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उत्तर प्रदेश क्षेत्र पंचायत तथा जिला पंचायत अधिनियम

उत्तर प्रदेश क्षेत्र पंचायत तथा जिला पंचायत अधिनियम

  1. परिचय
  2. अधिनियम
  3. संक्षिप्त शीर्षनाम, प्रसार तथा प्रारम्भ
  4. ग्राम्य क्षेत्रों का खण्डों में विभाजन
  5. खण्डों में परिवर्तन का प्रभाव
  6. क्षेत्र पंचायत की स्थापना और उसका निगमन
  7. उत्तरांचल राज्य संशोधन
  8. स्थानों का आरक्षण
  9. क्षेत्र पंचायत की निर्वाचक नामावली
  10. मत का अधिकार
  11. क्षेत्र पंचायत का प्रमुख और उप–प्रमुख
  12. प्रमुखों के पदों का आरक्षण
  13. क्षेत्र पंचायत और उसके सदस्यों का कार्यकाल
  14. प्रमुख तथा उप–प्रमुख का कार्यकाल
  15. कुछ मामलों में अस्थायी व्यवस्था
  16. क्षेत्र पंचायत का संघठन तथा पुनस्संघठन
  17. प्रमुख, उप–प्रमुख या सदस्य का त्याग-पत्र
  18. आकस्मिक रिक्तियों की पूर्ति
  19. क्षेत्र पंचायत की सदस्यता के लिये अनर्हता
  20. सदस्यता या अनर्हता के सम्बन्ध में विवाद
  21. प्रमुख या उप–प्रमुख में अविश्वास का प्रस्ताव
  22. प्रमुख या उप–प्रमुख का हटाया जाना
  23. जिला पंचायत
  24. जिला पंचायत की रचना
  25. उत्तरांचल राज्य संशोधन - धारा 18(1)(ख)
  26. स्थानों का आरक्षण
  27. मत का अधिकार
  28. अध्यक्ष और उपाध्यक्ष
  29. अध्यक्षों के पदों का आरक्षण
  30. जिला पंचायत और उसके सदस्यों का कार्यकाल
  31. अध्यक्ष और उपाध्यक्ष का कार्यकाल
  32. भ्रष्टाचार के कारण अनर्हता
  33. अध्यक्ष, उपाध्यक्ष या सदस्य का त्याग-पत्र
  34. आकस्मिक रिक्ति की पूर्ति
  35. सदस्य या अध्यक्ष होने के लिये अनर्हता
  36. सदस्यता या अनर्हता के सम्बन्ध में विवाद
  37. प्रमुख, या, अध्यक्ष या उपाध्यक्ष होने या बने रहने के लिये विधायकों तथा कतिपय पदधारियों पर रोक
  38. एक साथ एक से अधिक पद धारण करने का निषेध
  39. एक साथ दो पद धारण करने पर अग्रेतर रोक
  40. अध्यक्ष या उपाध्यक्ष में अविश्वास का प्रस्ताव

परिचय

उत्तर प्रदेश विधान सभा द्वारा हिन्दी में 14 सितम्बर, 1960 को तथा उत्तर प्रदेश विधान परिषद् द्वारा संशोधन सहित 1 मई, 1961 को पारित, जो उत्तर प्रदेश विधान सभा द्वारा 19 मई, 1961 को स्वीकार कर लिये गये। भारत के संविधान के अनुच्छेद 201 के अधीन राष्ट्रपति की स्वीकृति 29 नवम्बर, 1961 को प्राप्त हुई तथा दिनांक 3 दिसम्बर, 1961 को उत्तर प्रदेश असाधारण गजट में प्रकाशित हुआ उत्तर प्रदेश में क्षेत्र (पचायतों और जिला पंचायतों) की स्थापना की व्यवस्था करने के लिये । अधिनियम सं0 9, 1994 द्वारा संशोधित हुआ जो कि उ0प्र0 असाधारण गजट भाग 1 (क) दिनांक 22-4-94 को प्रकाशित हुआ। उद्देश्यों व कारणों के विवरण के लिये 18 अगस्त, 1960 का उत्तर प्रदेश असाधारण गजट देखिये।

अधिनियम

उ0प्र0 अधिनियम सं0 26, 1947 - यह इष्टकर है कि शासकीय कृत्यों के लोकतन्त्रात्मक विकेन्द्रीकरण के सिद्धान्त को आगे बढ़ाने, ग्राम्य क्षेत्रों में सम्यक् स्थानीय शासन सुनिश्चित करने और यूनाइटेड प्राविंसेज पंचायत राज एक्ट, 1947 के अधीन स्थापितग्राम सभाओं के अधिकारों तथा कृत्यों काक्षेत्र पंचायतों तथा जिला पंचायतों से समन्वय करने के लिये खण्ड तथा जिला स्तरों पर कुछ शासकीय कृत्यों के सम्पादनार्थ उत्तर प्रदेश के जिलों में क्रमशः क्षेत्र पंचायतों तथा जिला पंचायतों की स्थापना की व्यवस्था की जाय;

अतएव भारतीय गणतन्त्र के बारहवें वर्ष में निम्नलिखित अधिनियम बनाया जाता है -

संक्षिप्त शीर्षनाम, प्रसार तथा प्रारम्भ

(1) यह अधिनियम उत्तर प्रदेश क्षेत्र पंचायत तथा जिला पंचायत अधिनियम, 1961 कहलायेगा।

(2) इस प्रसार समस्त उत्तर प्रदेश में होगा।

(3) उपधारा (2) में किसी बात के होते हुये भी, राज्य सरकार, यह समाधान हो जाने पर कि राष्ट्रीय आपात के कारण या देश या उसके किसी भाग की सुरक्षा या अभिरक्षा के परिरक्षण के लिये ऐसा करना वांछनीय है, गजट में अधिसूचना द्वारा उत्तर प्रदेश के किसी जिले या जिले के किसी भाग के संबंध में इस अधिनियम का प्रवर्तन निलम्बित या प्रतिसंहृत कर सकती है या निदेश दे सकती है कि इस अधिनियम के उपबन्ध परिवद्धनों, लोप या परिवर्तनों के रूप में ऐसे परिष्कारों के साथ उस क्षेत्र पर प्रवृत्त होंगे जो राज्य सरकार विनिर्दिष्ट करे और तदुपरान्त जब तक कि अधिसूचना निरस्त न कर दी जाय, यथास्थिति, ऐसे जिले या उसके किसी भाग पर अधिनियम का प्रवर्तन निलम्बित या प्रतिसहृत रहेगा या अधिनियम उपबन्ध उक्त प्रकार से विनिर्दिष्ट परिष्कारों के साथ प्रवृत्त होंगे 2. परिभाषाएँ - विषय या प्रसंग में कोई बात प्रतिकूल न होने पर इस अधिनियम में -

1)अनुसूचित जातियों का तात्पर्य उन जातियों से है जो भारत का संविधान के प्रयोजनों के लिये अनुसूचित जातियॉ समझी जायें;

2)अनुसूचित बैंक का वही अर्थ होगा जो रिजर्व बैंक आफ इण्डिया एक्ट, 1934 में शिड्यूल्ड बैंक का है;

3)अन्तरिम जिला परिषद् का तात्पर्य उत्तर प्रदेश अन्तरिम जिला परिषद् अधिनियम, 1958 की धारा 4 के अधीन संगठित अन्तरिमजिला परिषद से है;

4)उपविधि का तात्पर्य इस अधिनियम द्वारा प्राप्त अधिकार का प्रयोग करके बनाई गई उपविधि से है;

5)कलेक्टर के अन्तर्गत वह अपर (एडीशनल) कलेक्टर भी है जिसे कलेक्टर ने लिखित आदेश द्वारा इस अधिनियम के अधीन अपना कोई कृत्य प्रतिनिहित किया हो;

6)क्षेत्र पंचायत का तात्पर्य धारा 5 के अधीन निगमितक्षेत्र पंचायत से है तथा इसके अन्तर्गत क्षेत्र पंचायत की कोई समिति, सदस्य, अधिकारी या सेवक भी होगा जिसके द्वारा क्षेत्र पंचायत के इस अधिनियम के अधीन किसी अधिकार का प्रयोग अथवा किसी कर्तव्य या कृत्य का सम्पादन इस अधिनियम द्वारा प्राधिकृत या अपेक्षित हो; और क्षेत्र समिति का तात्पर्य इस अधिनियम, जैसा कि यह उत्तर प्रदेश पंचायत विधि (संशोधन) अधिनियम, 1994 द्वारा संशोधन के पूर्व था, के अधीन स्थापित किसी क्षेत्र समिति से है

7)खण्ड का तात्पर्य धारा 3 के अधीन इस रूप में निर्दिष्ट किसी क्षेत्र पंचायत के पंचायत क्षेत्र से है,

8)पिछड़े वर्गों, ग्राम सभा ग्राम पंचायत, सर्किल, राज्य निर्वाचन आयोग, वित्त आयोग और जनसंख्या के वही अर्थ होंगे जो संयुक्त प्रान्त पंचायत राज अधिनियम, 1947 में क्रमशः उनके लिये दिये गये हैं;

9)गृह के अन्तर्गत कोई दुकान, गोदाम, छादक (शेड) तथा गाड़ी या पशु रखने के लिये प्रयुक्त कोई भाड़ा भी है;

10)ग्राम्य क्षेत्र का तात्पर्य जिले में स्थित प्रत्येक नगरपालिका, नोटीफाइड एरिया, टाउन एरिया, छावनी तथानगर निगम क्षेत्र के अतिरिक्त जिले के क्षेत्र से है;

11)जिला पंचायत -जिला पंचायत का तात्पर्य धारा 17 के अधीननिगमितजिला पंचायत से होगा तथा इसके अन्तर्गत जिला पंचायत की कोई समिति तथा उसका जिला पंचायत कोई सदस्य, अधिकारी या सेवक भी होगा जिसके द्वाराजिला पंचायत के इस अधिनियम के अधीन किसी अधिकार का प्रयोग अथवा किसी कर्तव्य का कृत्य का सम्पादन इस अधिनियम द्वारा प्राधिकृत या अपेक्षित हो; और जिला परिषद् का तात्पर्य इस अधिनियम, जैसा कि यह उत्तर प्रदेश पंचायत विधि (संशोधन) अधिनियम, 1994 द्वारा संशोधन के पूर्व था, के अधीन स्थापित किसी जिला परिषद् से है बढ़ा दिये जायेंगे।

12)जिला पंचायत का सेवक का तात्पर्य उस व्यक्ति से है जो जिला पंचायत से वेतन पाता हो और उसकी सेवा में हो; ।

13)डिस्ट्रिक्ट बोर्ड तथा बोर्ड का तात्पर्य यूनाइटेड प्राविंसेज डिस्ट्रिक्ट बोर्ड्स एक्ट, 1992 के अधीन स्थापित डिस्ट्रिक्ट बोर्ड से है;

14)जिला मजिस्ट्रेट का तात्पर्य,दण्ड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 20के अधीन नियुक्त डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट से है;

15)जिला स्तर के अधिकारी का तात्पर्य जिले के ऐसे अधिकारियों से है जिन्हें राज्य सरकार समय-समय पर गजट में विज्ञप्ति द्वारा इस रूप में निर्दिष्ट करें;

16)त्रिमास का तात्पर्य तीन महीने की उस अवधि से है जो जनवरी, अप्रैल, जुलाई और अक्टूबर में से किसी महीने के प्रथम दिनांक से प्रारम्भ हो; (16-क) मुख्य निर्वाचन अधिकारी (पंचायत) का तात्पर्य संयुक्त प्रान्त पंचायत राज अधिनियम, 1947 की धारा 2 के खण्ड (टटट) में निर्दिष्ट मुख्य निर्वाचन अधिकारी (पंचायत) से है;

