर रहे हैं और वह ज्यादा पैसा खर्च करने लगा है । पहले हफ्ते उसकी माँ ने पाया कि उसके पर्स से कुछ पैसे गायब हैं । उसे चिंता हुई कि वे मुरली ने चुराए हैं । साथ ही मां ने यह भी गौर किए कि ली अपने पुराने मित्रों और परिवार के साथ कम वक्त गुजार रहा था । नए दोस्तों के गिर्द मंडराता दिखता था जिन्हें उसने अपने माता-पिता से परिचित नहीं कराया था । उसकी माँ ने उसे सलाह दी कि वह किसी काउंसलर से सलाह ले, पर उसने इनकार कर दिया । स्वास्थ्य कार्यकर्ता ने घर में ही मुरली से मिलने का फैसला किया । शुरू में तो ली कोई बात करने को तैयार नहीं हुआ । पर स्वास्थ्य कार्यकर्त्ता पर जैसे-जैसे उसका भरोसा बढ़ता गया, उसने माना कि वह कुछ महीनों से नियमति रूप से हेरोईन ले रहा था और अब उसका आदी हो चुका था । उसने कई बार खुद को रोकने की भी कोशिश की, पर हर बार उसकी तबियत इतनी खराब हुई कि उसने फिर नशीली दावा ले ली । उसके कहा कि उसे मदद की जरुरत है, पर उसे नहीं मालूम कि इसके लिए कहाँ जाए ।
समस्या क्या है ? मुरली हेरोईन का आदी हो गया था । हेरोईन पर इस निर्भरता के कारण, उसका स्कूली परिणाम खराब हुआ था और वह ऐसे दोस्तों के साथ रहने लगा था जो खुद हेरोईन का इस्तेमाल करते थे । नशीली दावा लेने के लिए वह चीजें चुराने लगा था ।
किसी व्यक्ति को शराब या नशीली दवाओं का आदी या उस पर निर्भर तब कहा जाता है जब उनका प्रयोग उस व्यक्ति के शारीरिक, मानसिक या सामाजिक स्वास्थ्य को नुकसान पहुँचाने लगे । अक्सर ऐसे लोगों के लिए इन नशीले पदार्थों के इस्तेमाल को बंद कर देना मुश्किल हो जाता है, क्योंकि ऐसा करने से उन्हें शारीरक परेशानी हो सकती है और उनमें नशीला पदार्थ लेने की तीव्र इच्छा पैदा होती है (विदड्राअल सिन्ड्रोम) । नशीले पदार्थों पर निर्भरता की समस्याएं इससे पीड़ित व्यक्ति, उसके परिवार और अंततः समुदाय को बहुत नुकसान पहुँचती हैं । उदहारण के लिए, शराब न केवल अपने शारीरक प्रभावों के कारने पीने वाले को नुकसान पहुंचती है बल्कि यह आत्महत्या की उच्च दरों, वैवाहिक समस्याओं वे घरेलू हिंसा, सड़क दुर्घटनाओं तथा गरीबी के बढ़ने से भी जुड़ी हुई है । अधिक शराब पीने वाले ज्यादातर लोग शराब के दुरूपयोग के कारण स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं की मदद लेने नहीं आते । इसके बजाय, आपही को सचेत रहते हुए लोगों से उनकी शराब पीने की आदतों के बारे में पूछना होगा, खासकर तब, जब उनकी शिकायतों से आपको संकेत मिलता हो कि बीमारी शराब पीने से जुड़ी हुई है ।
विभिन्न प्रकार की दवाओं का भी दुरूपयोग किया जा सकता है । शराब के अलावा जिन दवाओं का सबसे आम तौर पर दुरूपयोग किया जाता है , वे हैं : कैनेबिस, अफीम और इससे सम्बंधित दवाएं जैसे हेरोईन; कोकीन तथा अन्य उत्तेजक दवाएं जैसे ‘स्पीड’ ; तथा दिमाग को शांत करने वाली दवाएं (सेडेटीव्स)।
अन्य बुरी आदतें भी हैं जो लोगों के स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा सकती है । इनमें धुम्रपान करना, नींद की गोलियां पर निर्भरता तथा जुआ खेलना भी शामिल है ।
बुरी आदतों से सम्बंधित समस्याओं की पहचान करने के तरीकों के बारे में सलाह तथा इनसे पीड़ित लोगों की मदद करने के तरीकों के बारे में आगे बतया गया है ।
मानसिक अस्वस्थता के इस समूह में तीन मुख्य प्रकार के रोगे आते हैं : खंडित मानस (स्किजोफिन्या), उम्मादी – अवसादक अस्वस्थता (मेनिक-डिप्रेसिव डिसऑर्डर जिसे बाइपोलर या धुर्वीय मनोरोग भी कहा जाता है) तथा कुछ समय के लिए होने वाले साइकोसिस या मनोवृतियां । ये रोग बहुत कम होते हैं । लेकिन व्यवहारगत समस्याएं और विचित्र या असाधारण सोच इन रोगों की विशेषताएं हैं । इसीलिए खासकर इन्हीं समस्याओं को मनोरोग के रूप में देखा जाता है । मानसिक चिकित्सालयों में ज्यादातर रोगी साइकोसिस या मनोविकृतियों से पीड़ित होते हैं ।
शराब पर निर्भरता की मुख्या विशेषताएं
शराब पर निर्भर व्यक्ति की निम्न में से कुछ लक्षणों का अनुभव होगा :
शारीरिक
• पेट संबंधी समस्याएं जैसे गैसट्राइटिस तथा अल्सर
• लीवर खराबी और पीलिया
• खून की उल्टी आना
• सुबह उल्टी आना या तबियत खराब होना
• कंपन, खासकर सुबह
• दुर्घटनाएं तथा चोटें
• दौरे, पसीना आना तथा मतिभ्रम जैसे विदड्राअल के लक्षण
भावनात्मक
• असहाय तथा बेकाबू महसूस करना
• नशे में किये गए अपने व्यवहार के बारे में अपराध बोध होना
सोच संबंधी
• शराब पीने की गहरी इच्छा
• पीने के आगले मौके के बारे में लगातार सोचते रहना
• आत्महत्या के विचार मन में आना
व्यवहार संबंधी
• नींद आने में दिक्कत होना
• दिन में पीने की जरुरत
