संविधान के अधीन गारंटीकृत और मान्यताप्राप्त माता – पिता और वरिष्ठ नागरिकों के भरणपोषण तथा कल्याण के लिए अधिक प्रभावी उपबंधों का और उनसे संबंधित या उनके आनुषांगिक विषयों का उपबंध करने के लिए अधिनियम।
1. 1) इस अधिनियम का संक्षिप्त नाम माता – पिता और वरिष्ठ नागरिकों का भरण पोषण तथा कल्याण अधिनियम 2007 है।
2) इसका विस्तार, जम्मू कश्मीर राज्य के सिवाय संपूर्ण भारत पर है और यह भारत के बाहर भारत के नागरिकों को भी लागू होगा।
3) यह किसी राज्य में, उस तारीख को प्रवृत्त होगा, जो राज्य सरकार राजपत्र में अधिसूचना द्वारा नियत करें।
2. इस अधिनियम में, जब तक संदर्भ में अन्यथा अपेक्षित न हो –
क) बालक के अंतर्गत पुत्र, पुत्री, पौत्र है, किन्तु इसमें कोई अवयस्क सम्मिलित नहीं है
ख) भरणपोषण में आहार, वस्त्र, निवास और चिकित्सीय परिचर्या और उपचार उपलब्ध कराना सम्मिलित है।
ग) अवयस्क में ऐसा व्यक्ति अभिप्रेत है, जिसके बारे में भारतीय वयस्कता अधिनियम 1875 के उपबंधों के अधीन यह समझा जाता है कि उसने वयस्कता की आयु प्राप्त नहीं की है।
घ) माता - पिता से पिता या माता अभिप्रेत है, चाहे वह यथास्थिति, जैविक, दत्तक या सौतेला पिता या सौतेली माता है, चाहे माता या पिता वरिष्ठ नागरिक है या नहीं।
ङ) विहित से इस अधिनियम के अधीन राज्य सरकार द्वारा बनाये गये नियमों द्वारा विहित अभिप्रेत है।
च) संपत्ति से किसी प्रकार की संपत्ति अभिप्रेत है, चाहे वह जंगम या स्थावर, पैतृक या स्वयं अर्जित मूर्त या अमूर्त हो और जिसमें ऐसी संपत्ति में अधिकार या हित सम्मिलित हैं
छ) नातेदार से नि: संतान वरिष्ठ नागरिक का कोई विधिक वारिस अभिप्रेत है, जो अवयस्क नहीं है तथा उसकी मृत्यु के पश्चात् उसकी संपत्ति उसके कब्जे में है या विरासत में प्राप्त करेगा।
ज) वरिष्ठ नागरिक से कोई ऐसा व्यक्ति अभिप्रेत है, जो भारत का नागरिक है और जिसने साठ वर्ष या अधिक आयु प्राप्त कर ली है।
ञ) अधिकरण से धारा 7 के अधीन गठित भरणपोषण अधिकरण अभिप्रेत है
ट) कल्याण से वरिष्ठ नागरिकों के लिए आवश्यक आहार, स्वास्थ्य देख – रेख, आमोद प्रमोद केन्द्रों और अन्य सूख सुविधाओं की व्यवस्था करना अभिप्रेत है।
अधिनियम का अध्यारोही प्रभाव होता
3. इस अधिनियम के उपबंधों का, इस अधिनियम से भिन्न किसी अधिनियमिति में या इस अधिनियम से भिन्न किसी अधिनियमिति के कारण प्रभाव रखने वाली किसी लिखत में अंतर्विष्ट उससे असंगत किसी बात के होते हुए भी, प्रभाव होगा।
माता - पिता और वरिष्ठ नागरिकों का भरणपोषण
4. 1) कोई वरिष्ठ नागरिक, जिसके अंतर्गत माता - पिता है, जो स्वयं के अर्जन से या उसके स्वामित्वाधीन सम्पति में से स्वयं का भरणपोषण करने में असमर्थ है, -
i. माता – पिता या पितामह की दशा में, अपने एक या अधिक बालकों के विरूद्ध, जो अवयस्क नहीं है,