17)(क) नगर पालिका नगरपालिका बोर्ड तथा नोटीफाइड एरिया के वही अर्थ होंगे जो यू0 पी0 म्युनिसिपैलिटीज एक्ट, 1916 के अधीन क्रमशः म्यूनिसिपैलिटीज, म्यूनिसिपल अधिनियम सं0 21, 1995 द्वारा बढ़ाया गया। बोर्ड तथा नोटीफाइड एरिया के हैं; (ख) टाउन एरिया का वही अर्थ होगा जो यू0पी0 टाउन एरियाज एक्ट, 1914 में दिया गया (ग) छावनी तथा  छावनी बोर्ड के वही अर्थ होंगे जो कैन्टोनमेन्ट्स एक्ट, 1924 के अधीन क्रमशः कैन्टोनमेन्ट तथा कैन्टोनमेन्ट बोर्ड के हैं; (घ) नोटीफाइड एरिया कमेटी या नोटीफाइड एरिया की कमेटी का तात्पर्य यू0पी म्युनिसिपैलिटीज एक्ट, 1916 की धारा 338 के अधीन संगठित कमेटी से है, और (ङ) टाउन एरिया कमेटी या टाउन एरिया की कमेटी का तात्पर्य यू0पी0 टाउन एरियाज एक्ट, 1914 की धारा 5 के अधीन स्थापित कमेटी से है,

18)नगर निगम का तात्पर्य उत्तर प्रदेशनगर निगम अधिनियम, 1959 ई0 के अधीन स्थापितनगर निगम से है;

19)नियत का तात्पर्य इस अधिनियम या तदन्तर्गत निर्मित किसी नियम द्वारा नियत से है,

20)नियत प्राधिकारी का तात्पर्य किसी ऐसे व्यक्ति अथवा प्राधिकारी से है जो राज्य सरकार द्वारा इस अधिनियम के अधीन किसी प्रयोजन के लिये नियम प्राधिकारी के रूप में गजट में विज्ञापित किया गया हो;

21)नियम का तात्पर्य इस अधिनियम द्वारा प्राप्त अधिकार का प्रयोग करके राज्य सरकार द्वारा बनाये गये नियम से है;

22) * *

23)किसी खण्ड या जिले के सम्बन्ध में निश्चित दिनांक का तात्पर्य क्रमशःउत्तर प्रदेश पंचायत विधि (संशोधन) अधिनियम, 1994 द्वारा यथासंशोधित इस अधिनियम के अधीन, यथास्थिति, उस खण्ड के लिये प्रथम क्षेत्र पंचायत या उस जिले के लिये प्रथम जिला पंचायत के संघठन के दिनांक से है;

24)न्यायाधीश का तात्पर्य जिला न्यायाधीश (डिस्ट्रिक्ट जज) से है और इसके अन्तर्गत जिला न्यायाधीश द्वारा तदर्थ नामांकित या नामोदिष्ट कोई अन्य अधीनस्थ दीवानी न्यायाधिकारी (सिविल जुडिशियल आफिसर) भी है;

25)भूमि प्रबन्धक समिति का तात्पर्य यूनाइटेड प्राविंसेज पंचायत राज ऐक्ट, यू0पी0 एक्ट संख्या 26, 1947 में यथापरिभाषित भूमि प्रबन्धक समिति से है;

26)मण्डल या जिला या तहसील के वहीं अर्थ होंगे, जो यूनाइटेड प्राविंसेज लैन्ड रेवेन्यू एक्ट, यू0पी0 एक्ट संख्या 3, 1901 में क्रमशः डिवीजन डिस्ट्रिक्ट तथातहसील शब्दों के हैं;

27)किसी क्षेत्र पंचायत अथवाजिला पंचायत के सम्बन्ध में मण्डल आयुक्त का तात्पर्य यूनाइटेड प्राविंसेज लैन्ड रेवेन्यू, यू0पी0 एक्ट संख्या 3, 1901 की धारा 12 के अधीन उस मण्डल (डिवीजन) के लिये नियुक्त आयुक्त (कमिश्नर) से है जिसके भीतर, यथास्थिति,क्षेत्र पंचायत अथवा जिला पंचायत अपने क्षेत्राधिकार का प्रयोग करती हो तथा उक्त एक्ट की धारा 13 के अधीन उस मण्डल के नियुक्त अपर आयुक्त (एडीशनल कमिश्नर) भी इसके अन्तर्गत हैं;

28)राज्य का तात्पर्य उत्तर प्रदेश राज्य से है;

29)राज्य सरकार का तात्पर्य उत्तर प्रदेश की सरकार से है;

30)लोक सेवक का तात्पर्य इण्डियन पैनल कोड, एक्ट संख्या 45, 1800 की धारा 21 में यथापरिभाषित पब्लिक सर्वेन्ट से है;

31)  * * *

32)  * * *

33)विनियम का तात्पर्य इस अधिनियम द्वारा प्राप्त अधिकार का प्रयोग करके बनाये गये विनियम से है;

34)किसी खण्ड के सम्बन्ध में संघटक ग्राम पंचायत का तात्पर्य उस ग्राम पंचायत से है जो उस खण्ड के भीतर क्षेत्राधिकार का प्रयोग करती हो ;

35)सरकार का तात्पर्य केन्द्रीय सरकार या भारतीय संघ के किसी राज्य की सरकार से है;

36)सरकार की सेवा में व्यक्ति के अन्तर्गत जिला सरकारी अभिभावक (डिस्ट्रिक्ट गवर्नमेन्ट कौंसिल), अपर या सहायक जिला सरकारी अभिभावक, कोई ऐसा अन्य अभिभावक जिसे सरकार ने रखा हो, परन्तु जिसे मासिक वेतन न दिया जाता हो, सरकारी कोषाध्यक्ष (गवर्नमेंट ट्रेजरर), पूर्णतया अवैतनिक पद धारण करने वाला व्यक्ति अथवा कोई ऐसा व्यक्ति, जो सरकार की सेवा से निवृत्त हो गया हो, नहीं है;

37)सार्वजनिक सड़क का तात्पर्य उस सड़क, पुल, पुलिया, सामान्य मार्ग, रास्ते या स्थान से है जिस पर होकर आने-जाने का जनसाधारण की विधि द्वारा प्रवर्तनीय अधिकार प्राप्त हो और जो सरकार या स्थानीय प्राधिकारी में निहित हो या उसके द्वारा अनुरक्षित हो;

38)सार्वजनिक स्थान का तात्पर्य उस स्थान से है जो निजी सम्पत्ति न हो और जनसाधारण के प्रयोग अथवा उपभोग के लिये खुला हो, चाहे वह स्थान स्थानीय प्राधिकारी में निहित हो या न हो;

39)स्थानीय प्राधिकारी के अन्तर्गत ग्राम पंचायत भी है;

40)पंचायत क्षेत्र का तात्पर्य, - (क) किसी क्षेत्र पंचायत के संदर्भ में, किसी क्षेत्र पंचायत के प्रादेशिक क्षेत्र से है, और (ख) किसी जिला पंचायत के संदर्भ में, किसी जिला पंचायत के प्रादेशिक क्षेत्र से है।

मूल अधिनियम की धारा 1 का खण्ड (35) निकाल दिया गया और उसके बाद के खण्ड (36) से लेकर (46) तक, उ0प्र0 अधिनियम सं0 2, 1963 द्वारा पुनः अंकित करके क्रमशः (35) से (39) कर दिया गया।

ग्राम्य क्षेत्रों का खण्डों में विभाजन

राज्य सरकार, गजट में विज्ञप्ति द्वारा, प्रत्येक खण्ड का नाम और उसके क्षेत्र की सीमायें या उसके संघटक अंश निर्दिष्ट करते हुये प्रत्येक जिले के ग्राम्य क्षेत्र को खण्डों में विभाजित करेगी और इसी प्रकार वह नामों में परिवर्तन कर सकती है या खण्डों में क्षेत्र सम्मिलित करके या उनमें से क्षेत्र निकाल कर उनके क्षेत्रों तथा सीमाओं में परिवर्तन कर सकती है। या नये खण्ड बना सकती है।

खण्डों में परिवर्तन का प्रभाव

यदि धारा 3 के अधीन कोई क्षेत्र एक खण्ड से निकाल कर दूसरे में सम्मिलित किया जाये तो ऐसा क्षेत्र उस खण्ड को क्षेत्र पंचायत के क्षेत्राधिकार के अधीन न रहेगा जिसे वह निकाला गया हो और वह उस खण्ड की क्षेत्र पंचायत के, जिसमें वह सम्मिलित किया गया हो, क्षेत्राधिकार में तथा उसमें प्रवृत्त नियमों, विज्ञप्तियों, आदेशों, निदेशों और नोटिसों के अधीन हो जायेगा तथा राज्य सरकार उसक्षेत्र पंचायत की, जिसके क्षेत्राधिकार से क्षेत्र निकाला गया हो, आस्तियों (assets) का ऐसा भाग जो वह उचित समझे उस दूसरीक्षेत्र पंचायत के सुपुर्द कर सकती है और ऐसे अस्थायी आदेश तथा निदेश दे सकती है जो वह परिवर्तन को प्रभावी बनाने के लिये आवश्यक समझे; प्रतिबन्ध यह है कि यदि एक खण्ड से निकाया गया क्षेत्र किसी ऐसे नये खण्ड में सम्मिलित किया जाय जिसके लिये कोई क्षेत्र पंचायत संगठिन न की गई हो तो जब तक कि नये खण्ड के लिये क्षेत्र पंचायत संगठित न हो जाये उस खण्ड की क्षेत्र पंचायत, जिससे वह क्षेत्र निकाला गया हो, उस क्षेत्र में क्षेत्राधिकार या प्रयोग करती रहेगी और उसक्षेत्र पंचायत द्वारा उस क्षेत्र के सम्बन्ध में की गई कोई बात अथवा कार्यवाही जिसके अन्तर्गत इस अधिनियम के उपबन्धों के अधीन की गयी कोई नियुक्ति या प्रतिनिधान, जारी की गयी विज्ञप्ति, आदेश या निदेश, निर्मित नियम, विनियम, प्रपत्र, उपविधि या योजना, स्वीकृत अनुज्ञा–पत्र या लाइसेन्स या किया गया रजिस्ट्रीकरण भी है-नये खण्ड के सम्बन्ध में इस अधिनियम के उपबन्धों के अधीन नयीक्षेत्र पंचायत द्वारा की गयी समझी जायेगी और तद्नुसार वह तब तक प्रभावी रहेगी जब तक कि उसे इस अधिनियम के अधीन की जाने वाली किसी बात या कार्यवाही द्वारा केवक्रांत न कर दिया जाये।

क्षेत्र पंचायत की स्थापना और उसका निगमन

1) प्रत्येक खंड के लिये एक क्षेत्र पंचायत होगी, जिसका नाम उस खण्ड क्षेत्र पंचायत का संघठन के नाम पर होगा और जो एतद्पश्चात् उपबंधित प्रकार से और निगमन द्वारा संघटित की जायेगी।

2)क्षेत्र पंचायत एक निगमित निकाय होगी।

3) क्षेत्र पंचायत का कार्यालय ऐसे स्थान पर होगा जो राज्य सरकार द्वारा अवधारित किया जाये, और जब तक इस प्रकार अवधारित न किया जाये तब तक उसी स्थान पर होगा जहाँ वह उत्तर प्रदेश पंचायत विधि (संशोधन) अधिनियम, 1994 के प्रारम्भ के ठीक पूर्व स्थित था;

4) धारा 6 की उपधारा (1) के खण्ड (क) से (घ) में निर्दिष्ट श्रेणी के सदस्यों में किसी रिक्ति से किसी क्षेत्र पंचायत के संघटन या पुनस्संघटन में कोई बाधा नहीं पड़ेगी।6. क्षेत्र पंचायत की रचना - (1) क्षेत्र पंचायत एक प्रमुख, जो इसका पीठासीन होगा, और निम्नलिखित से मिलकर बनेगी - (क) खण्ड में ग्राम पंचायतों के समस्त प्रधान, (ख) निर्वाचित सदस्य, जो पंचायत क्षेत्र के प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्रों से प्रत्यक्ष निर्वाचन द्वारा चुने जायेंगे और इस प्रयोजन के लिये पंचायत क्षेत्र ऐसी रीति से प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्रों में विभाजित किया जायेगा कि प्रत्येक प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्र की जनसंख्या, यथासाध्य दो हजार होगी ;

प्रतिबन्ध यह है कि राज्य सरकार नैनीताल, अल्मोड़ा, पिथौरागढ़, टिहरी, पौड़ी, देहरादून, चमोली या उत्तरकाशी के पर्वतीय जिलों में उसके द्वारा इस निमित्त विनिर्दिष्ट ग्राम के केन्द्र से एक किलोमीटर के अर्द्धव्यास (दो किलोमीटर के व्यास) के भीतर के क्षेत्र को, यद्यपि कि उस क्षेत्र की जनसंख्या दो हजार से कम हो, प्रादेशित निर्वाचन क्षेत्र घोषित कर सकती है;