• सुबह पीने की जरुरत ताकि जिस्मानी परेशानी दूर हो सके
नशीली दवाओं के दुरूपयोग की मुख्य विशेषताएं
नशीली दावों के दुरूपयोग करने वाले व्यक्ति को निम्न में से कुछ लक्षणों का अनुभव होगा :
शारीरिक
• सांस संबंधी समस्याएं, जैसे दमा
• अगर व्यक्ति दावा को इंजेक्शन के जरिए लेता है, तो त्वचा संक्रमण और अलसर
• दवा न लिए जाने पर विदड्राअल की प्रतिक्रियाएं, जैसे उबकाई आना, चिंताग्रस्त होना, कंपन, दस्त, पेट में ऐंठन, पसीना आना
भावनात्मक
• असहाय तथा बेकाबू महसूस करना
• नशीली दवाएं लेने की आदत के बारे में अपराध बोध होना
• उदास तथा निराश महसूस करना
सोच संबंधी
• दावा लेने की तीव्र इच्छा
• दावा लेने के अगले मौके के बारे में लगातार सोचना
• आत्महत्या के खयाल
व्यवहार संबंधी
• नींद आने में कठिनाई
• चिडचिड़ापन, जैसे बात-बात पर गुस्सा आना
• दवाएं खरीदने के लिए पैसे चुराना ; पुलिस द्वारा पकड़े जाना
स्किजोफिन्या या खंडित मानस की मुख्य विशेषताएं
खंडित मानस या स्किजोफिन्या से पीड़ित व्यक्ति को निम्न लक्षणों में से कुछ का अनुभव होगा :
शारीरक
• विचित्र शिकायतें, जैसे यह अहसास कि कोई जानवर या विचित्र चीजें शरीर के भीतर हैं
भावनात्मक
• अवसाद
• रोजमर्रा की गतिविधियों में कोई दिचास्पी और उत्साह न होना
• इस बात से डरना कि कोई नुकसान पहुंचाएगा
सोच संबंधी
• साफ-साफ सोचने में कठिनाई होना
• विचित्र बातें सोचना, जैसे कि दूसरे उसे नुकसान पहुँचाने की सोच रहे हैं या उसका दिमाग बाहरी शक्तियों द्वारा नियंत्रित किया जा रहा है ( ऐसी सोचों को डेल्यूजन्स या भ्रांतियां कहा जाता है )
व्यवहार संबंधी
• रोजमर्रा की गतिविधियों से कट जाना
• बेचैनी और चहलकदमी
• आक्रामक व्यवहार
• विचित्र व्यवहार, जैसे कूड़ा इक्कठा करना
• अपनी देखभाल और साफ-सफाई के प्रति लापरवाही
• सवालों के बेतुके और अप्रासंगिक जवाब देना
निराधार कल्पनाएं
• अपने बारे में बातें करती आवाजें सुनना, खासकर अप्रिय आवाजें (हेल्यूसिनेशंस या मतिभ्रम)
• ऐसी चीजें देखना जो दूसरों को दिखलाई नहीं दे रही हों (मतिभ्रम)
मनोन्माद की मुख्य विशेषताएं
मनोन्माद से पीड़ित व्यक्ति को निम्न में से कुछ लक्षणों का अनुभव होगा :
भावनात्मक
• अपने आपको संसार के शिखर पर समझना
• बिना किसी कारण के प्रसन्नता अनुभव करना
• चिडचिडापन
सोच संबंधी
• यह विश्वास करना कि उसके पास विशेष शक्तियां हैं या वह एक विशेष व्यक्ति है
• यह विश्वास करना कि दूसरे उसे नुकसान पहुँचाने की कोशिश कर रहे हैं
व्यवहार संबंधी
• तेजी से बोलना
• सामाजिक रूप से गैर-जिम्मेदार होना, जैसे यौन व्यवहार में असामान्य
• शांत या स्थिर न बैठ पाना
• काम सोना
• काई चीजें कनरे की कोशिश करना, पर उनमें से किसी को भी पूरा न कर पाना
• उपचार से इंकार करना
निराधार कल्पनाएं करना
• ऐसी आवाजें सुनान जिन्हें दूसरे नहीं सुन पाते ( ये आवाजें अक्सर उसे बताती हैं कि वह एक महत्वपूर्ण व्यक्ति है जो महान चीजें कर सकता है )
केस 6
इस्माइल 25 वर्ष की आयु का एक कॉलेज जाने वाला विद्यार्थी था । उसे पिछड़े साल क्लीनिक में लाया गया था । उसने खुद को अपने कमरे में बंद करना शुरू कर दिया था । इस्माइल एक अच्छा विद्यार्थी हुआ करता था, पर वह अपनी पिछली परीक्षा पास नहीं कर पाया था । उसकी मां का कहना था कि वह घंटों टकटकी लगा न जानें कहां देखता रहता । कभी-कभी वह खुद से इस तरह बडबडाते हुए बातें करता जैसे वह किसी काल्पनिक व्यक्ति से बाते कर रहा हो । पिछले साल इस्माइल को उसके माता-पिता को जबरन क्लीनिक में लाना पड़ा । शुरू में उसने नर्स से बात करने से इंकार कर दिया । कुछ देर के बाद उसने माना कि वह सोचता है उसके माता-पिता और पड़ोसी उसे मारने की साजिश कर रहे हैं और शैतान उसके दिमाग में गड़बड़ी मचा रहा है । उसने कहा कि वह अपने पड़ोसियों को अपने दरवाजे के बाहर अपने बारे में बातें करते और गंदी बातें कहते सुनता था । उसने कहा कि उसे लगता है जैसे उस पर किसी प्रेत का कब्जा है, पर उसे समझ नहीं आ रहा की उसे क्लीनिक किसलिए आना चाहिए क्योंकि वह बीमार तो है नहीं ।
समस्या क्या है ? इस्माइल एक गंभीर मानसिक अस्वस्थता से पीड़ित था जिसे स्किजोफिन्या या खंडित मानस कहा जाता है । इसीके कारण उसे आवाजें सुनाई देती थीं और ऐसी चीजें दिखती थीं जिनका कोई अस्तित्व नहीं था ।