ii. किसी नि:संतान वरिष्ठ नागरिक की दशा में, अपने ऐसे नातेदार के विरूद्ध, जो धारा 2 के खंड (छ) में निर्दिष्ट है,
धारा 5 के अधीन कोई आवेदन करने का हकदार होगा।
2) किसी वरिष्ठ नागरिक का भरणपोषण करने के लिए, यथस्थिति, बालक या नातेदार की बाध्यता ऐसे नागरिक की आवश्यकताओं तक विस्तारित होती है. जिससे कि वरिष्ठ नागरिक एक सामान्य जीवन व्यतीत कर सके।
3) अपने माता – पिता का भरणपोषण करने की बालक की बाध्यता, यथास्थिति, ऐसे माता – पिता अथवा पिता या माता या दोनों की आवश्यकता तक विस्तारित होती है, जिससे कि ऐसे माता – पिता, सामान्य जीवन व्यतीत कर सकें।
4) कोई व्यक्ति, जो किसी वरिष्ठ नागरिक का नातेदार है और जिसके पास पर्याप्त साधन है, ऐसे वरिष्ठ नागरिक का भरणपोषण करेगा, परंतु यह तब जब कि ऐसे वरिष्ठ नागरिक संपत्ति उसके कब्जे में है या वह ऐसे वरिष्ठ नागरिक की सम्पत्ति को विरासत में प्राप्त करेगा।
परंतु जहाँ किसी वरिष्ठ नागरिक की संपत्ति को एक से अधिक नातेदार विरासत में प्राप्त करने के हक़दार हैं, वहां भरणपोषण, ऐसे नातेदारों द्वारा उस अनुपात में संदेय होगा, जिसमें वे उसकी संपत्ति को विरासत में प्राप्त करेंगे।
भरणपोषण के लिए आवेदन
5. 1) धारा 4 के अधीन भरणपोषण के लिए कोई आवेदन
क) यथा स्थिति, किसी वरिष्ठ नागरिक या किसी माता – पिता द्वारा किया जा सकेगा, या
ख) यदि वह अशक्त है तो उसके द्वारा प्राधिकृत किसी अन्य व्यक्ति या संगठन द्वारा किया जा सकेगा, या
ग) अधिकरण स्वप्रेरणा से संज्ञान ले सकेगा।
1860 का 21 स्पष्टीकरण – इस धारा के प्रयोजनों के लिए संगठन से सोसाइटी रजिस्ट्रीकरण अधिनियम, 1860 या तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि के अधिन रजिस्ट्रीकृत कोई स्वैच्छिक संगम अभिप्रेत है।
2) अधिकरण, इस धारा के अधीन भरणपोषण के लिए मासिक भत्ते की बाबत कार्यवाही के लंबित रहने के दौरान, ऐसे बालक या नातेदार को ऐसे वरिष्ठ नागरिक के जिसके अंतर्गत माता – पिता भी हैं, अंतरिम भरणपोषण के लिए मासिक भत्ता देने और उसका ऐसे वरिष्ठ नागरिक को, जिसके अंतर्गत माता – पिता भी हैं, संदाय करने का आदेश कर सकेगा. जो अधिकरण समय – समय पर निदेशित करे।
3) उपधारा (1) के अधीन भरणपोषण के लिए आवेदन की प्राप्ति पर, बालक या नातेदार को आवेदन की सूचना देने के पश्चात् और पक्षकारों को सुनवाई का अवसर देने के पश्चात्, भरणपोषण की रकम का अवधारणा करने के लिए कोई जाँच कर सकेगा।
4) भरणपोषण के लिए मासिक भत्ते हेतु और कार्यवाही के खर्चे के लिए उपधारा (2) के अधिन फ़ाइल् किये गये किसी आवेदन का, ऐसे व्यक्ति को आवेदन की सूचना की तामील की तारीख से नब्बे दिन के भीतर निपटान किया जाएगा।
परंतु अधिकरण, अपवादिक परिस्थितियों में उक्त अवधि को, कारणों को लेखबद्ध करते हुए एक बार में तीस दिन को अधिकतम अवधि के लिए विस्तारित कर सकेगा।