अग्रेतर प्रतिबन्ध यह है कि किसी क्षेत्र पंचायत के प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्र में किसी संघटक ग्राम पंचायत का प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्र भागतः सम्मिलित नहीं किया जायेगा।

उत्तरांचल राज्य संशोधन

धारा 6 (1) (ख) 1 - निर्वाचित सदस्य जो पंचायत क्षेत्र के प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्र से प्रत्यक्ष निर्वाचन द्वारा चुने जायेंगे और इस प्रयोजन के लिये, पंचायत क्षेत्र निम्नलिखित रीति से प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्रों में विभाजित किया जायेगा - (1) पर्वतीय क्षेत्र में 25000 तक ग्रामीण जनसंख्या वाले विकास खण्ड में 20 निर्वाचन क्षेत्र तथा 25000 से अधिक जनसंख्या वाले विकास खण्ड में उत्तरोत्तर अनुपातिक वृद्धि के आधार पर किन्तु अधिकतम 40 प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्र होंगे; मैदानी क्षेत्रों में 50000 तक जनसंख्या वाले विकास खण्ड में 20 निर्वाचन क्षेत्र तथा 50000 से अधिक जनसंख्या वाले विकास खण्डों में उत्तरोत्तर अनुपातिक वृद्धि के आधार पर किन्तु अधिकतम 40 प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्र होंगे।

प्रतिबन्ध यह है कि उक्तानुसार निर्धारित प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्रों की जनसंख्या का अनुपात यथासाध्य संबंधित विकास खण्ड में समान होगा

(2) अग्रेतर प्रतिबन्ध यह है कि किसी क्षेत्र पंचायत कि प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्र में किसी संघटक ग्राम पंचायत का प्रादेशिक निर्वाचक क्षेत्र भागतः सम्मिलित नहीं किया जायेगा।

लोकसभा के सदस्य और राज्य की विधान सभा के सदस्य जो उन निर्वाचन क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करते हैं जिनमें पूर्णतः या भागतः खण्ड समाविष्ट है। (घ) राज्य सभा के सदस्य और राज्य की विधान परिषद् के सदस्य जो खण्ड के भीतर निर्वाचकों के रूप में रजिस्ट्रीकृत हैं। (2) उपधारा (1) के खण्ड (क), (ग) और (घ) में उल्लिखित क्षेत्र पंचायत के सदस्यों को प्रमुख या उप प्रमुख के निर्वाचन और उनके विरूद्ध अविश्वास प्रस्ताव के मामलों को छोड़कर क्षेत्र पंचायत की कार्यवाहियों में भाग लेने और उसकी बैठकों में मत देने का अधिकार होगा। उपधारा (1) के खण्ड (ख) में उल्लिखित प्रत्येक प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व एक सदस्य द्वारा किया जायेगा।(4) जिला पंचायत का प्रत्येक निर्वाचित सदस्य जो ऐसे निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करता है जो पूर्णतः या भागतः किसी क्षेत्र पंचायत के प्रादेशिक क्षेत्र में पड़ता हो, ऐसी क्षेत्र पंचायत की बैठकों में विशेष आमन्त्रित के रूप में भाग लेने और अपने विचार व्यक्त करने का हकदार होगा किन्तु ऐसी बैठकों में उसे मत देने का अधिकार नहीं होगा।

स्थानों का आरक्षण

प्रत्येक क्षेत्र पंचायत में अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और पिछड़े वर्गों के लिये स्थान आरक्षित रहेंगे और इस प्रकार आरक्षित स्थानों की संख्या का अनुपात, क्षेत्र पंचायत में प्रत्यक्ष निर्वाचन द्वारा भरे जाने वाले स्थानों की कुल संख्या में यथाशक्य वही होगी जो उस खण्ड में अनुसूचित जातियों की या उस खण्ड में अनुसूचित जनजातियों की या उस खण्ड में पिछड़े वर्गों की जनसंख्या का अनुपात उस खण्ड की कुल जनसंख्या में है और ऐसे स्थान किसी क्षेत्र पंचायत में भिन्न-भिन्न प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्रों को चक्रानुक्रम से ऐसे क्रम में, जैसा नियत किया जाये, आवंटित किये जा सकेंगे;

अग्रेतर प्रतिबन्ध यह है कि क्षेत्र पंचायत में पिछड़े वर्गों के लिये आरक्षण कुल स्थानों की संख्या के सत्ताईस प्रतिशत से अधिक नहीं होगा।

अग्रेतर प्रतिबन्ध यह है कि क्षेत्र पंचायत में पिछड़े वर्गों की जनसंख्या के आंकड़े उपलब्ध न हों तो नियत रीति से सर्वेक्षण करके उनकी जनसंख्या अवधारित की जा सकती है। (2) उपधारा (1) के अधीन आरक्षित स्थानों की संख्या के एक तिहाई से अन्यून स्थान, यथास्थिति अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और पिछड़े वर्गों की स्त्रियों के लिये आरक्षित रहेंगे। (3) स्थानों की कुल संख्या के एक तिहाई से अन्यून स्थान, जिसके अन्तर्गत उपधारा (2) के अधीन आरक्षित स्थानों की संख्या भी है, स्त्रियों के लिये आरक्षित रहेंगे, और ऐसे स्थान किसी क्षेत्र पंचायत में भिन्न-भिन्न प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्र का चक्रानुक्रम से ऐसे क्रम में जैसा नियत किया जाये, आवंटित किया जा सकेंगे। (4) अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिये स्थानों का आरक्षण संविधान के अनुच्छेद 334 में विनिर्दिष्ट अवधि की समाप्ति पर प्रभावी नहीं रहेगा।

स्पष्टीकरण - यह स्पष्ट किया जाता है कि इस धारा की कोई भी बात अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और पिछड़े वर्गों के व्यक्तियों और स्त्रियों को अनारक्षित स्थानों के लिये चुनाव लड़ने से निर्धारित  नहीं करेगी।

क्षेत्र पंचायत की निर्वाचक नामावली

1) प्रत्येक क्षेत्र पंचायत के प्रत्येक प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्र के लिये एक क्षेत्र पंचायत की एक निर्वाचक नामावली होगी।

2) क्षेत्र पंचायत के किसी प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्र के लिये निर्वाचक नामावली संयुक्त प्रान्त पंचायत राज अधिनियम, 1947 की धारा 9 के अधीन तैयार की गई ग्राम पंचायत या ग्राम पंचायतों के उतने प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्रों की निर्वाचक नामावलियों से मिलकर बनेगी जितने क्षेत्र पंचायत के उस प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्र में समाविष्ट है और किसी क्षेत्र पंचायत में ऐसे किसी प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्रों के लिये निर्वाचक नामावली पृथकतः तैयार या पुनरीक्षित करना आवश्यक न होगाः

प्रतिबन्ध यह है कि क्षेत्र पंचायत के किसी निर्वाचन के लिये नामांकन करने के अन्तिम दिनांक के पश्चात् और उस निर्वाचन के पूर्ण होने के पूर्व निर्वाचक नामावली में किया गया कोई सुधार निष्कासन या परिवर्द्धन उस निर्वाचन के प्रयोजनों के लिये ध्यान में नहीं रखा जायेगा।

मत का अधिकार

इस अधिनियम द्वारा या इसके अधीन अन्यथा उपबन्धित के सिवाय,प्रत्येक व्यक्ति जिसका नाम तत्समय क्षेत्र पंचायत के प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्र के लिये निर्वाचक नामावली में सम्मिलित है, उसके किसी निर्वाचन में मत देने का अधिकारी होगा और क्षेत्र पंचायत की सदस्यता या किसी पद के निर्वाचन के लिये अर्ह होगा।

प्रतिबन्ध यह है कि कोई व्यक्ति जिसने इक्कीस वर्ष की आयु पूरी न कर ली हो, किसी क्षेत्र पंचायत के सदस्य या पदाधिकारी के रूप में निर्वाचित होने के लिये अर्ह नहीं होगा।

क्षेत्र पंचायत का प्रमुख और उप–प्रमुख

(1) प्रत्येक क्षेत्र पंचायत में निर्वाचित सदस्यों द्वारा अपने में से ही एक प्रमुख, एक ज्येष्ठ उप प्रमुख और एक कनिष्ठ उप प्रमुख चुने जायेंगे।

(2) क्षेत्र पंचायत के निर्वाचित सदस्यों के किसी पद में रिक्ति के होते हुये भी प्रमुख और उप–प्रमुख के पद के लिये चुनाव किया जा सकेगा। इस अधिनियम के किसी अन्य उपबन्धों में किसी प्रतिकूल बात के होते हुये भी उत्तर प्रदेश पंचायत विधि (संशोधन) अधिनियम, 2007 के प्रारम्भ होने के पूर्व उप प्रमुख के पद पर निर्वाचित हुए व्यक्ति अपे कार्यकाल की समाप्ति तक इस रूप में में पद को धारण किये रहेगें, मानों उक्त अधिनियम न बनाया गया हो।

प्रमुखों के पदों का आरक्षण

राज्य में क्षेत्र पंचायतों के प्रमुखों के पद अनुसूचित जातियों,अनुसूचित जनजातियों और पिछड़े वर्गों के लिये आरक्षित रहेंगे; प्रतिबन्ध यह है कि ऐसे आरक्षित प्रमुखों के पदों की संख्या का अनुपात ऐसे पदों की कुल संख्या से यथाशक्य वही होगा जो राज्य की अनुसूचित जातियों की या राज्य की अनुसूचित जनजातियों की या राज्य के पिछड़े वर्गों की जनसंख्या का अनुपात उस राज्य की कुल जनसंख्या में है और ऐसे आरक्षित पद भिन्न-भिन्न क्षेत्र पंचायतों को चक्रानुक्रम से ऐसे, क्रम में जैसा नियत किया जाय, आवंटित किया जा सकेंगे -

प्रतिबन्ध है कि पिछड़े वर्गों के लिये आरक्षण राज्य में प्रमुखों के पदों की कुल संख्या के सत्ताईस प्रतिशत से अधिक नहीं होगा।

प्रतिबन्ध यह भी है कि यदि पिछड़े वर्गों की जनसंख्या के आंकड़े उपलब्ध न हो तो नियत रीति से सर्वेक्षण करके उनकी जनसंख्या अवधारित की जा सकती है। (2) उपधारा (1) के अधीन आरक्षित पदों की संख्या के एक तिहाई से अन्यून स्थान, यथास्थिति, अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों या पिछड़े वर्गों की स्त्रियों के लिये आरक्षित रहेंगे। प्रमुखों के पदों की कुल संख्या के एक तिहाई से अन्यून पद, जिसके अन्तर्गत उपधारा (2) के अधीन आरक्षित पदों की संख्या भी है, स्त्रियों के लिये आरक्षित रहेंगे और ऐसे पदों को चक्रानुक्रम से राज्य में भिन्न-भिन्न क्षेत्र पंचायतों के लिये ऐसे क्रम में जैसा नियत किया

जाये, आवंटित किये जा सकेंगे। (4) इस धारा के अधीन अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिये प्रमुखों के पदों का आरक्षण संविधान के अनुच्छेद 334 में विनिर्दिष्ट अवधि की समाप्ति पर प्रभावी नहीं रहेगा।

स्पष्टीकरण - यह स्पष्ट किया जाता है कि इस धारा की कोई भी बात अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और पिछड़े वर्गों के व्यक्तियों और स्त्रियों को अनारक्षित पदो के लिये चुनाव लड़ने से निर्धारित  नहीं करेगा।

क्षेत्र पंचायत और उसके सदस्यों का कार्यकाल

1) प्रत्येक क्षेत्र पंचायत, यदि इस अधिनियम के अधीन उसे पहले ही विघटित नहीं कर दिया जाता है तो, अपने प्रथम बैठक के लिये नियत दिनांक से पांच वर्ष की अवधि तक, न कि उससे अधिक बनी रहेगी।