स्किजोफिन्या या खंडित मानस एक गंभीर मानसिक अस्वस्थता है जो आम तौर पर 30 की उम्र से पहले शुरू होती है । इससे पीड़ित व्यक्ति आक्रमक हो सकते हैं या अपने में बंद, वे बेतुकी बातें कर सकते हैं और अपने से भी बातें कर सकते हैं । वे दूसरों पर शक कर सकते हैं और विचित्र बातों पर यकीन भी । जैसे यह मानना कि कोई उनके विचारों में हस्तक्षेप कर रहा है । उन्हें मतिभ्रम हो सकते हैं, जैसे ऐसी आवाजें सुनना जिन्हें दूसरे नहीं सुन पा रहे । दुर्भाग्यवश, स्किजोफिन्या के ज्यादातर रोगी इस बात को स्वीकार नहीं करते कि वे एक रोग से पीड़ित हैं और स्वेच्छा से उपचार कराने से इंकार करते हैं । खंडित मानस आम तौर एक लंबी चलने वाली बीमारी है । यह काई महीने या कई साल चलती है और इसमें लंबे उपचार की जरुरत हो सकती है । स्किजोफिन्या या खंडित मानस की मुख्य विशेषताएं बॉक्स 1.5 में दर्शाई गई है ।
केस वर्षीय मारिया को उसके पति के द्वारा क्लीनिक लाया गया था क्योंकि उसने एक सप्ताह पहले से अटपटा व्यवहार करना शुरू कर दिया था । वह औसत को मुकाबले कम सो रही थी और लगातार चलती रहती थी । मारिया ने पहले की तरह कुशलता के साथ घर और बच्चों की देखभाल करना बंद कर दिया था । वह सामान्य से ज्यादा बातें करने लगी थी और अक्सर ऐसी बातें कहती जो असाधारण गर्व भरी होतीं । उद्धरण के लिए, वह कहती रही थी कि वह लोगों की बीमारियों को ठीक कर सकती है और कि वह एक रईस परिवार से संबंध रखती है (हालांकि उसका पति फैक्ट्री में मजदूर था) । वह कपड़ों और श्रृंगार-प्रसाधनों पर भी पहले के मुकाबले ज्यादा खर्च करती रही थी । जब मरिया के पति ने उसे क्लीनिक लेन की कोशिश की तो वह बहुत गुस्से में आ गई और उसे मारने की कोशिश लाने की । आखिरकार, पड़ोसियों ने उसके पति की मदद की और उसे जबरदस्ती क्लीनिक ले आए ।
समस्या क्या है ? मरिया मनोन्माद या मेन्या नाम की एक गंभीर मानसिक अस्वस्थता से पीड़ित थी । इसी के कारण वह शानदार बातों में यकिन कर रही थी । जब उसके पति ने उसे क्लीनिक लाने की कोशिश की, तो वह इसी रोग के कारण गुस्से में आ गई थी ।
मनोन्मादी – अवसादक रोग या द्वितीय अस्वस्थता में मनस्थिति के दो धुर्वों होते हैं : एक में रोगी प्रसन्न होता है और अपने आपको महत्वूर्ण समझता है और दूसरे में वह अवसाद या डिप्रेशन में घिर जाता है । यह रोग आम तौर पर व्यस्कावस्था में होता है और आम तौर पर स्वास्थ्य कार्यकर्ता की निगाह में अपने मनोन्मादी या मोनिक दौर में आता है । इसका अवसादी दौर आम मानसिक अस्वस्थताओं के अवसाद जैसा ही होता है । इस अंतर के साथ कि इस रोग में अवसाद गंभीर रूप धारण कर लेता है । इस स्थिति की एक विशेषता है कि यह घटनात्मक होती है यानि ऐसे भी दौर होते हैं जब रोगी बिल्कुल ठीक रहता है, भले ही वह अपना उपचार न करा रहा हो । यह स्थित्ति खंडित मानस या स्किजोफिन्या के रोगी की स्थिति के बिल्कुल उलट है जिसमें उपचार न होने पर पीड़ित अक्सर रोगी ही बना रहता है ।
केस 7
34 वर्षीय रिकार्ड के तीन दिन पहले अचानक बेतुके तरीके से व्यवहार करना शुरू कर दिया । वह बहुत बेचैन हो गया, निरथर्क बातें और सार्वजानिक जगहों पर अपने कपड़े उतार बेशर्मी भरा व्यवहार करने लगा । इससे पहले वह कभी मानसिक रूप से अस्वस्थ नहीं हुआ था । इस असामान्य व्यवहार के शुरू होने की कुछ दिनों पहले उसे बुखार और सरदर्द जरुर रहा था । जब उसे क्लीनिक में लाया गया, तो वह भ्रमित स्थिति में लगता था । उसे नहीं मालूम था कि वह कहां था । उसे ऐसी चीजें दिखाई दे रही थी जिन्हें दूसरे नहीं देख सकते थे और वह स्वास्थ्य कार्यकर्ता के सवालों के अटपटे जवाब दे रहा था । उसे तेज बुखार भी था । पया गया कि उसे सेरिब्रल यानि दिमागी मलेरिया था ।
समस्या क्या है ? रिकार्ड एक गंभीर मानसिक अस्वस्थता से पीड़ित था जिसे डिलिरियम या सन्निपात कहा जाता है । उसके मामले में यह समस्या मलेरिया द्वारा उसके दिमाग को संक्रमित कर देने के कारण पैदा हुई थी ।
गंभीर या संक्षिप्त साइकोसिस स्किजोफिन्या जैसा ही जान पड़ता है । अंतर इनता है कि यह अचानक से शुरू होता है और इसका प्रकोप संक्षिप्त समय के लिए होता है । इस तरह, इससे पीड़ित ज्यादातर लोग एक महीने के भीतर ही ठीक हो जाते हैं और उन्हें लंबे उपचार की जरुरत नहीं होती । संक्षिप्त साइकोसिस अचानक पैदा हुई किसी तनावपूर्ण घटना का नतीजा होते हैं, जैसे किसी प्रिय व्यक्ति की मृत्यु हो जाना । कभी-कभी कोई गंभीर चिकित्सीय या दिमागी रोग साइकोसिस पैदा कर सकता है । इस स्थिति की भी डिलिरियम या सन्निपात ही कहा जाता है । सन्निपात में अक्सर फौरन चिकित्सीय उपचार की जरुरत होती है ।
गंभीर या संक्षिप्त साइकोसिस की मुख्य विशेषताएं
इसके लक्षण खंडित मानस और मनोन्माद जैसे ही होते हैं । मुख्य बात यह है कि ये लक्षण अचानक से शुरू होते हैं और एक महीने से कम वक्त तक जारी रहते हैं । इसके विशेष लक्षण है :
• व्यवहार में गंभीर असामान्यताएँ पैदा हो जाती हैं, जैसे बेचैनी तथा आक्रमकता