5) उपधारा (1) के अधिन भरणपोषण के लिए कोई आवेदन एक या अधिक व्यक्तियों के विरूद्ध फ़ाइल किया जा सकेगा।
परंतु ऐसे बालक या नातेदार भरणपोषण के लिए आवेदन में माता – पिता का भरणपोषण करने के लिए दायी अन्य व्यक्ति को पक्षकार बना सकेगी।
6) जहाँ भरणपोषण का आदेश एक या अधिक व्यक्तियों के विरूद्ध किया गया था, वहां उनमें से एक व्यक्ति की मृत्यु से भरणपोषण का संदाय जारी रखने के अन्य व्यक्तियों के दायित्व पर प्रभाव नहीं पड़ेगा।
7) भरणपोषण के लिए कोई ऐसा भत्ता और कार्यवाही के खर्चे आदेश की तारीख से या यदि ऐसा आदेश किया जाता है, यथास्थिति, भरणपोषण या कार्यवाही के खर्चे, आवेदन की तारीख से संदेय होंगे।
8) यदि ऐसे बालक या नातेदार, जिन्हें ऐसा आदेश दिया जाता है, पर्याप्त हेतुक के बिना आदेश का पालन करने में असफल रहते हैं, तो कोई ऐसा अधिकरण, आदेश के प्रत्येक भंग के लिए, जुर्माने का उद्ग्रहण करने के लिए उपबंधिक रीति में देय रकम के उद्ग्रहण का वारंट जारी कर सकेगा और ऐसे व्यक्ति को, यथास्थिति, प्रत्येक मास के संपूर्ण भरणपोषण भत्ते या उसके किसी भाग के इए और कार्यवाही के खर्चे के लिए ऐसे वारंट के निष्पादन के पश्चात् असंदत्त शेष भाग के लिए कारावास से, जो एक मास तक का हो सकेगा या यदि संदाय शीघ्र किया जाता है तो संदाय करने तक, इनमें से जो भी पूर्वतर हो, दंडादिष्ट कर सकेगा।
परंतु इस धारा के अधीन शोध्य किसी रकम की वसूली के लिए कोई वारंट तब तक जारी नहीं किया जाएगा, जब तक उस तारीख से, जिसको यह रकम शोध्य हो जाती है, तीन मास की अवधि के भीतर उस रकम के उद्ग्रहण के लिए अधिकरण को आवेदन नहीं किया जाएगा।
अधिकारिता और प्रक्रिया
6. 1) धारा 5 के अधीन बालकों या नातेदारों के विरूद्ध किसी जिले में कार्यवाही शुरू की जा सकेगी –
क) जहाँ वह निवास करता है या उसने अंतिम बार निवास किया है, या
ख) जहाँ बालक या नातेदार निवास करता है।
2) धारा 5 के अधीन आवेदन की प्राप्ति पर, अधिकरण, उस बालक या नातेदार, जिसके विरूद्ध आवेदन फ़ाइल किया गया है, की उपस्थिति उपाप्त करने के लिए आदेशिका जारी करेगा।
3) बालक या नातेदार की उपस्थिति सुनिश्चित करने के लिए अधिकरण को दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 के अधीन यथा उपबंधित प्रथम वर्ग न्यायिक मजिस्ट्रेट की शक्तियां होंगी। 1974
4) ऐसी कार्यवाहियों के सभी साक्ष्य उस बालक या नातेदार की, जिसके विरूद्ध भरणपोषण के संदाय के लिए आदेश किया जाना प्रस्तावित है, उपस्थिति में लिए जायेंगे और समन मामलों के लिए विहित रीति में अभिलिखित किये जाएंगे –