2)किसी क्षेत्र पंचायत के किसी सदस्य का कार्यकाल, यदि इस अधिनियम के उपबन्धों के अधीन अन्यथा समाप्त कर दिया जाये तो, क्षेत्र पंचायत के कार्यकाल के अवसान तक होगा। किसी क्षेत्र पंचायत का संघठन करने के लिये निर्वाचन - (क) उपधारा (1) में विनिर्दिष्ट उसके कार्यकाल के अवसान के पूर्व, (ख) उसके विघटन के दिनांक से छ; मास की अवधि के अवसान के पूर्व, पूरा किया जायेगा - प्रतिबन्ध यह है कि जहां विघटित क्षेत्र पंचायत की शेष अवधि, जिसके लिये वह बनी रहती, छ; मास से कम है वहॉ ऐसी अवधि के लिये क्षेत्र पंचायत का संघठन करने के लिये इस उपधारा के अधीन कोई निर्वाचन कराना आवश्यक नहीं होगा।

3)इस अधिनियम के किन्हीं अन्य उपबन्धों में किसी बात के होते हुये भी, जहाँ अपरिहार्य परिस्थितियों के कारण या लोक हित में, किसी क्षेत्र पंचायत का संघठन करने के लिये उसके कार्यकाल के अवसान के पूर्व निर्वाचन कराना साध्य नहीं है, वहॉ राज्य सरकार या उसके द्वारा इस निमित्त प्राधिकृत कोई अधिकारी, आदेश द्वारा प्रशासनिक समिति, जिसमें जिला पंचायत के सदस्यों के रूप में निर्वाचित किये जाने के लिये, ऐसी संख्या में जैसी वह उचित समझे, अर्ह व्यक्ति होंगे, या प्रशासक, नियुक्त कर सकता है। और प्रशासनिक समिति के सदस्य या प्रशासक छह मास से अनधिक ऐसी अवधि के लिये जैसी कि उक्त आदेश में विनिर्दिष्ट की जाये, पद धारण करेगा और जिला पंचायत, उसके अध्यक्ष और समितियों की समस्त शक्तियॉ, कृत्य और कर्तव्य, यथास्थिति, ऐसी प्रशासनिक समिति या प्रशासक में निहित होंगे और उनके द्वारा उनका प्रयोग सम्पादन और निर्वहन किया जायेगा। किसी क्षेत्र पंचायत के कार्यकाल के अवसान के पूर्व उसके विघठन पर संगठित की गयी क्षेत्र पंचायत उस अवधि के केवल शेष भाग के लिये ऐसी रहेगी, जिस अवधि तक विघटित क्षेत्र पंचायत उपधारा (1) के अधीन बनी रहती, यदि वह इस प्रकार विघटित न की जाती। कोई भी व्यक्ति जो धारा 6 की उपधारा (1) के खण्ड (क), (ग) या (घ) के अधीन क्षेत्र पंचायत का सदस्य हो उस पद पर, जिसके आधार पर वह ऐसा सदस्य बना था, न रहने पर क्षेत्र पंचायत का सदस्य हो उस पद पर, जिसके आधार पर वह ऐसा सदस्य बना था, न रहने पर, सदस्य न रहेगा।

प्रमुख तथा उप–प्रमुख का कार्यकाल

1)      इस अधिनियम में की गयी अन्यथा व्यवस्था के अधीन रहते हुये, किसी क्षेत्र पंचायत के प्रमुख या उप–प्रमुख कार्यकाल उसके निर्वाचित होते ही प्रारम्भ हो जायेगा औरक्षेत्र पंचायत के कार्यकाल तक रहेगा;* * *

2)      जब प्रमुख का पद रिक्त हो तब प्रमुख का निर्वाचन होने तक जिला मजिस्ट्रेट आदेश द्वारा प्रमुख के कृत्यों का निर्वाह करने के लिये ऐसी व्यवस्था कर सकता है जिसे वह ठीक समझे ।

कुछ मामलों में अस्थायी व्यवस्था

जब प्रमुख अनुपस्थिति, बीमारी अथवा अन्य किसी कारण से अपने कृत्यों का निर्वाह करने में असमर्थ हो तब जिस दिनांक तक प्रमुख अपना पदभार फिर से न ग्रहण कर ले, उस दिनांक तक जिला मजिस्ट्रेट, आदेश द्वारा प्रमुख के कृत्यों का निर्वहन करने के लिये ऐसी व्यवस्था कर सकता है, जिसे वह ठीक समझे ।

क्षेत्र पंचायत का संघठन तथा पुनस्संघठन

राज्य सरकार प्रत्येक खण्ड के लिये प्रथमक्षेत्र पंचायत के संघठन का औरउसके कार्यकाल की समाप्ति के पूर्व अथवा जब इस अधिनियम के प्रयोजनों के लिये अन्यथा उपेक्षित हो उसके पुनस्संघठन का प्रबन्ध धारा 6 के उपबन्धों का ध्यान रखते हुये करेगी। (2)* * * (3)* * *

प्रमुख, उप–प्रमुख या सदस्य का त्याग-पत्र

1)प्रमुख, उपप्रमुख या क्षेत्र पंचायत का कोई निर्वाचित सदस्य स्वहस्ताक्षरित पत्र द्वारा पद त्याग कर सकता है जो प्रमुख की दशा में सम्बन्धित जिला पंचायत के अध्यक्ष को और अन्य दशाओं में क्षेत्र पंचायत के प्रमुख को सम्बोधित होगा।

2) प्रमुख का त्याग-पत्र उस दिनांक से प्रभावी होगा जब त्याग-पत्र की अध्यक्ष द्वारा स्वीकृत क्षेत्र पंचायत के कार्यालय में प्राप्त हो जाये और उप प्रमुख या सदस्य का त्याग-पत्र उस दिनांक से प्रभावी होगा जबक्षेत्र पंचायत के कार्यालय में उसका नोटिस प्राप्त हो जाये -और यह समझा जायेगा कि ऐसा प्रमुख, उप–प्रमुख या सदस्य ने अपने पद रिक्त कर दिये हैं।

आकस्मिक रिक्तियों की पूर्ति

यदि किसी प्रमुख, उप–प्रमुख या क्षेत्र पंचायत के किसी निर्वाचित सदस्य का स्थान मृत्यु या अन्य किसी कारण से रिक्त हो जाये, तो उस *रिक्ति की पूर्ति ऐसी रिक्ति के दिनांक से छः मास की अवधि की समाप्ति के पूर्व उसके पूर्ति उसके पूर्वाधिकारी के शेष कार्यकाल के लिये यथास्थिति, धारा 6 या 7 में उपबन्धित रीति से की जायेगी;

प्रतिबन्ध यह है कि यदि रिक्ति होने के दिनांक को क्षेत्र पंचायत का शेष कार्यकाल छ; मास से कम हो तो रिक्ति की पूर्ति नहीं की जायेगी।

क्षेत्र पंचायत की सदस्यता के लिये अनर्हता

कोई व्यक्ति क्षेत्र पंचायत के सदस्य के रूप में चुने जाने के लिये और उसका सदस्य होने के  लिये अनर्हित होगा यदि –

  • उसे तत्समय प्रवृत्त किसी विधि द्वारा या उसके अधीन राज्य विधान मण्डल के निर्वाचन के प्रयोजनों के लिये इस प्रकार अनर्ह कर दिया गया हो - प्रतिबन्ध यह है कि कोई भी व्यक्ति इस आधार पर अनर्ह नहीं होगा कि उसकी आयु पच्चीस वर्ष से कम है, यदि उसने इक्कीस वर्ष की आयु प्राप्त कर ली हो;
  • वह किसी राज्य सरकार या केन्द्रीय सरकार या किसी स्थानीय प्राधिकारी या संयुक्त प्रान्त पंचायत राज अधिनियम, 1947 की धारा 42 के अधीन स्थापित किसी न्याय पंचायत के अधीन कोई लाभ का पद धारण करता हो;
  • वह किसी राज्य सरकार, केन्द्रीय सरकार या किसी स्थानीय प्राधिकारी या किसी न्याय पंचायत या उत्तर प्रदेश सहकारी समिति अधिनियम, 1965 के अधीन रजिस्ट्रीकृत किसी सहकारी समिति की सेवा से दुराचरण के कारण पदच्युत कर दिया गया हो;
  • उस पर ऐसी अवधि के लिये जैसी नियत की जाये, ग्राम पंचायत, क्षेत्र पंचायत या जिला पंचायत का कोई कर, फीस, शुल्क या कोई अन्य देय बकाया हो, या वह ग्राम पंचायत, न्यायत पंचायत, क्षेत्र पंचायत या जिला पंचायत के अन्तर्गत कोई पद धारण करने के कारण प्राप्त उसके किसी अभिलेख या सम्पत्ति को उसे देने में उसके द्वारा ऐसा करने की अपेक्षा किये जाने पर भी, विफल रहा हो;
  • वह अनुमोदित दिवालिया हो; वह किसी ऐसे अपराध के लिये दोष सिद्ध ठहराया गया हो जिसमें नैतिक अधमता अन्तर्वलित हो;
  • उसे आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955 के अधीन बनाये गये किसी आदेश का उल्लंघन करने के कारण तीन मास से अधिक की अवधि के कारावास का या दण्ड दिया गया हो;
  • उसे ऐसेसियल सप्लाइज (टेम्परेरी पावर्स) एक्ट, 1946 अथवा यू0पी0 कन्ट्रोल आफ सप्लाइज (टेम्परेरी पावर्स) एक्ट, 1947 के अधीन दिये गये किसी आदेश का उल्लंघन करने के कारण छ; मास से अधिक की अवधि के कारावास या निर्वासन का दण्ड दिया गया हो; उसे संयुक्त प्रान्त आबकारी अधिनियम, 1910 के अधीन तीन मास से अधिक अवधि के लिये कारावास का दण्ड दिया गया हो; उसे स्वापक औषधि और मनः प्रभावी पदार्थ अधिनियम, 1985 के अधीन किसी अपराध के लिये दोषसिद्ध ठहराया गया हो;
  • उसे निर्वाचन सम्बन्धी किसी अपराध के लिये दोषसिद्ध ठहराया गया हो;उसे संयुक्त प्रान्त सामाजिक निर्योग्यताओं का निराकरण अधिनियम, 1947 या सिविल अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1955 के अधीन किसी अपराध के लिये दोषसिद्ध ठहराया गया हो;
  • उसे किसी सक्षम प्राधिकारी के आदेश द्वारा विधि-व्यवसायी के रूप में कार्य करने से विवर्जित कर दिया गया हो; धारा 23 के अधीन यह घोषित कर दिया गया हो कि उसने उक्त धारा के अर्थ में कोई भ्रष्ट आचरण किया गया है और वह घोषणा प्रभावी बनी हो; या
  • उसे क्षेत्र पंचायत के किसी प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्र की निर्वाचक नामावली में रजिस्ट्रीकृत न किया गया हो ;

प्रतिबन्ध यह भी है कि प्रथम प्रतिबन्धात्मक खण्ड में निर्दिष्ट किन्हीं खण्डों के अधीन कोई अनर्हता नियत रीति से राज्य सरकार द्वारा हटायी जा सकती है।

सदस्यता या अनर्हता के सम्बन्ध में विवाद

1)यदि यह विवाद उठे कि कोई व्यक्ति धारा 6 की उपधारा (1) केखण्ड (क) के अधीनक्षेत्र पंचायत का सदस्य है अथवा नहीं, तो वह विवाद राज्य सरकार को नियत रीति से अभिदिष्ट कर दिया जायेगा और उस पर राज्य सरकार का निर्णय अन्तिम तथा बन्धनकारी होगा।

2)यदि यह प्रश्न उठे कि कोई व्यक्ति क्षेत्र पंचायत का विधितः चुना गया सदस्य है अथवा नहीं या वह ऐसा सदस्य होने के लिये पात्र है अथवा नहीं, तो वह प्रश्न न्यायाधीश को नियत रीति से निर्दिष्ट कर दिया जायेगा जिसका निर्णय अन्तिम तथा बाध्यकारी होगा। यदि न्यायाधीश यह निर्णय करे कि सदस्य विधितः नहीं चुना गया था* * * या वहक्षेत्र पंचायत का सदस्य रहने का पात्र नहीं रह गया है तो वह सदस्य उस निर्णय के दिनांक से क्षेत्र समिति का सदस्य न रहेगा।