• ऐसी आवाजें सुननी और ऐसी चीजें दिखनी शुरू हो जाती है तो दूसरों को नहीं सुनती और दिखती
• निरथर्क बातें करना
• भयग्रस्त भावनात्मक स्थिति या भावनाओं में तेजी से बदलाव आना (रोते-रोते हंसने लगना)
अब अनेकों स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं ने ‘मेंटल रिटारडेशन’ या ‘मंद्बुद्धिता’ नामक संज्ञा का इस्तेमाल करना बंद कर दिया है । इसके पीछे वजह यह है कि अक्सर इस संज्ञा को भेदभावपूर्ण तरीके से इस्तेमाल किया जाता है । इसके बजाय ‘लर्निंग डिसेबिलिटी’ यानी सीखने की असमर्थता नामक संज्ञा के इस्तेमाल को प्राथमिकता दी जाती है । इस मार्गदर्शिका में हम ‘मेंटल रिटारडेशन’ शब्द का ही इस्तेमाल करेंगे क्योंकि वह देरी से होने वाले मानसिक विकास के लिए व्यापक पैमाने पर इस्तेमाल किया और समझा जाने वाला शब्द है । सुद्ध तकनिकी रोप से मंद्बुद्धिता कोई मनोरोग नहीं है । क्योंकि मनोरोग शब्द का इस्तेमाल किसी ऐसी स्वाथ्य समस्या के लिए किया जाता है जो शुरू और खत्म होती है । इसके उलट, मंद्बुद्धिता एक ऐसी अवस्था या स्थिति है जो शुरूआती बचपन में ही मौजूद होती है और जीवन भर बनी रहती है । मंद्बुद्धिता का अर्थ है कि बच्चे या मानसिक विकास (और इसलिए उसकी मानसिक क्षमताएं) अन्य बच्चों के मुकाबले धीमा है या देर से हो रहा है । मंद्बुद्धिता वाले लोगों को चिंतित संबंधियों द्वारा कई वजहों से स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं के पास लाया जाता है । जैसे, मंदबुद्धि बच्चों / वयस्कों द्वारा अपनी देखभाल करने में आने वाली कठिनाइयों स्कूल में आने वाली मुश्किलों तथा आक्रमक हो जाने जैसे व्यवहार संबंधी समस्याओं के बारे में परामर्श मांगने के लिए ।
केस 8
बेबी रुडो को जन्म देते समय उसकी मां को प्रसव में बहुत कठिनाई से गुजरना पड़ा था । उसकी मां को दो दिन तक प्रसव पीड़ा होती रही । शिशु कोख से बाहर आने के रस्ते में अटक रहा था । गाँव की दाई के यह कहने के बाद कि मां को डाक्टरी मदद की जरुरत है, उसे एक टैक्सी से ऐसे हस्पताल में ले जाया गया जो तीन घंटे की दुरी पर था ।
हस्पताल में डाक्टरों को बच्चे को बाहर निकालने के लिए आपरेशन करना पड़ा । जन्म के बाद बच्ची ने कई मिनटों तक सांस नहीं ली और वह डाक्टरी मदद के कारण ही बच पाई । वह अव्स्तव में बहुत कीमती बच्ची थी ! मां और बाप दोनों ही उसकी बहुत देखभाल करते थे । शुरू के कुछ महीनों तक रुडो बिल्कुल सामान्य जान पड़ी । लेकिन, बाद में माता-पिता ने गौर किया कि उनके बेटे थाबो के मुकाबले वह अपने आप से बैठने और चलने में ज्यादा समय ले रही है । उदहारण के लिए, एक साल की उम्र में ही थाबो ने चलना सीख लिया था, जबकि रुडो ने करीब दो साल की उम्र में चलना शुरू किया । उसने बोलना भी देर से शुरू किया ।
समस्या क्या है ? डॉक्टर ने सावधानी के साथ समझाया कि रुडो मंदबुद्धिता से पीड़ित थी । और ऐसा शायद इसलिए हुआ था कि प्रसव के कठिन समय में मां को हस्पताल में देरी से लाने के कारण रुडो के दिमाग को नुकसान पहुंचा था ।
मंद्बुद्धिता के अनेकों स्तर हो सकते हैं
• हल्की मंद्बुद्धिता के परिणामस्वरुप केवल पढ़ाई संबंधी कठिनाइयां आ सकती हैं, दूसरी नहीं ;
• मध्यम स्तर की मंद्बुद्धिता के कारण स्कूली व्यवस्था में बने रहने में असफलता और अपनी देखभाल, जैसे नहाने संबंधी कठिनाइयां पैदा हो सकती हैं ।
• गंभीर मंद्बुद्धिता का अक्सर अर्थ होता है कि उस व्यक्ति को खाने जैसी साधारण सी चेष्टाओं में भी मदद की जरुरत होगी ।
जहाँ हल्की मंद्बुद्धिता वाले व्यक्ति पूरा जीवन स्वास्थ्य कार्यकर्त्ता के पास जाए बिना गुजारने में असमर्थ हो सकते हैं, गंभीर मंद्बुद्धिता से पीड़ित व्यक्तियों की पहचान उनकी गंभीर असर्मथता के कारण बचपन में ही हो जाती है । जहाँ हल्की मंद्बुद्धिता से ग्रस्त व्यक्ति अकेले रह सकते हैं और कुछ खास किस्म के काम कर सकते हैं वहीं गंभीर मंद्बुद्धिता से पीड़ित व्यक्तियों को लगभग हमेशा किसी की मदद और देखभाल की जरुरत रहेगी ।
डिलिरियम या सन्निपात (चिकित्सीय या दिमागी बीमारी के कारण पैदा हुआ गंभीर साइकोसिस)
सन्निपात से पीड़ित व्यक्ति को निम्न में से कुछ लक्षणों का अनुभव होगा :
• समय और स्थान को लेकर भ्रम होना
• बुखार, बहुत पसीना आना, नब्ज का तेजी से चलना और अन्य शारीरिक लक्षण
• याददाश्त का कमजोर होना
• नींद के क्रम का बिगड़ना
• ऐसी चीजें देखना जिन्हें दूसरे नहीं देख सकते
• ऐसे लक्षण जो घंटे-घंटे में बदलते रहते हैं, ऐसे दौर आते हैं जब लगता है कि रोगी ठीक हो गया, लेकिन उसके बाद लक्षण और गंभीर रूप से प्रकट होते हैं