परंतु यदि अधिकरण का यह समाधान हो जाता है कि वह बालक या नातेदार जिसके विरूद्ध भरणपोषण के संदाय के लिए आदेश किया जाना प्रस्तावित है, जानबूझकर तामिल से बच रहा है, या जानबूझकर अधिकरण में उपस्थित होने की उपेक्षा कर रहा है, तो अधिकरण मामले की एक पक्षीय रूप से सुनवाई करने और अवधारित करने के लिए कार्यवाही कर सकेगा।
5) जहाँ बालक या नातेदार भारत से बाहर निवास कर रहा है, वहां अधिकरण द्वारा समन ऐसे प्राधिकारी के माध्यम से तामील किये जाएंगे, जिसे केन्द्रीय सरकार राजपत्र में अधिसूचना द्वारा इस निमित्त विनिर्दिष्ट करें।
6) अधिकरण धारा 5 के अधीन आवेदन की सुनवाई करने से पूर्व उसे सुलह अधिकारी को निर्दिष्ट कर सकेगा और ऐसा सुलह अधिकारी अपने निष्कर्षों को एक मास के भीतर प्रस्तुत करेगा और यदि सौहाद्रपूर्ण सुलह हो गई है तो अधिकरण उस आशय का आदेश पारित करेगा।
स्पष्टीकरण - इस उपधारा के प्रयोजनों के लिए सुलह अधिकारी से धारा 5 की उपधारा (1) के स्पष्टीकरण में निर्दिष्ट कोई व्यक्ति या संगठन का प्रतिनिधि या धारा 18 की उपधारा (1) के धिन राज्य सरकार द्वारा अभिहित भरणपोषण अधिकारी या इस प्रयोजन के लिए अधिकरण द्वारा नाम निर्दिष्ट कोई अन्य व्यक्ति अभिप्रेत है।
भरणपोषण अधिकरण का गठन
7. 1) राज्य सरकार, इस अधिनियम में प्रारंभ की तारीख से छह मास अवधि के भीतर, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, प्रत्येक उपखंड के लिए एक या अधिक अधिकरणों का, जो वह धारा 5 के अधीन भरणपोषण के आदेश के न्यायनिर्णयन और उसका विनिश्चय करने के लिए आवश्यक समझे, गठन करेगी।
2) अधिकरण की अध्यक्षता राज्य के उपखंड अधिकारी से अन्यून पंक्ति के अधिकारी द्वारा की जाएगी।
3) जहाँ, किसी क्षेत्र के लिए दो या अधिक अधिकरण गठित किये जाते हैं, वहां राज्य सरकार, साधारण या विशेष आदेश द्वारा, उनके बीच कारबार के वितरण को विनियमित कर सकेगी।
जाँच की दशा में संक्षिप्त प्रक्रिया।
8. 1) अधिकरण, धारा 5 के अधीन कोई जाँच करने में, ऐसे किन्हीं नियमों के अधिन रहते आये है, जो इस निमित्त राज्य सरकार द्वारा विहित किये जाएँ, ऐसी संक्षिप्त प्रक्रिया का अनुसरण करेगा, जो वह ठीक समझे।
2) अधिकरण को शपथ पर साक्ष्य लेने और साक्षियों को हाजिर कराने तथा दस्तावेजों और भौतिक पदार्थों की प्रकट करने का पता कराने और उनको पेश करने के लिए बाध्य करने के प्रयोजन के लिए तथा ऐसे अन्य प्रयोजनों के लिए, जो विहित किये जाएँ, सिविल न्यायालय की सभी शक्तियाँ होंगी और अधिकरण दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 195 और अध्याय 26 के सभी प्रयोजनों के लिए सिविल न्यायालय समझा जाएगा।
3) इस निमित्त बनाए जाने वाले किसी नियम के अधीन रहते हुए, अधिकरण भरणपोषण के लिए किसी दावे का न्यायनिर्णयन करने और उसका विनिश्चय करने के प्रयोजन के लिए, जाँच करने में उसकी सहायता करने के लिए ऐसे किसी एक या अधिक व्यक्तियों को चुन सकेगा, जिनके पास जाँच से सुसंगत किसी विषय का विशेष ज्ञान हो।