प्रमुख या उप–प्रमुख में अविश्वास का प्रस्ताव

1)निम्नलिखित उपधाराओं में दी गयी प्रक्रिया के अनुसार क्षेत्र पंचायत के प्रमुख या किसी उप प्रमुख में अविश्वास का प्रस्ताव किया जा सकता है। तथा उस पर कार्यवाही की जा सकती है;

2)प्रस्ताव करने के अभिप्राय का लिखित नोटिस, जो नियत प्रपत्र में होगा तथाक्षेत्र पंचायत के तात्कालिक निर्वाचित सदस्यों की कुल संख्या से कम आधे सदस्यों द्वारा हस्ताक्षरकृत होगा, प्रस्तावित प्रस्ताव की प्राप्ति के साथ, नोटिस पर हस्ताक्षर करने वाले सदस्यों में से किसी के द्वारा व्यक्तिगत रूप से उस कलेक्टर को दिया जायेगा जिसका क्षेत्र पंचायत पर क्षेत्राधिकार हो।

3)तदुपरान्त कलेक्टर - (1)क्षेत्र पंचायत की एक बैठक उस प्रस्ताव पर विचार करने के लिये *क्षेत्र पंचायत के कार्यालय में अपने द्वारा निश्चित दिनांक को बुलायेगा और यह दिनांक उपधारा (2) के अधीन उसे नोटिस दिये जाने के दिनांक से तीस दिन के बाद का न होगा; तथा क्षेत्र के निर्वाचित सदस्यों को ऐसी बैठक का कम से कम पन्द्रह दिन का नोटिस ऐसी रीति से देगा, जो नियत की जाये। स्पष्टीकरण - इस उपधारा में निर्दिष्ट तीस दिन की अवधि की गणना करने में वह अवधि निकाल दी जायेगी जिसमें इस धारा के अधीन किये गये प्रस्ताव के विरूद्ध प्रस्तुत की गयी याचिका पर किसी सक्षम न्यायालय द्वारा जारी किया गया स्थगन आदेश, यदि कोई हो, प्रचलित रहा हो और वह अतिरिक्त समय भी निकाल दिया जायेगा जो सदस्यों को बैठक के नये नोटिस जारी करने के निमित्त अपेक्षित हो। ऐसी बैठक की अध्यक्षता उस परगने का परगना अधिकारी करेगा जिसमें क्षेत्र पंचायत क्षेत्राधिकारी का प्रयोग करती हो।  प्रतिबन्ध यह है कि यदिक्षेत्र पंचायत एक से अधिक परगनों में क्षेत्राधिकार का प्रयोग करती हो अथवा परगना अधिकारी किसी कारणवश अध्यक्षता न कर सकता हो, तो कलेक्टर द्वारा नाम निर्दिष्ट कोई वैतनिक अपर सहायक कलेक्टर उक्त बैठक की अध्यक्षता करेगा।

4) यदि बैठक के लिये निश्चित समय से आधे घण्टे के भीतर, ऐसा अधिकारी अध्यक्षता करने के लिये उपस्थित न हो तो बैठक उस दिनांक और समय तक के लिये स्थगित हो जायेगी जिसे वह अधिकारी उपधारा (4–ख) के अधीन निश्चित करेगा। (4–ख) यदि उपधारा 4 में उल्लिखित अधिकारी बैठक की अध्यक्षता करने में असमर्थ हो तो वह तत्सम्बन्धी अपने कारणों को अभिलिखित करने के पश्चात् उसे किसी अन्य दिनांक और समय के लिये स्थगित कर सकता है जिसे वह निश्चित करे, किन्तु यह दिनांक उपधारा (3) के अधीन बैठक के लिये निश्चित दिनांक से 25 दिन से अधिक न होगा। वह कलेक्टर को लिखित रूप में बैठक के स्थगन की सूचना अविलम्ब देगा। कलेक्टर सदस्यों को अगली बैठक की सूचना उपधारा (3) के अधीन नियत रीति से कम से कम दस दिन पहले देगा।

5)उपधारा (4–क) तथा (4–ख) में की गयी व्यवस्था को छोड़कर इस धारा के अधीन किसी प्रस्ताव पर विचार करने के लिये बुलायी गई बैठक स्थगित न की जायेगी।

6)इस धारा के अधीन बुलायी गयी बैठक के प्रारम्भ होते ही, पीठासीन अधिकारीक्षेत्र पंचायत को वह प्रस्ताव पढ़कर सुनायेगा, जिस पर विचार करने के लिये बैठक बुलायी गयी हो तथा यह घोषित करेगा कि उस पर वाद-विवाद किया जा सकता है।

7) इस धारा के अधीन किसी प्रस्ताव पर वाद-विवाद स्थगित न किया जायेगा।

8)यदि ऐसा वाद विवाद बैठक आरम्भ होने के लिये निश्चित समय से दो घन्टे बीतने के पहले ही समाप्त न हो गया हो, तो वह दो घण्टे बीतते ही स्वतः समाप्त हो जायेगा, वाद-विवाद की समाप्ति पर अथवा उक्त दो घंटों की समाप्ति पर, जो भी पहले हो, वह प्रस्ताव मतदान के लिये प्रस्तुत किया जायेगाजो गुप्त मतदान द्वारा नियत रीति से होगा।

9)पीठासीन अधिकारी प्रस्ताव के गुण-दोषों पर नहीं बोलेगा और न वह उस पर मत देने का अधिकारी होगा।

10) पीठासीन अधिकारी बैठक समाप्त होने के पश्चात् तुरन्त बैठक के कार्यवृत्त की एक प्रति तथा साथ में प्रस्ताव की एक प्रति और उस पर हुये मतदान का परिणाम राज्य सरकार को तथा क्षेत्राधिकार युक्त जिला पंचायत को भेजेगा।

11) यदि प्रस्तावक्षेत्र पंचायत के तत्कालीन सदस्यों की कुल संख्या के आधे से अधिक समर्थन से पारित हो तो - (क) पीठासीन अधिकारी उक्त तथ्य का प्रकाशनक्षेत्र पंचायत के कार्यालय के नोटिस–बोर्ड पर एक नोटिस चिपकवा कर तथा गजट में उसे विज्ञापित करा कर भी, करायेगा; और (ख) यथास्थिति, प्रमुख या उप–प्रमुख उस दिनांक के, जब उक्त नोटिस क्षेत्र पंचायत के कार्यालय के नोटिस बोर्ड पर चिपकाया गया हो, अगले दिन से अपने पद पर न रहेगा और उसे रिक्त कर देगा।

12)  यदि प्रस्ताव पूर्वोक्त रूप से पारित न हुआ हो अथवा यदि गणपूर्ति न होने के कारण बैठक न हो सकी हो, तो जब तक कि उक्त बैठक के दिनांक सेएक वर्ष व्यतीत न हो जाय, तब तक उसी प्रमुख या उप–प्रमुख में अविश्वास व्यक्त करने वाले किसी अनुवर्ती प्रस्ताव का नोटिस ग्रहण नहीं किया जायेगा।

13)  इस धारा के अधीन किसी प्रस्ताव का नोटिस यथास्थिति, प्रमुख या उप–प्रमुख के पद ग्रहण करने केएक वर्ष के भीतर ग्रहण नहीं किया जायेगा।

प्रमुख या उप–प्रमुख का हटाया जाना

1) यदि राज्य सरकार की राय में किसी क्षेत्र पंचायत का प्रमुख या कोई उप–प्रमुख इस अधिनियम के अधीन अपने कर्तव्यों तथा कृत्यों का पालन जानबूझकर नहीं करता या पालन करने से इन्कार करता है या अपने से में निहित अधिकारों का दुरूपयोग करता है अथवा अपने कर्तव्यों के पालन में अनाचार का दोषी पाया जाता है या मानसिक या शारीरिक रूप से अपने कर्तव्यों के पालन में असमर्थ हो गया है, तो राज्य सरकार, यथास्थिति, प्रमुख या ऐसे उप–प्रमुख को स्पष्टीकरण का समुचित अवसर देने के पश्चात् और इस मामले में अन्य पक्ष का परामर्श मांगने और यदि उसकी राय ऐसे परामर्श मांगने के पत्र के भेजे जाने के दिनांक से तीस दिन के भीतर प्राप्त हो जाये, तो इस राय पर विचार कर लेने के बाद, यथास्थिति, ऐसे प्रमुख या उप–प्रमुख को आदेश द्वारा पद से हटा सकती है और ऐसा आदेश अन्तिम होगा और उस पर किसी विधि-न्यायालय में आपत्ति न की जा सकेगी ; प्रतिबन्ध यह है कि जहाँ ऐसे व्यक्ति द्वारा और ऐसे रूप में जैसा नियत किया जाय, किसी जॉच में प्रथम दृष्टया यह पाया जाये कि किसी प्रमुख या उप–प्रमुख ने वित्तीय और अन्य अनियमिततायें की है तो ऐसा प्रमुख या उप–प्रमुख अन्तिम जॉच में आरोपों से मुक्त होने तथा वित्तीय और प्रशासनिक शक्तियों और कृत्यों का प्रयोग और सम्पादन नहीं करेगा और तब उन शक्तियों तथा कृत्यों का प्रयोग और सम्पादन राज्य सरकार द्वारा इस निमित्त नियुक्त क्षेत्र पंचायत के तीन निर्वाचित सदस्यों की समिति द्वारा किया जायेगा।

2) इस धारा के अधीन अपने पद से हटाया गया प्रमुख या उप–प्रमुख अपने पद से हटाये जाने के दिनांक से तीन वर्ष की अवधि तक प्रमुख या उप–प्रमुख के रूप में पुनः निर्वाचन का पात्र न होगा।

जिला पंचायत

जिला पंचायत की स्थापना तथा उसका निगमन

1) प्रत्येक जिले के लिये एक जिला पंचायत होगी जिसका नाम उस जिले की जिला पंचायत कार्यालय के नाम पर होगा और जो एतद्पश्चात् उपबंधित प्रकार से संघठन और निगमन संगठित की जायेगी।

2)जिला पंचायत एक निगमित निकाय होगी। (2-क) जिला पंचायत का कार्यालय ऐसे स्थान पर होगा जो राज्य सरकार द्वारा निर्वारित किया जाये, किन्तु जब तक इस प्रकार निर्धारित न किया जाये तब तक उसी स्थान पर होगा, जहॉ पर वह उत्तर प्रदेश क्षेत्र समिति तथा जिला परिषद (संशोधन) अध्यादेश, 1965 के प्रारम्भ होने के ठीक पूर्व स्थित था।

3) जब कोई नया जिला बनाया जाये तो नया जिला बनाने के ठीक पहले उसके किसी क्षेत्र में क्षेत्राधिकार रखने वाली उस क्षेत्राधिकार का तब तक प्रयोग करती रहेगी जब तक कि उस नये जिले में (नये)जिला पंचायत की स्थापना न हो जाये, और नयी जिला पंचायत की स्थापना पर –

  • उस जिला पंचायत की स्थापना के दिनांक के (जिसे आगे उक्त दिनांक कहा गया है) ठीक पूर्ववर्ती दिनांक पर नये जिले के क्षेत्र में क्षेत्राधिकार रखने वालीजिला पंचायत द्वारा आरोपित उद्ग्रहीत सभी कर, शुल्क, अर्थ दण्ड अथवा शस्तियाँ और सभी स्वीकृत लाइसेन्स अथवा अनुज्ञा–पत्र इस अधिनियम के उपबन्धों के अधीन तथा अनुसार नयीजिला पंचायत द्वारा आरोपित, उद्ग्रहीत या स्वीकृत समझे जायेंगे और जब तक वे समाप्त, परिष्कृत अथवा परिवर्तित न कर दिये जायें तब तक इसी प्रकार वसूली योग्य अथवा प्रभावी बने रहेंगे;
  • और नये जिले के क्षेत्र में उक्त दिनांक के ठीक पूर्ववर्ती दिनांक को क्षेत्राधिकार रखने वालीजिला पंचायत द्वारा की गयी कोई बात अथवा कार्यवाही जिसके अन्तर्गत इस अधिनियम के उपबन्धों के अधीन द्वारा की गयी नियुक्ति या प्रतिनिधान, जारी की गयी विज्ञप्ति, आदेश या निदेश, निर्मित नियम, विनियम, प्रपत्र, उपविधि या योजना, स्वीकृत अनुज्ञा–पत्र व लाइसेन्स या किया गया रजिस्ट्रीकरण भी है - नये जिले के सम्बन्ध में इस अधिनियम के उपबन्धों के अधीन नयीजिला पंचायत द्वारा की गयी समझी जायेगी और तद्नुसार वह तब तक प्रभावी रहेगी जब तक कि उसे अधिनियम के अधीन की जाने वाली किसी बात की कार्यवाही द्वारा अवक्रांत न कर दिया जाये।