मंदबुद्धि की मुख्य विशेषताएं :
मंदबुद्धि व्यक्ति को निम्न से कुछ लक्षणों का अनुभव होगा :
• जिंदगी में मील का पत्थर मानी जाने वाली कुछ चीजों को सीखने में देरी, जैसे बैठना, चलना और बोलना
• स्कुल में कठिनाई, खासकर पढ़ने में और बारम्बार असफलता
• दूसरों से संबंध बनाने में कठिनाई. खासकर अपनी उम्र के बच्चों से
• किशोरावस्था में असंगत यौन व्यवहार
• वयस्कावस्था में खाना बनाने, पैसे का हिसाब रखने, नौकरी पाने उसे बनाए रखने जैसी रोजमर्रा की गतिविधियों में कठिनाइयां
केस 9
रमन एक 70 वर्षीय सेवानिवृत पोस्टमैन थे और वे अपने बेटे-बहु के साथ रहते थे । उनकी पत्नी करीब 10 साल पहले मर चुकी थी । पिछले कुछ सालों से रमन लगातार भुल्लकड़ होते जा रहे थे । उनके परिवार ने इसे केवल बुढ़ापे का एक लक्षण भर माना । लेकिन उनकी भुलक्कड़ी दिनों-दिन बढ़ती गई और एक दिन ऐसा आया कि वे अपने घर के करीब ही घर का रास्ता भूल गए । वे अपने संबंधियों के नाम भूलने लगे, यहां तक कि अपने चहेते पोते-पोतियों के नाम तक । यह अंदाजा लगाना मुश्किल हो गया कि वे अब क्या करेंगे । कुछ दिन होते जब वे चिड़चिडे हो जाते और बहुत जल्द गुस्से में आ जाते । कुछ दिन होते कि वे घंटों बिना कुछ कहे बैठे रहते । रमन का शारीरिक स्वास्थ्य खराब होने लगा और एक दिन उन्हें दौरा पड़ा । रमन का बेटा उन्हें हस्पताल लाया जहां उनके दिमाग की विशेष स्कैनिंग हुई । इससे पता लगा कि उनके दिमाग की संरचना में बदलाव आए हैं । इससे पुष्ट हुआ कि उन्हें डिमेंशिया या मतिभ्रंश रोग हो गया था ।
डिमेंशिया या मतिभ्रंश की मुख्य विशेषताएं
डिमेंशिया से पीड़ित व्यक्ति (जिस की उम्र अक्सर 60 साल से ज्यादा होगी) में निम्न में से कुछ लक्षण दिखाई देंगे :
• मित्रों व संबंधियों के नामों जैसी महत्वपूर्ण चीजों को भूल जाना
• गाँव या गहर जैसे अपने परिचित क्षेत्रों में रास्ता भूल जाना
• चिडचिडा हो जाना या आसानी से गुस्से में आना
• अपने गुम या निराश दिखना
• बिना किसी कारण के रोना या हंसना
• समय और स्थान की खबर न रहना
• अतार्किक या असंगत बातें करना
समस्या क्या है ? रमन एक खास किस्म के दिमागी रोग से पीड़ित थे जो आम तौर पर बूढ़े लोगों में पाया जाता है । इस डिमेंशिया या विस्मरण कहा जाता है । यह रोग भूलने की समस्या से शुरू होता है । समय के साथ-साथ स्थिति बिगड़ती जाती है और अंततः व्यवहार संबंधी समस्याएं पैदा हो जाती हैं ।
बुजुर्ग लोग अक्सर दो किस्म के मनोरोगों से पीड़ित होते हैं । उनमें से एक अवसाद है जो अक्सर अकेलेपन, शारीरिक अस्वस्थता, असमर्थता तथा गरीबी के कारण पैदा होता है । यह अवसाद बाकी उम्रों में होने वाले अवसाद जैसा ही होता है । बुजुर्गों का दूसरा मानसिक रोग डिमेंशिया या मतिभ्रंश है । यह खास रूप से बुजुर्गों में होने वाले रोग हैं ।
कुछ किस्म की मानसिक स्वास्थ्य केवल बच्चों में पाई जाती है । वे निम्न हैं :
• डिस्लेक्सिया जो बच्चों की सीखने की क्षमताओं को प्रभावित करता है ;
• हाइपरएक्टिविटी या अतिचंचलता जिसमें बच्चा अति सक्रिय हो जाता है ;
• व्यवहार संबंधी समस्याएं जिनमें बच्चे सामान्य से ज्यादा अभद्र व्यवहार करते हैं ;
• अवसाद जिसमें बच्चे उदास और नाखुश हो जाते हैं ;
• बिस्तर गिला करना जिसमें बच्चे उस उम्र में बिस्तर में पेशाब करते हैं, जिसमें ऐसा नहीं करना चाहिए ।
आपके सामने एक बच्चे भी आएंगे जो दुर्व्यवहार का शिकार रहे हैं ।
याद रखने योग्य मुख्य बात यह है कि मंद्बुद्धिता के विपरीत, बच्चों की मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं अक्सर सुधर जाती हैं और कुछ बच्चे बिल्कुल ठीक हो जाते हैं । इसलिए, यह मान कर चलना बहुत महत्वपूर्ण है कि व्यवहार संबंधी समस्या से ग्रस्त हर बच्चा मंद्बुद्धिता का शिकार नहीं है ।
बच्चों में मनोरोग के मुख्य लक्षण
बच्चों के मनोरोग का संकेत देने वाले मुख्य लक्षण निम्न हैं :
• सामान्य बुद्धिमत्ता होने के बावजूद जो बच्चा पढ़ने में ठीक प्रगति नहीं कर रहा है
• ऐसा बच्चा जो हमेशा बेचैन रहता है और एकाग्र नहीं हो सकता
• ऐसा बच्चा जो लगातार दूसरे बच्चों से लड़ता-झगड़ता रहता है
• ऐसा बच्चा जो दूसरे बच्चों से अलग-थलग और अपने में रहता है और खेलता नहीं
• ऐसा बच्चा दो स्कुल जाने से इंकार करता है