भरणपोषण का आदेश
9. 1) यदि, यथास्थिति, बालक या नातेदार ऐसे वरिष्ठ नागरिक का जो स्वयं अपना भरणपोषण करने में असमर्थ हैं, भरणपोषण करने से उपेक्षा या इंकार करते हैं तो अधिकरण, ऐसी उपेक्षा या इंकार के बारे में समाधान हो जाने पर, ऐसे बालकों या नातेदारों को ऐसे वरिष्ठ नागरिक के भरणपोषण के लिए ऐसी मासिक दर पर मासिक भत्ता देने का, जो अधिकरण ठीक समझे और ऐसे वरिष्ठ नागरिक को उस भत्ते का संदाय करने का आदेश दे सकेगा जो अधिकरण समय – समय पर निर्देश दें।
2) ऐसा अधिकतम भरणपोषण भत्ता, जिसका ऐसे अधिकरण द्वारा आदेश दिया जाए, वह होगा जो राज्य सरकार द्वारा विहित किया जाये और जो दस हजार रूपये प्रति मास से अधीक नहीं होगा।
भत्ते में परिवर्तन
10. 1) भरणपोषण के लिए किसी तथ्य के दुर्व्यपदेशन या भूल के या धारा 5 के अधिन मासिक भत्ता प्राप्त करने वाले किसी व्यक्ति की अथवा भरणपोषण के लिए मासिक भत्ते का संदाय करने के लिए उस धारा के अधीन आदेशित व्यक्ति की परिस्थितियों में परिवर्तन पर, अधिकरण भरणपोषण के भत्ते में ऐसा परिवर्तन कर सकेगा, जो वह ठीक समझे।
2) जहाँ, अधिकरण को यह प्रतीत होता है कि किसी सक्षम सिविल न्यायालय के किसी विनिश्चय के परिणामस्वरुप धारा 9 के अधीन किये गये किसी आदेश को रद्द या परिवर्तित किया जाना चाहिए तो वह तदनुसार, यथास्थिति, उस आदेश को रद्द परिवर्तित कर सकेगा।
भरणपोषण के आदर्श का प्रवर्तन
11. 1) भरणपोषण के आदेश और कार्यवाहियों के व्ययों के संबंध में आदेश की प्रति, यथास्थिति, उस वरिष्ठ नागरिक या माता – पिता को, जिसके पक्ष में वह आदेश किया गया किसी फ़ीस के संदाय के बिना दी जाएगी और ऐसा आदेश किसी अधिकरण द्वारा ऐसे किसी स्थान पर जहाँ, वह व्यक्ति है, जिसके विरूद्ध वह आदेश किया गया है, पक्षकारों की पहचान और, यथास्थिति, शाध्य भत्ते, या व्यय के असंदाय के बारे में उस अधिकरण का समाधान हो जाने पर प्रवृत्त किया जाएगा।
2) इस अधिनियम के अधीन किये गये भरणपोषण के आदेश का वही बल और प्रभाव होगा जो दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 के अध्याय 9 के अधीन पारित आदेश का होता है और वह उस संहिता द्वारा ऐसे आदेश के निष्पादन के लिए विहित रीति में निष्पादित किया जाएगा।
कतिपय मामलों में भरणपोषण के संबंध में विकल्प
12. दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 के अध्याय 9 में किसी बात के होते हुए भी, जहाँ कोई वरिष्ठ नागरिक या माता – पिता उक्त अध्याय के अधीन भरणपोषण के लिए हकदार हैं और इस अधिनियम के अधीन भरणपोषण के लिए भी हकदार है, वहां, वह उक्त संहिता के अध्याय 9 के उपबंधों पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, उन दोनों अधिनियमों में से किसी के अधीन ऐसे भरणपोषण का दावा कर सकेगा, किन्तु दोनों के अधीन नहीं।