4) यदि किसी समय कोई नया क्षेत्र किसी वर्तमान जिले में समाविष्ट किया जाये और ऐसे समादेश के दिनांक के ठीक पूर्ववर्ती दिनांक को कोईजिला पंचायत उस क्षेत्र पर क्षेत्राधिकार का प्रयोग कर रही हो तो उपधारा (3) के उपबन्ध इस प्रकार प्रवृत्त होंगे मानों नया समाविष्ट क्षेत्र कोई नया जिला हो और परिवर्धित जिले के लिये नयी संगठित जिला पंचायत उक्त उपधारा के प्रयोजनों के लिये नयी जिला पंचायत हो;

5) धारा 18 की उपधारा (1) के खण्ड (क) से (घ) में निर्दिष्ट श्रेणी के सदस्यों में किसी रिक्ति से किसी जिला पंचायत से संघठन या पुनस्संघठन में कोई बाधा नहीं पड़ेगी।

6) जिला पंचायत का संघठन गजट में अधिसूचित किया जायेगा ।

जिला पंचायत की रचना

1)      जिला पंचायत एक अध्यक्ष, जो उसका पीठासीन होगा, और निम्नलिखित से मिलकर बनेगी -

(क)      जिले में समस्त क्षेत्र पंचायतों के प्रमुख ;

(ख)      निर्वाचित सदस्य, जो जिला पंचायत के प्रादेशित निर्वाचन क्षेत्रों से प्रत्यक्ष निर्वाचन द्वारा चुने जायेंगे और इस प्रयोजन के लिये पंचायत क्षेत्र ऐसी रीति से प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्रों में विभाजित किया जायेगा कि प्रत्येक प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्र की जनसंख्या, यथासाध्य, 50,000 होगी; प्रतिबन्ध यह है कि राज्य सरकार नैनीताल, अल्मोड़ा, पिथौरागढ़, टिहरी, पौड़ी, देहरादून, चमोली या उत्तरकाशी के पर्वतीय जिलों में उसके द्वारा इस निमित्त विनिर्दिष्ट ग्राम के केन्द्र से सात किलोमीटर के अर्द्धव्यास (चौदह किलोमीटर के व्यास) के भीतर के क्षेत्र को, या उसके बराबर किसी क्षेत्र को जैसा नियत किया जाये प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्र घोषित कर सकती है यद्यपि कि ऐसे निर्वाचन क्षेत्र की जनसंख्या पचास हजार से कम हो ।

अग्रेतर प्रतिबन्ध है कि किसी जिला पंचायत के प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्र में किसी संघटक क्षेत्र पंचायत का प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्र भागतः सम्मिलित नहीं किया जायेगा।

उत्तरांचल राज्य संशोधन - धारा 18(1)(ख)

निर्वाचित सदस्य जो जिला पंचायत निर्वाचन क्षेत्रों से प्रत्यक्ष निर्वाचन द्वारा चुने जायेंगे और इस प्रयोजन के लिये, पंचायत क्षेत्र निम्नलिखित रीति से प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्रों में विभाजित किया जायेगा -

  1. पर्वतीय क्षेत्र में 24000 तक जनसंख्या वाले विकास खण्ड में न्यूनतम 2 प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्र होंगे तथा 24000 से अधिक जनसंख्या वाले विकास खण्ड में उत्तरोत्तर अनुपातिक वृद्धि के आधार पर प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्र निर्धारित किये जायेंगे;
  2. मैदानी क्षेत्रों में 50000 तक जनसंख्या वाले विकास खण्ड में न्यूनतम 2 प्रादेशिक क्षेत्र होंगे तथा 50000 से अधिक जनसंख्या वाले विकास खण्डों में उत्तरोत्तर अनुपातिक वृद्धि के आधार पर प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्र निर्धारित किये जायेंगे;प्रतिबन्ध यह है कि उक्तानुसार निर्धारित प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्रों की जनसंख्या का अनुपात यथासाध्य सम्बन्धित विकास खण्ड में समान होगा; अग्रेतर प्रतिबन्ध यह है कि जिला पंचायत के प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्र में किसी संघटक क्षेत्र पंचायत का प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्र भागतः सम्मिलित नहीं किया जायेगा। लोकसभा का सदस्य और राज्य की विधान सभा के सदस्य जो उन निर्वाचन क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करते हैं जिनमें पंचायत क्षेत्र का कोई भाग समाविष्ट है; राज्य सभा के सदस्य और राज्य की विधान परिषद् के सदस्य जो पंचायत क्षेत्र के भीतर निर्वाचकों के रूप में रजिस्ट्रीकृत हैं। उपधारा (1) के खण्ड (क), (ग) और (घ) में उल्लिखित जिला पंचायत के सदस्यों को अध्यक्ष या उपाध्यक्ष के निर्वाचन और उनके विरूद्ध अविश्वास प्रस्ताव के मामलों को छोड़कर जिला पंचायत की कार्यवाहियों में भाग लेने और उसकी बैठकों में मत देने का अधिकार होगा।
  3. उपधारा (1) के खण्ड (ख) में उल्लिखित प्रत्येक प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व एक सदस्य द्वारा किया जायेगा।
  4. किसी जिला पंचायत के प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्रों का परिसीमन नियत रीति से किया जा सकता है, और यदि आवश्यक हो तो इस संबंध में नियम भूतलक्षी प्रभाव से, किन्तु उत्तर प्रदेश पंचायत विधि (संशोधन) अधिनियम, 1994 के प्रारम्भ के दिनांक के पूर्व से नहीं बनाये जा सकते हैं।

स्थानों का आरक्षण

1) प्रत्येक जिला पंचायत में अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और पिछड़े वर्गों के लिये स्थान आरक्षित रहेंगे और इस प्रकार आरक्षित स्थानों की संख्या का अनुपात जिला पंचायत में प्रत्यक्ष द्वारा भरे जाने वाले स्थानों की कुल संख्या में, यथाशक्य, वही होगा जो उस पंचायत क्षेत्र में अनुसूचित जातियों की या उस पंचायत क्षेत्र में अनुसूचित जनजातियों की या उस पंचायत क्षेत्र में पिछड़े वर्गों की जनसंख्या का उस क्षेत्र की कुल जनसंख्या में से है और ऐसे स्थान किसी जिला पंचायत में भिन्न-भिन्न प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्रों को चक्रानुक्रम से ऐसे क्रम में, जैसा नियत किया जाये, आवंटित किये जा सकेंगे; प्रतिबन्ध यह है कि जिला पंचायत में पिछड़े वर्गों के लिये आरक्षण कुल स्थानों की संख्या के सत्ताईस प्रतिशत से अधिक नहीं होगा। अग्रेतर प्रतिबन्ध यह है कि यदि पिछड़े वर्गों की जनसंख्या के आंकड़े उपलब्ध न हो तो नियत रीति से सर्वेक्षण करके उनकी जनसंख्या अवधारित की जा सकती है।

2)उपधारा (1) के अधीन आरक्षित स्थानों की संख्या के एक-तिहाई से अन्यून स्थान, यथास्थिति, अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और पिछड़े वर्गों की स्त्रियों के लिये आरक्षित रहेंगे।

3)स्थानों की कुल संख्या के एक-तिहाई से अन्यून स्थान, जिसके अन्तर्गत उपधारा (2) के अधीन आरक्षित स्थानों की संख्या भी है, स्त्रियों के लिये आरक्षित रहेंगे और ऐसे स्थान किसी जिला पंचायत में भिन्न-भिन्न प्रादेशित निर्वाचन क्षेत्रों को चक्रानुक्रम से ऐसे क्रम में, जैसा नियत किया जाये, आवंटित किये जा सकेंगे।

4) अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिये स्थानों का आरक्षण संविधान के अनुच्छेद 334 में विनिर्दिष्ट अवधि की समाप्ति पर प्रभावी नहीं रहेगा।

स्पष्टीकरण - यह स्पष्ट किया जाता है कि इस धारा की कोई भी बात अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और पिछड़े वर्गों के व्यक्तियों और स्त्रियों को अनारक्षित स्थानों के लिये चुनाव लड़ने से निर्धारित  नहीं करेगी। 18-ख, जिला पंचायत की निर्वाचन नामावली - (1) प्रत्येक जिला पंचायक के प्रत्येक प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्र के लिये एक निर्वाचक नामावली होगी। (2) जिला पंचायत के किसी प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्र के लिये निर्वाचक नामावली क्षेत्र पंचायत या क्षेत्र पंचायतों के उतने प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्रों की निर्वाचक नामावलियों से मिलकर बनेगी जितने जिला पंचायत के उस प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्र में समाविष्ट है और किसी जिला पंचायत के ऐसे किसी प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्र के लिये निर्वाचक नामावली पृथकतः तैयार या पुनरीक्षित करना आवश्यक न होगा ; प्रतिबन्ध यह है कि जिला पंचायत के किसी निर्वाचन के लिये नामांकन करने के अंतिम दिनांक के पश्चात् और उस निर्वाचन के पूर्ण होने के पूर्व निर्वाचक नामावली में किया गया कोई सुधार, निष्कासन या परिवर्द्धन उस निर्वाचन के प्रयोजनों के लिये ध्यान में नहीं रखा जायेगा।

मत का अधिकार

इस अधिनियम द्वारा या उसके अधीन अन्यथा उपबन्धित के सिवाय,प्रत्येक व्यक्ति, जिसका नाम तत्समय जिला पंचायत के प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्र के लिये निर्वाचक नामावली में सम्मिलित है, उसके किसी निर्वाचन में मत देने का अधिकारी और जिला पंचायत की सदस्यता किसी पद के निर्वाचन के लिये अर्ह होगा ;प्रतिबन्ध यह है कि कोई व्यक्ति जिसने इक्कीस वर्ष की आयु पूरी न कर ली हो, किसी जिला पंचायत के सदस्य या पदाधिकारी के रूप में निर्वाचित होने के लिये अर्ह नहीं होगा।

अध्यक्ष और उपाध्यक्ष

1) प्रत्येक जिला पंचायत के निर्वाचित सदस्यों द्वारा अपने में से ही एक अध्यक्ष और एक उपाध्यक्ष चुने जायेंगे।

2) जिला पंचायत के निर्वाचित सदस्यों के पदों में किसी रिक्ति के होते हुये भी, अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के पद के लिये चुनाव किया जा सकेगा।

अध्यक्षों के पदों का आरक्षण

1) राज्य में जिला पंचायतों के अध्यक्षों के पद अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और पिछड़े वर्गों के लिये आरक्षित रहेंगे ;प्रतिबन्ध यह है कि ऐसे आरक्षित अध्यक्षों के पदों की संख्या का अनुपात ऐसे पदों की कुल संख्या से, यथाशक्य, वही होगा जो राज्य में अनुसूचित जातियों की, या राज्य अनुसूचित जन-जातियों की या राज्य में पिछड़े वर्गों की जनसंख्या का अनुपात उस राज्य की कुल जनसंख्या में है और ऐसे आरक्षित पद भिन्न-भिन्न जिला पंचायतों को चक्रानुक्रम से ऐसे क्रम में जैसा नियत किया जाय, आवंटित किये जा सकेंगे; अग्रेतर प्रतिबन्ध यह है कि पिछड़े वर्गों के लिये आरक्षण राज्य में अध्यक्षों के पदों की कुल संख्या के सत्ताईस प्रतिशत से अधिक नहीं होगा। अग्रेतर प्रतिबन्ध यह है कि यदि पिछड़े वर्गों की जनसंख्या के आंकड़े उपलब्ध न हों तो नियत रीति से सर्वेक्षण करके उनकी जनसंख्या अवधारित की जा सकती है।