अनेकों संस्कृतियों में मानसिक अस्वस्थता के कारणों को समझने के लिए चिकित्सीय और पारंपरिक, दोनों ही तरह की व्याख्याओं का इस्तेमाल किया जाता है । व्याख्या के पारंपरिक मॉडल अध्यात्मिक या परा-प्राकृतिक कारणों से संबंधित होते हैं, जैसे आत्माएं या जादू-टोना ।आपको अपनी संस्कृति में प्रचलति ऐसी पारंपरिक मान्यताओं की जानकारी होनी चाहिए । पर इसके साथ ही आपको चिकित्सीय सिद्धांतों की भी जानकारी होनी चाहिए और अपने पास परामर्श के लिए आने वाले रोगियों के मनोरोगों की व्याख्या करने और उन्हें समझने में इनका इस्तेमाल करना चाहिए । मनोरोग पैदा करने वाले निम्नलिखित मुख्य कारणों को ध्यान में रखना उपयोगी साबित होगा :
• जीवन में तनावपूर्ण घटनाएं । जीवन अनुभवों और घटनाओं से भरा है । इनसे से कुछ व्यक्ति को चिंतित कर सकती है और तनाव में डाल सकती है । ज्यादातर लोग सीख लेते हैं कि ऐसी घटनाओं का सामना कैसे किया जाए और जीवन को कैसे जारी रखा जाए । लेकिन, कभी-कभी वे मनोरोग का कारण बन सकती है । बेरोजगारी, किसी प्रियजन की मृत्यु, कर्जदार होने जैसी आर्थिक समस्याएं, अकेलेपन बांझपन या नपुंसकता, वैवाहिक झगड़ा, हिंसा और मानसिक अघात ऐसी समस्याएं हैं जो बहुत ज्यादा तनाव पैदा करती है ।
• कठिन पारिवारिक पृष्ठभूमि । हिंसा या भावनात्मक उपेक्षा के कारण जिन लोगों का बचपन दुःख भरा रहा हो, उन लोगों के बाद के जीवन में अवसाद और चिंताग्रस्त जैसे मनोरोगों से पीड़ित होने की कहीं ज्यादा संभावना होती है ।
• दिमागी बीमारियां । दिमागी संक्रमण, एड्स, सिर में चोटें, मिरगी तथा स्ट्रोक के परिणाम स्वरुप मंद्बुद्धिता, मनोभ्रंश तथा भावनात्मक समस्याएं पैदा हो सकती हैं । अभी तक अनेकों मनोरोगों के लिए किसी निश्चित मस्तिष्क रोगविज्ञान की पहचान नहीं हो सकी है । लेकिन, यह दर्शाने के लिए सुबूत हैं कि अनेकों मनोरोग न्यूरोट्रांसमीटर्स जैसे मष्तिष्क के रसायनों में बदलाव से संबंध रखते हैं ।
• अनुवांशिक या जींस । कई मानसिक अवस्थताओं में अनुवांशिक एक महत्वपूर्ण कारण होती है । लेकिन अगर माता-पिता में से केवल एक ही मनोरोग से पीड़ित हो, तो बच्चे में उस मनोरोग के पैदा होने की संभवना बहुत कम होती है । इसका कारण यह है कि मधुमेह और ह्रदय रोग जैसे पर्यावरणीय कारणों से भी प्रभावित होते हैं ।
• चिकित्सीय समस्याएं । गुरदे और लीवर के खराब हो जाने जैसी शारीरिक बीमारियां कभी-कभी गंभीर रोगों को जन्म दे सकती हैं । कुछ दवाएं ( जैसे उच्च रक्त चाप के उपचार के लिए दी जाने वाली कुछ दवाएं) अवसाद की बीमारी पैदा कर सकती हैं । कुछ दवाएं ज्यादा मात्रा में बुजुर्गों को दी जाने पर डिलिरियम या सन्निपात को जन्म दे सकती है ।
संस्कृति अनेकों तरह से मानसिक स्वास्थ्य से संबंधित मुद्दों को प्रभावित कर सकती है ।
• मानसिक अस्वस्थता क्या होती है ? मनोरोग क्या होता है, इस बारे में विभिन्न संस्कृतियों की अपनी-अपनी अवधारणाएं हैं । अस्वस्थता के जिन रूपों को अक्सर मनोरोग से जोड़ा जाता है, वे खंडित मानस (स्किजोफिन्या) तथा मनोन्माद जैसी गंभीर मानसिक अस्वस्थताएं हैं । आम तौर पर या सामुदायिक स्वास्थ्य देखभाल में सबसे आम मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं सबसे आम मनोरोग और शराब व नशीली दवाओं की लत से जुड़ी समस्याएं हैं । इन अवस्थताओं को अक्सर मनोरोगों के रूप में नहीं देखा जाता । हालांकि आपको इन मनोरोगों के प्रति सचेत रहना चाहिए, पर आपको मनोरोग जैसा सामाजिक लांछन पैदा करने वाला बिल्ला पीड़ित व्यक्ति पर चिपका, उसकी समस्याओं को और नहीं बढ़ा देना चाहिए । इसके बजाय, आपन इन रोगों का निदान बताते समय तनाव या भावनात्मक परेशानी का वर्णन करने के लिए किन्हीं स्थानीय रूप से उचित शब्दों या लेबलों का इस्तेमाल कर सकते हैं ।
• भावनात्मक संकट कर वर्णन करने के लिए इस्तेमाल किये जाने वाले शब्द । मानवीय भावनाओं तथा रोगों का वर्णन करने वाले शब्दों का विभिन्न भाषाओं में अनुवाद करना आसान काम नहीं है । ‘डिप्रेशन’ शब्द को ही लें । इस शब्द का अर्थ है, उदासी और इसका इस्तेमाल एक भावना (‘आई फील डिप्रेस्ड’ यानी मैं उदास हूँ) और एक रोग (‘द पेशेंट इस सफरिंग फ्रॉम डिप्रेशन’ यानी मरीज अवसाद से पीड़ित है ) कर वर्णन करने के लिए किया जाता है । पर अनेकों भाषाओं में उदासी की भावना को व्यक्त करने के लिए तो शब्द हैं, पर अवसाद की बीमारी के वर्णन के लिए शब्द नहीं है । इसलिए , महत्वपूर्ण है कि आप डिप्रेशन को एक भावना तथा एक रोग के रूप में वर्णित करने वाले स्थानीय भाषा के सही शब्दों को जानें । कभी-कभी इन दो अर्थों के लिए दो अलग-अलग शब्द मिल सकते हैं । कभी-कभी एक रोग के डिप्रेशन का अर्थ दूसरे को समझने के लिए आपको अनेकों शब्दों का इस्तेमाल करना पड़ सकता है । इस मार्गदर्शिका में दी गई शब्द सूची में विभिन्न मनोरोगों और उनके लक्षणों के लिए अंग्रेजी में इस्तेमाल किये जाने वाले शब्द दिए गए हैं । हर शब्द के आगे खाली जगह छोड़ी गई है ताकि पाठक अपनी स्थानीय भाषा में इस शब्द का अर्थ और उसका पर्यायवाची लिख सकें ।