2) उपधारा (1) के अधीन आरक्षित पदों की संख्या के एक-तिहाई से अन्यून, यथास्थिति, अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों या पिछड़े वर्गों की स्त्रियों के लिये आरक्षित रहेंगे।

3) अध्यक्षों के पदों की कुल संख्या के एक-तिहाई से अन्यून पद जिसके अन्तर्गत उपधारा (2) के अधीन आरक्षित पदों की संख्या भी है, स्त्रियों के लिये आरक्षित रहेंगे और ऐसे पद  अधिनियम सं0 21 सन् 1995 द्वारा बढ़ाया गया। चक्रानुक्रम से राज्य में भिन्न-भिन्न जिला पंचायतों के लिये ऐसे क्रम में जैसा नियत किया जाय, आवंटित किये जा सकेंगे।

4) इस धारा के अधीन अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिये अध्यक्षों के पदों का आरक्षण संविधान के अनुच्छेद 334 में विनिर्दिष्ट अवधि की समाप्ति पर प्रभाव नहीं रहेगा।

स्पष्टीकरण - यह स्पष्ट किया जाता है कि इस धारा की कोई भी बात अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों, पिछड़े वर्गों के व्यक्तियों और स्त्रियों को अनारक्षित पदों के लिये चुनाव लड़ने से निर्धारित  नहीं करगी।

जिला पंचायत और उसके सदस्यों का कार्यकाल

1)  प्रत्येक जिला पंचायत, यदि धारा 232 के अधीन उसे पहले ही विघटित नहीं कर दिया जाता है, तो अपनी प्रथम बैठक के लिये नियत दिनांक से पांच वर्ष तक की अवधि तक, न कि उससे अधिक बनी रहेगी।

2) किसी जिला पंचायत के किसी सदस्य का कार्यकाल यदि इस अधिनियम के उपबन्धों के अधीन अन्यथा समाप्त न कर दिया जाय तो जिला पंचायत के कार्यकाल के अवसान तक होगा।

3) किसी जिला पंचायत का संघठन करने के लिये निर्वाचन -

(क) उपधारा (11) में विनिर्दिष्ट उसके कार्यकाल के अवसान के पूर्व,

(ख) उसके विघटन के दिनांक से छ; मास की अवधि के अवसान के पूर्व, पूरा किया जायेगा ; प्रतिबन्ध यह है कि जहाँ शेष अवधि जिसके लिये वह बनी रहती, छः मास से कम है, वहाँ ऐसी अवधि के लिये जिला पंचायत का संघठन करने के लिये उपधारा के अधीन कोई निर्वाचन कराना आवश्यक नहीं होगा। (3-क) इस अधिनियम के किन्हीं अन्य उपबन्धों में किसी बात के होते हुये भी, जहाँ अपरिहार्य परिस्थितियों के कारण या लोक हित में, किसी जिला पंचायत का संघठन करने के लिये उसके कार्यकाल के अवसान के पूर्व निर्वाचन कराना साध्य नहीं है, वहां राज्य सरकार या उसके द्वारा इस निमित्त प्राधिकृत कोई अधिकारी, आदेश द्वारा प्रशासनिक समिति, जिसमें जिला पंचायत के सदस्यों के रूप में निर्वाचित किये जाने के लिये, ऐसी संख्या में जैसी वह उचित समझे, अर्ह व्यक्ति होंगे, या प्रशासक, नियुक्त कर सकता है और प्रशासनिक समिति के सदस्य या प्रशासक छह मास से अनधिक ऐसी अवधि के लिये जैसी कि उक्त आदेश में विनिर्दिष्ट की जाय, पद धारण करेगा और जिला पंचायत, उसके अध्यक्ष और समितियों की समस्त शक्तियॉ, कृत्य और कर्तव्य, यथास्थिति, ऐसी प्रशासनिक समिति या प्रशासक में निहित होंगे और उनके द्वारा उनका प्रयोग सम्पादन और निर्वहन किया जायेगा।

4)किसी जिला पंचायत के कार्यकाल के अवसान के पूर्व उसके विघटन पर संघठित की गई जिला पंचायत उस अवधि के केवल शेष भाग के लिये बनी रहेगी जिस अवधि तक विघटित जिला पंचायत उपधारा (1) के अधीन बनी रहती यदि वह इस प्रकार विघटित नहीं की जाती।

5) कोई भी व्यक्ति जो धारा 18 की उपधारा (1) खण्ड (क), (ग) या (घ) के अधीन जिला पंचायत का सदस्य हो उस पद पर, जिसके आधार पर वह ऐसा सदस्य बना या न रहने पर सदस्य न रहेगा।

अध्यक्ष और उपाध्यक्ष का कार्यकाल

इस अधिनियम में यथा उपबन्धित के सिवाय अध्यक्ष या उपाध्यक्ष का कार्यकाल उसके निर्वाचित होते ही प्रारम्भ हो जायेगा और जिला पंचायत के कार्यकाल के साथ समाप्त होगा।

क) कुछ मामलों में अस्थायी व्यवस्था - जब अध्यक्ष का पद रिक्त हो या वह अनुपस्थित, बीमारी अथवा अन्य किसी कारण से अपने कृत्यों का निर्वहन करने में असमर्थ हो तब जिस दिनांक तक अध्यक्ष अपना पदभार फिर से न ग्रहण कर लें, उस दिनांक तक राज्य सरकार आदेश द्वारा ऐसे अध्यक्ष के कृत्यों का निर्वहन करने के लिये ऐसी व्यवस्था कर सकती है जिसे वह ठीक समझें ।

जिला पंचायत का संघठन तथा पुनस्संघठन और निर्वाचन व्यय की वसूली

राज्य सरकार वर्तमान जिला पंचायत के, यदि कोई हो, कार्यकाल की समाप्ति के पूर्व अथवा जब कभी इस अधिनियम के प्रयोजनों के लिये अन्यथा अपेक्षित हो,जिला पंचायत के संघठन या पुनस्संघठन का प्रबन्ध करेगी।

भ्रष्टाचार के कारण अनर्हता

1)  इस अधिनियम या तद्धीन बनाये गये नियमों के अधीन निर्वाचन-विवादों का निर्णय करने के लिये सक्षम कोई प्राधिकारी किसी उम्मीदवार को जिसके सम्बन्ध में यह पाया जाये कि उसने भ्रष्टाचार किया है, घोषणा के दिनांक से पाँच वर्ष से अधिक किसी अवधि मेंक्षेत्र पंचायत याजिला पंचायत या जिला के सदस्य के रूप में चुने जाने* * * याक्षेत्र पंचायत का प्रमुख याजिला पंचायत का अध्यक्ष निर्वाचित किये जाने अथवा किसी ऐसे पद या स्थान पर जोक्षेत्र पंचायत याजिला पंचायत दे सकती हो या उसके अधिकार में हो, नियुक्त होने या रहने के अयोग्य घोषित कर सकता है।

2) किसी ऐसे व्यक्ति के सम्बन्ध में यह समझा जायेगा कि उसने भ्रष्टाचार किया है, जो प्रत्यक्षतः या अप्रत्यक्षता स्वयं अथवा किसी अन्य व्यक्ति द्वारा –

  • किसी मतदाता को प्रकट,, साशय-मिथ्या-निरूपण, अथवा उत्पीड़न करके या हानि पहुँचाने की धमकी देकर, किसी उम्मीदवार के पक्ष में मत देने अथवा मत न देने के लिये प्रेरित करता है अथवा प्रेरित करने का प्रयत्न करता है;
  • किसी मतदाता को, किसी उम्मीदवार के पक्ष में मत देने या मत न देने के लिये प्रेरित करने के उद्देश्य से किसी व्यक्ति को कोई धनराशि या मूल्यवान प्रतिफल या कोई स्थान या नियोजन देने का प्रस्ताव करता है अथवा देता है या किसी व्यक्तिगत सुविधा या लाभ का वचन देता है;
  • किसी ऐसे मतदाता के नाम से मत देता है या दिलवाता है, जो मत देने वाला व्यक्ति नहीं है;
  • खण्ड (1), (2) और (3) में निर्दिष्ट किसी कृत्य को करने के लिये (इण्डियन पैनल कोड के अर्थ में) अभिप्रेरित करता है;
  • किसी उम्मीदवार को अथवा निर्वाचक को ऐसा विश्वास करने के लिये प्रेरित करता है अथवा प्रेरित करने का प्रयत्न करता है कि वह अथवा कोई अन्य व्यक्ति जिसमें वह अभिरूचि रखता है, दैवी प्रकोप अथवा आध्यात्मिक परिनिन्दा का भागी होगा या बना दिया जायेगा;
  • जाति, समुदाय, सम्प्रदाय या धर्म के आधार पर मतार्थना करता है;
  • कोई अन्य ऐसा कार्य करता है जिसे राज्य सरकार नियम द्वारा भ्रष्टाचार नियत करे।

स्पष्टीकरण - किसी व्यक्ति को व्यक्तिगत सुविधा या लाभ का वचन के अन्तर्गत स्वयं उस व्यक्ति के, या किसी अन्य व्यक्ति के, जिसमें वह अभिरूचि रखता हो, लाभ का वचन भी है, किन्तु इसके अन्तर्गतक्षेत्र पंचायत याजिला पंचायतों में किसी विशिष्ट बात के पक्ष में, विरोध में मत देने का वचन नहीं है।

अध्यक्ष, उपाध्यक्ष या सदस्य का त्याग-पत्र

1)जिला पंचायत का अध्यक्ष, उपाध्यक्ष या कोई निर्वाचित सदस्य स्व हस्ताक्षरित पत्र द्वारा पद-त्याग सकता है, जो अध्यक्ष की दशा में राज्य सरकार को और अन्य दशाओं में अध्यक्ष को सम्बोधित होगा और जिला पंचायत के मुख्य अधिकारी को दिया जायेगा।

2) अध्यक्ष का त्याग-पत्र उस दिनांक से प्रभावी होगा जब राज्य सरकार द्वारा त्याग-पत्र की स्वीकृतिजिला पंचायत के कार्यालय में प्राप्त हो जाये और उपाध्यक्ष या सदस्य का त्याग-पत्र उस दिनांक से प्रभावी होगा जब त्याग-पत्र अध्यक्ष द्वारा स्वीकृत हो जाय और यह समझा जायेगा कि ऐसे अध्यक्ष, उपाध्यक्ष या सदस्य ने अपना पद रिक्त कर दिया है।

आकस्मिक रिक्ति की पूर्ति

यदि अध्यक्ष, उपाध्यक्ष या जिला पंचायत के किसी निर्वाचित सदस्य का पद मृत्यु अथवा अन्य किसी कारण से रिक्त हो जाये तो उसरिक्ति की पूर्ति ऐसी रिक्ति के दिनांक से छः मास की अवधि की समाप्ति के पूर्व उसके पूर्वाधिकारी के शेष कार्यकाल के लिये, यथास्थिति, धारा 18 या 19 में उपबन्धित रीति से की जायेगी;प्रतिबन्ध यह है कि यदि ऐसी रिक्ति होने के दिनांक को जिला पंचायत की शेष अवधि छ; मास से कम हो तो रिक्ति की पूर्ति नहीं की जायेगी।

सदस्य या अध्यक्ष होने के लिये अनर्हता

जो व्यक्ति धारा 13 में उल्लिखित किसी अनर्हता से ग्रस्त हो, धारा 18 के अधीन सदस्य के रूप में अथवा धारा 19 के अधीन अध्यक्ष या उपाध्यक्ष के रूप में निर्वाचित किये जाने के लिये अनर्ह होगा।

सदस्यता या अनर्हता के सम्बन्ध में विवाद

1) यदि वह विवाद उठे कि कोई व्यक्ति धारा 18 की उपधारा (1) खण्ड क के अधीन जिला पंचायत का सदस्य है अथवा नहीं, तो वह विवाद राज्य सरकार को नियत रीति से अभिदिष्ट किया जायेगा और उस पर राज्य सरकार का निर्णय अन्तिम तथा बन्धनकारी होगा।

2) यदि वह विवाद उठे कि कोई व्यक्ति

(क) धारा 18 के अधीनजिला पंचायत का सदस्य विधितः * * * चुना गया है या नहीं, या

ख) धारा 20 के प्रयोजनों के लिये जिला पंचायत के सदस्य* * * के रूप में चुने जाने * * * का पात्र रह गया है या नहीं; या

(ग) धारा 19 के प्रयोजनों के लिये अध्यक्ष या उपाध्यक्ष या सदस्य होने के लिये अनर्हित हो गया है या नहीं, तो

वह विवाद न्यायाधीश को नियत रीति से अभिदिष्ट किया जायेगा, जिसका निर्णय अन्तिम तथा बन्धनकारी होगा।

प्रमुख, या, अध्यक्ष या उपाध्यक्ष होने या बने रहने के लिये विधायकों तथा कतिपय पदधारियों पर रोक

(1) धारा 7, 19 और 27 में दी हुई किसी बात के होते हुये भी –

(क) कोई भी व्यक्ति,प्रमुख, या, अध्यक्ष निर्वाचित किये जाने या होने के लिये अनर्हित होगा, यदि वह -

(1) संसद या राज्य विधान मण्डल का सदस्य हो; या

(2)किसीनगर निगम का नगर प्रमुख या उप नगर प्रमुख हो; या

(3)किसी नगरपालिका का प्रेसीडेंट या वाइस प्रेसीडेंट हों; या

(4) किसी टाउन एरिया कमेटी का चेयरमैन या किसी नोटीफाइड एरिया कमेटी का प्रेसीडेन्ट हो;

(ख) यदि कोई व्यक्ति,प्रमुख, या अध्यक्ष निर्वाचित हो जाने के पश्चात् बाद में खण्ड (क) के उपखण्ड (1) से 4) तक में उल्लिखित किसी पद पर, निर्वाचित या नामनिर्दिष्ट हो जाये तो वह अपने निर्वाचन या अपने नाम निर्देशन की घोषणा के भारत या उत्तर प्रदेश के गजट में प्रथम बार प्रकाशित किये जाने के दिनांक को प्रमुख, या अध्यक्ष के पद पर न रह जायेगा, और तदुपरान्तप्रमुख, या अध्यक्ष के जैसी भी स्थिति हो, पद में आकस्मिक रिक्ति हो जायेगी;

(ग) ऐसा कोई भी प्रश्न या विवाद कि क्या कोई व्यक्ति खण्ड (ख) के अधीन अध्यक्ष उपाध्यक्ष के पद पर है या नहीं, धारा 27 के अधीन न्यायाधीश को न तो अभिर्दिष्ट किया जायेगा और न उसके समक्ष उठाया जायेगा;

(घ) ऐसे किसी प्रश्न या विवाद के सम्बन्ध में कि क्या कोई व्यक्ति खण्ड (ख) के अधीन प्रमुख, या अध्यक्ष के पद पर नहीं रह रहा है, कोई वाद किसी दीवानी न्यायालय में प्रस्तुत नहीं किया जायेगा।

(2) किसी न्यायालय या न्यायाधिकारण के किसी प्रतिकूल निर्णय, डिक्री या आदेश के होते हुये भी, यदि कोई व्यक्ति प्रमुख, उपप्रमुख, अध्यक्ष या उपाध्यक्ष निर्वाचित हो जाने के पश्चात् वाद में 30 अप्रैल, 1969 के पूर्व किसी समय उपधारा (1) के खण्ड (क) के उपखण्ड (1) से (4) तक में उल्लिखित किसी पद पर, निर्वाचित या नाम निर्दिष्ट हो जाये। और उक्त दिनांक के ठीक पूर्व ऐसा पद धारण किये रहे तो, वह उक्त दिनांक को प्रमुख, या अध्यक्ष के पद पर न रह जायेगा, और तदुपरान्त प्रमुख या अध्यक्ष , जैसी भी दशा हो, पद में आकस्मिक रिक्ति हो जायेगी और इस प्रकार पद पर न रह जाने के सम्बन्ध में उक्त उपधारा के खण्ड (ग) और (घ) के उपबन्ध उसी प्रकार लागू से होंगे जिस प्रकार से उक्त उपधारा के खण्ड (ख) के अधीन पद न रह जाने के सम्बन्ध में लागू होते हों, और किसी ऐसे प्रश्न या विवाद के सम्बन्ध में उक्त दिनांक के ठीक पूर्व धारा 27 के अधीन न्यायाधीश के समक्ष विचाराधीन कोई वाद समाप्त हो जायेगा।

एक साथ एक से अधिक पद धारण करने का निषेध

कोई व्यक्ति एक साथ एक से अधिक प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्रों से -

(क) क्षेत्र पंचायत का सदस्य न होगा, या

(ख) जिला पंचायत का सदस्य न होगा, और किसी क्षेत्र पंचायत या जिला पंचायत में एक से अधिक प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्रों से निर्वाचित किसी व्यक्ति द्वारा एक स्थान के अतिरिक्त सभी स्थानों को रिक्त किये जाने की व्यवस्था नियमों द्वारा की जा सकती है।

एक साथ दो पद धारण करने पर अग्रेतर रोक

1) कोई व्यक्ति निम्नलिखित किसी पद पर निर्वाचन के लिये या पद धारण करने के लिये अनर्ह होगा -

(क) किसी क्षेत्र पंचायत का सदस्य, प्रमुख या उपप्रमुख, यदि वह जिला पंचायत का सदस्य, अध्यक्ष या उपाध्यक्ष हो, और

(ख) जिला पंचायत का सदस्य, अध्यक्ष या उपाध्यक्ष यदि वह किसी लेख पंचायत का सदस्य, प्रमुख या उपप्रमुख हो ।

2)यदि कोई व्यक्ति किसी क्षेत्र पंचायत के सदस्य, प्रमुख या उपप्रमुख के पद के साथ-साथ, या बाद में, जिला पंचायत के सदस्य, अध्यक्ष या उपाध्यक्ष के पद पर निर्वाचित होता है तो, यथास्थिति, क्षेत्र पंचायत के सदस्य, प्रमुख या उपप्रमुख के पद पर नहीं रह जायेगा।

3) इस अधिनियम में किसी बात के होते हुये भी, उत्तर प्रदेश पंचायत विधि (संशोधन) अधिनियम, 1994 के प्रारम्भ के पश्चात् हुये प्रथम निर्वाचनों में यदि कोई व्यक्ति एक से अधिक पद के लिये चुना जाता है जिनको एक साथ धारण करने के लिये वह उपधारा (1) के अधीन अनर्ह है, तो वह निर्वाचनों के परिणामों की घोषणा के दिनांक से साठ दिन के भीतर या उक्त पदों के सम्बन्ध में निर्वाचनों के परिणाम की घोषणा भिन्न-भिन्न दिनांकों को की गई है तो अन्तिम घोषणा के दिनांक से साठ दिन के भीतर एक पद को छोड़कर अन्य सभी पदों के अपना त्याग-पत्र प्रस्तुत करेगा और इस तरह से त्याग-पत्र प्रस्तुत करने में विफल रहने की स्थिति में जिला पंचायत में उसके पद को छोड़कर अन्य सभी पद रिक्त समझे जायेंगे ।

 

अध्यक्ष या उपाध्यक्ष में अविश्वास का प्रस्ताव

1)निम्नलिखित उपधाराओं में दी गयी प्रक्रिया के उ0प्र0 अधिनियम सं0 21 सन् 1995 द्वारा बढ़ाया गया। उ0प्र0 अधिनियम सं0 21 सन् 1995 द्वारा बढ़ाया गया। अनुसारक्षेत्र पंचायत के अध्यक्ष या उपाध्यक्ष में अविश्वास प्रकट करने का प्रस्ताव किया जा सकता है तथा उस पर कार्यवाही की जा सकती है।

2) प्रस्ताव के अभिप्राय का लिखित नोटिस, जो नियत प्रपत्र में होगा और जिला पंचायत के तत्समय सदस्यों की कुल संख्या के कम से कम आधे निर्वाचित सदस्यों द्वारा हस्ताक्षरकृत होगा, प्रस्तावित की प्रतिलिपि के साथ, नोटिस पर हस्ताक्षर करने वाले निर्वाचित सदस्यों में से किसी के द्वारा व्यक्तिगत रूप से उसे कलेक्टर को दिया जायेगा जिला पंचायत पर क्षेत्राधिकार हो ।

3) तदुपरान्त कलेक्टर

  • जिला पंचायत की बैठक उक्त प्रस्ताव पर विचार करने के लिये जिला पंचायत के कार्यालय में अपने द्वारा निश्चित दिनांक को बुलायेगा और यह दिनांक उपधारा (1) के अधीन उसे नोटिस दिये जाने के दिनांक से तीस दिन के बाद का न होगा; तथा
  • निर्वाचित सदस्यों को ऐसी बैठक का कम से कम पन्द्रह दिन का नोटिस ऐसी रीति से देगा जो नियत की जाय;

स्पष्टीकरण - इस उपधारा में निर्दिष्ट तीस दिन की अवधि की गणना करने में वह अवधि निकाल दी जायेगी जिसमें इस धारा के अधीन दिये गये प्रस्ताव के विरूद्ध प्रस्तुत की गई याचिका पर किसी सक्षम न्यायालय द्वारा जारी किया गया स्थगन आदेश, यदि कोई हो, प्रचलित रहा हो और वह अतिरिक्त समय भी निकाल दिया जायेगा जो निर्वाचित सदस्यों की बैठक के नये नोटिस जारी करने के निमित्त अपेक्षित हो।

4) कलेक्टर, जिले के न्यायाधीश से ऐसी बैठक की अध्यक्षता की व्यवस्था करेगा; प्रतिबन्ध यह है कि जिला न्यायाधीश अध्यक्षता करने की बजाय अपने अधीनस्थ । किसी दीवानी न्यायाधिकारी (सिविल जुडीशियल आफिसर) को, जो दीवानी न्यायाधीश (सिविल जज) से निम्न श्रेणी का न हो, ऐसी बैठक की अध्यक्षता करने का आदेश दे सकता है।

4-क) यदि बैठक के लिये निश्चित समय से आधे घण्टे के भीतर, ऐसा अधिकारी अध्यक्षता करने के लिये उपस्थित न हो तो बैठक उस दिनांक और समय तक के लिय स्थगित हो जायेगी जिसे वह अधिकारी (4–ख) के अधीन निश्चित करेगा।

(4–ख) यदि उपधारा (4) में उल्लिखित अधिकारी बैठक की अध्यक्षता करने में असमर्थ हो तो वह तत्सम्बन्धी अपने कारणों को अभिलिखित करने के पश्चात् उसे किसी अन्य दिनांक और समय के लिये स्थगित कर सकता है जिसे वह निश्चित करे, किन्तु यह दिनांक उपधारा (3) के अधीन बैठक के लिये निश्चित दिनांक से 25 दिन से अधिक न होगा। वह कलेक्टर को लिखित रूप में बैठक के स्थगतन की सूचना अविलम्ब देगा। कलेक्टरनिर्वाचित सदस्यों की अगली बैठक की सूचना उपधारा (3) के अधीन नियत रीति से कम से कम दस दिन पहले देगा।

5) उपधारा (4–क) तथा (4–ख) में की गयी व्यवस्था को छोड़कर इस धारा के अधीन किसी प्रस्ताव पर विचार करने के लिये बुलायी गई बैठक स्थगित न की जायेगी।

6) इस धारा के अधीन बुलायी गयी बैठक के प्रारम्भ होते ही पीठासीन अधिकारीजिला पंचायत को वह प्रस्ताव पढ़कर सुनायेगा जिस पर विचार करने के लिये बुलायी गयी हो और यह घोषित करेगा कि उस प्रस्ताव पर वाद-विवाद किया जा सकता है।

7) इस धारा के अधीन प्रस्ताव पर वाद-विवाद स्थगित न किया जायेगा।

8)यदि ऐसा वाद-विवाद, बैठक आरम्भ होने के लिये निश्चित समय से दो घण्टे बीतने के पहले ही समाप्त न हो गया हो तो दो घण्टे बीतते ही स्वतः समाप्त हो जायेगा। वाद-विवाद की समाप्ति पर अथवा उक्त दो घण्टे की समाप्ति पर जो भी पहले हो, वह प्रस्ताव मतदान के लिये प्रस्तुत किया जायेगाजो गुप्त मतदान द्वारा नियत रीति से होगा।

स्रोत: पंचायतीराज प्रभाग, उत्तर प्रदेश सरकार

अंतिम बार संशोधित : 12/20/2019



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