• जादू-टोना तथा बुरी आत्माओं के बारे में मान्यताएं या विश्वास । अनेकों समाजों में लोगों को लगता है कि उनकी बीमारी जादू-टोने या बुरी आत्माओं के कारण है या किसी दैवीय कारण का नतीजा है । इस तरह के नजरियों को चुनौती देने का कोई फायदा नहीं । इस तरह करने से रोगी व्यक्ति असुविधा ही महसूस करेगा । इसके बजाय, इन विश्वासों और मान्यताओं को समझने और चिकित्सीय सिद्धांत को सरल भाषा में समझना ज्यादा बेहतर होगा ।
• पादरी, नबी और मनोचिकित्सक: संकट में होने पर लोग क्या करते हैं ? बीमारी लोग अनेक तरह के वैकल्पिक धार्मिक तथा पारंपरिक स्वास्थ्य देखभाल सेवाएं प्रदान करने वाले लोगों की मदद लेते हैं । उदहारण में शामिल हैं : चीनी औषधिशास्त्री, अध्यात्मिक उप्चार्कर्ता, शमन, पादरी, पुरोहित तथा नबी । ऐसा काई कारणों से होता है । पहला कारण, चिकित्सीय स्वास्थ्य देखभाल के पास सभी स्वास्थ्य समस्याओं के जबाव नहीं है और मानसिक रोगों के बारे यह बात खासकर सही है । दूसरे , अनेकों लोग अपनी भावनात्मक परेशानी को अध्यात्मिक या सामाजिक कारकों से जोड़ कर देखते हैं इसलिए गैर-चिकित्सीय व्यक्तियों की मदद लेते हैं । कुछ लोग चिकित्सीय उपचारों के मुकाबले, पारंपरिक उपचार से जल्दी ठीक हो सकते हैं ।
• मानसिक स्वास्थ्य समस्या से पीड़ित व्यक्तियों को परामर्श देना । अनेकों पश्चिमी समाजों में भावनात्मक समस्याओं का सामना कर रहे लोगों को परामर्श दिया जाता है । यह ऐसा मनोवैज्ञानिक सिद्धांतों पर आधारित है जो उन्हीं संस्कृतियों के भीतर से विकसित हुए हैं । अनेकों गैर-पश्चिमी देशों की संस्कृतियों के लिए ये सिद्धांत बाहरी हैं । लेकिन, इसका अर्थ नहीं कि परामर्श चिकित्सा पधातियाँ इन संस्कृतियों में उपयोगी नहीं होंगी । आपको ऐसी पद्धतियां और संसाधन तलाशने होंगे जिनकी जड़ें आपकी अपनी संस्कृति में हों, क्योंकि इस बात की ज्यादा संभावना है कि आपके यहाँ ये पद्धतियाँ ज्यादा स्वीकार की जाएं । इस मार्गदर्शिका में परामर्श के केवल एक ऐसे सरल रूप का वर्णन किया गया है जो सभी संस्कृतियों में अपनाया जा सकता है ।
मनोरोग के बारे में याद रखने योग्य बातें
• अलग-अलग तरह के अनेकों मनोरोग हैं । मनोरोग गंभीर असमर्थता पैदा कर सकते हैं और मृत्यु का कारण भी बन सकते हैं ।
• सामुदायिक और सामान्य स्वास्थ्य देखभाल स्थलियों में जो मानसिक अस्व्स्थताएं सबसे ज्यादा देखने को मिलती है, वे आम मानसिक अस्व्स्थताएं, शराब की लत से संबंधित समस्याएं हैं ; लेकिन संभव है कि अनेकों रोगी और स्वास्थ्य कार्यकर्ता इन स्थितियों को मानसिक अस्वस्थताएं, शराब की लत से सम्बंधित समस्याएं हैं ; लेकिन संभव है कि अनेकों रोगी और स्वास्थ्य कार्यकर्त्ता इन स्थितियों को मानसिक अस्वस्थाएं न मानें ।
• खंडित मानस, मनोन्मादी – अवसाद रोग, तथा गंभीर मनोविकृतियाँ ऐसी अवस्थाएं हैं जिन्हें इनसे पैदा होने वाली व्यवहारगत असामान्यताओं के कारण समुदाय तथा स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं द्वारा मनोरोग माना जाता है ।
• तनावपूर्ण घटनाएं, मस्तिष्क के संचालन में बदलाव तथा मस्तिष्क संक्रमण जैसे चिकित्सीय कारण मनोरोग की मुख्य वजहें हैं ।
• कुछ लोग विश्वास कर सकते हैं कि आत्माएं या दैवीय कारक मनोरोग पैदा करते हैं । आपको इन विश्वासों को चुनौती नहीं देनी चाहिए । इसकी बजाय इन समस्याओं की चिकित्सीय व्याख्या को समझाने की कोशिश करनी चाहिए ।
• जरुरी नहीं कि जिस व्यक्ति का अपने मनोरोग के लिए निदान किया है, उस पर मनोरोगी का बिल्ला लगाएं । महत्व इस बात का है कि आप मानसिक संबंधी समस्या को पहचान लें, उसकी किस्म की पहचान करने की कोशिश करें और उसके बाद सही उपचार करें ।
“जब यह पहली बार हुआ, तो मैं बहुत ही डर गई । मैं बस में बैठी थी कि अचानक मेरा दिल इतनी जोर से धड़कने लगा कि मुझे लगा मुझे दिल का दौरा पड़ रहा है । मुझे सांस लेने में मुश्किल हो रही थी और उसके बाद मुझे लगा जैसे मेरे हाथों और पैरों पर च्यूंटीयां रेंग रही हो
मेरा दिल और भी जोरों से धड़कने लगा, मेरा शरीर जैसे गर्म हो गया । मैं सारी की सारी कांप रही थी । मुझे बस से उतरना पड़ा । पर वह इतनी तेज दौड़ रही थी कि एकदम से नहीं रुकी । मेरा दम घुटने लगा । मेरा सबसे बड़ा डर यह था कि कहीं मैं मर ना जाऊं” पागल न हो जाऊं । तब बस रुकी और मैं उससे नीचे उतरने के लिए लपकी, हालांकि में घर से अभी काफी दूर थी । उसके बाद से मैं कभी बस में सवान नहीं हो पाई ....बस में सवार होएं के ख्याल भर से मैं पगला जाती हूँ । पिछले दो सालों से मैंने इस डर से घर से बाहर निकलना ही बंद कर दिया है और अब मेरा कोई दोस्त या सामाजिक जीवन नहीं है ....मुझे नहीं मालूम था कि मैं क्या करूं और मनोचिकित्सक के पास जाने में मुझे डर लगता था ....आखिर में कोई मेंटल केस तो हूँ नहीं ।” एक 24 वर्षीय महिला जिसे संत्रास और फोबिया के दौरे पड़ते थे ।
“मैं सिर्फ 17 साल का था जब मुझे पहली बार आवाजें सुनाई देनी शुरू हुई । शुरू में मुझे पक्के तौर पर नहीं मालूम था कि वे आवाजें असली थी या मेरे दिमाग की उपज । पर बाद में, मैं अजनबियों को अपने बारे में बातें करते सुनता, दुश्मनी भर बातें । एक बार मैंने एक आवाज सुनी जो मुझे कुएं में कूदने के लिए कह रही थी और मैं कई दिनों तक कुएं के पास जा कर खड़ा हुआ, यह सोचता हुआ कि मुझे उस आवाज का कहना मानना चाहिए । मैं सोचा करता कि मेरे दिमाग को टीवी नियंत्रित कर रहा है और कभी-कभी मुझे पक्का यकीन होता कि मेरे खाने में जहर है और मुझे मारने के लिए गुंडे घूम रहे हैं । मुझे गुस्सा आया रहता और यह तभी कि बात है कि मैंने अपने पड़ोसी को बुरी तरह मारा । तब मुझे हस्पताल ले जाया गया ।” खंडित मानस से पीड़ित एक 23 वर्षीय नवयुवक ।
“यह सब धीरे-धीरे शुरू हुआ और तब तक मुझे पता लगता मैं जिंदगी में दिलचस्पी पूरी तरह खो बैठी थी । यहाँ तक कि अपने बच्चों और परिवार से भी मैं खुश नहीं हो पाती थी । मैं हर वक्त थकी रहती थी । मैं सो नहीं पाती थी, मैं सुबह 2 या 3 बजे उठ जाती और उसके बाद करवटें बदलती रहती । मुझे खाना बहुत अच्छा लगा करता था, पर मुझे उसमें स्वाद आना बंद हो गया और मेरा वजन घट गया । पढ़ने तक में में दिलचस्पी नहीं बची क्योंकि में ध्यान ही नहीं लगा पाती थी । मेरे सर में दर्द रहता । मुझे इतनी सुस्ती महसूस होती कि लगता मैं अपने घर वालों पर बोझ हूँ । और इसी तरह की बातें महसूस होती । सबसे बुरी बात यह थी कि मैं जो महसूस करती थी, उसे ले शर्मिंदा होती थी, पर किसी से कुछ नहीं कह पाती थी ...मेरी सास शिकायत किया करती कि मैं अपन पति को बता दिया .....मैंने जब से खुद को बीमार महसूस करना शुरू किया, यह उसके दो महीने बाद की बात है । “अवसाद से पीड़ित एक 43 वर्षीय महिला” ।
“मुझे लगा करता कि मुझमें इतनी ऊर्जा है कि मुझे सोने की बिल्कुल भी जरुरत नहीं । दरअसल, उन दिनों में लगभग नहीं ही सोया करता था । मैं अपनी तमाम योजनाओं को लेकर भागदौड़ करता, पर मैं किसी को भी ठीक से पूरा कर नहीं पाया । अगर कोई मुझे रोकने की कोशिश करता, तो मुझे गुस्सा आ जाता । एक बार मैं अपनी एक अजीबो-गरीब योजना को लेकर अपने बिजनेस पार्टनर से बुरी तरह लड़ बैठा । पर जब मेरे हौसले बुलंद होते तो, मुझे बिल्कुल पता नहीं लगता था कि मैं कितना गलत कर रहा हूँ । कभी-कभी मुझे यह भी लगता कि मेरे पास लोगों की बीमारियों को ठीक करने की विशेष शक्ति है । मेरी बीमारी के बारे में सबसे बुरी बात है कि मैं ढेरों पैसा खर्च कर देता था और मैंने अपने परिवार को लगभग दिवालिया बना दिया” । मनोन्माद से पीड़ित एक 38 वर्षीय युवक ।
“मुझे नहीं मालूम कि क्या हो रहा है । मैं बहुत आसानी से चीजें भूल जाता हूँ । अभी उस दिन की बात है कि मेरी पत्नी मुझे सुबह की चाय देने के लिए आई और एक पल के लिए मैं समझ ही नहीं पाया कि वह कौन है । और उसके बाद, मैं बाजार से घर आ रहा था और हालांकि में अपने गावं में ही था, पर अचानक मैंने पाया कि मुझे नहीं पता कि में कौन हूँ । मैं हमेशा सोचा करता कि बूढ़े होने के साथ मेरा दिमाग एकाग्र नहीं रहता, पर यह तो हद हो गई ...और फिर मुझे मेरे पिता या आय जो अपनी यादाश्त खोने के बाद मरे थे और अब मुझे दर लगता है कि कहीं मुझे भी वही समस्या न हो जाए । “मतिभ्रंश से पीड़ित एक 38 वर्षीय बुजुर्ग ।
“मेरी समस्या मेरी नौकरी से शुरू हुई जब मैंने बीमारी की वजह से बहुत ज्यादा छुट्टियाँ लेनी शुरू कर दीं । मेरा पेट ख़राब होता रहता है और हाल ही में मुझे पीलिया हो गया । तब मुझे अपनी शराब पीने की आदत के बारे में चिंता होनी शुरू हुई । मुझे सबसे ज्यादा डर इस बात से लागता है कि जब में उठता हूँ मुझे बहुत परेशानी महसूस होती है । मुझे लगता है कि मुझे अपने को सक्रिय रखने के लिए शराब पीनी होगी । इन दिनों मैंने लंच से पहले ही पीनी शुरू कर दी है । मुझे ठीक से नहीं मालूम कि मैं कितनी पी रहा हूँ, पर जितनी भी पी रहा हूँ, वह काफी नहीं लगती ।” शराब पीने की लत से पीड़ित एक 44 वर्षीय व्यक्ति ।
स्त्रोत: वीहाई, ज़ेवियर समाज सेवा संस्थान
अंतिम बार संशोधित : 2/21/2020
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