भरण पोषण की रकम को जमा किया जाना।
13. जब इस अध्याय के अधीन कोई आदेश किया जाता है तब ऐसा बालक या नातेदार, जिससे ऐसे आदेश के निबंधनों के अनुसार किसी रकम का संदाय करना अपेक्षित हैं, अधिकरण द्वारा आदेश सुनाए जाने की तारीख से तीस दिन के भीतर आदेशित संपूर्ण रकम संपूर्ण रकम ऐसी रीति में जमा करेगा, जो अधिकरण निर्देश दे।
जहाँ कोई दावा अनुज्ञात किया जाता है वहां ब्याज का अधिनिर्णय
14. जहाँ कोई अधिकरण इस अधिनियम के अधीन भरण पोषण का कोई आदेश करता है, वहाँ ऐसा अधिकरण यह निर्देश दे सकेगा कि भरणपोषण की रकम के अतिरिक्त, ऐसी दर पर और ऐसी तारीख से, जो आवेदन करने की तारीख से पूर्व की तारीख न हो और जो अधिकरण द्वारा अवधारित की जाये, साधारण ब्याज का भी संदाय किया जाएगा जो पांच प्रतिशत से कम और अठारह प्रतिशत से अधिक नहीं होगा।
परंतु जहाँ दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 के अध्याय 9 के अधीन भरणपोषण के लिए कोई आवेदन इस अधिनियम के प्रारंभ पर किसी न्यायालय के समक्ष लंबित हैं, वहां न्यायालय माता – पिता के अनुरोध पर ऐसे आवेदन को वापस लेने के लिए अनुज्ञात करेगा और ऐसे माता – पिता अधिकरण के समक्ष भरणपोषण के लिए आवेदन फ़ाइल करने के हकदार होंगे।
अपील अधिकरण का गठन
15. 1) राज्य सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा अधिकरण के आदेश के विरूद्ध अपील की सुनवाई करने के लिए प्रत्येक जिले के लिए एक अपील अधिकरण का टी गठन कर सकेगी।
2) अपील अधिकरण का अध्यक्ष ऐसा अधिकारी होगा, जो जिला मजिस्ट्रेट की पंक्ति से नीचे का न हो।
अपीलें
16. 1) अधिकरण के किसी आदेश द्वारा व्यथित, यथास्थिति, कोई वरिष्ठ नागरिक या कोई माता – पिता आदेश की तारीख से साथ दिन के भीतर अपील अधिकरण को अपील कर सकेगा।
परंतु अपील पर, वह बालक या रिश्तेदार, जीसे ऐसे भरणपोषण के आदेश के निबंधनों के अनुसार किसी रकम का संदाय किये जाने की अपेक्षा की गई है, ऐसे माता – पिता को इस प्रकार आदेशित रकम का संदाय अपील अधिकरण द्वारा निदेशित रीति से करता रहेगा।
परंतु यह और कि अपील अधिकरण, यदि उसका यह समाधान हो जाता है कि अपीलार्थी समय के भीतर अपील करने से पर्याप्त कारण से निवारित हुआ था, साठ दिन की उक्त अवधि की समाप्ति के पश्चात् अपील ग्रहण कर सकेगा।
2) अपील अधिकरण, अपील की प्राप्ति पर, प्रत्यर्थी पर सूचना की तामील करवाएगा।
3) अपील अधिकरण उस अधिकरण से, जिसके आदेश के विरूद्ध अपील की जाती है, कार्यवाहियों का अभिलेख मंगा सकेगा।
4) अपील अधिकरण, अपील और मंगाए गये अभिलेख की परीक्षा करने के पश्चात् या तो अपील को मंजूर कर सकेगा या ख़ारिज कर सकेगा।
5) अपील अधिकरण, अधिकरण के आदेश के विरूद्ध फ़ाइल की गी अपील का न्यायनिर्णयन और विनिश्चय करेगा तथा अपील अधिकरण का आदेश अंतिम होगा।
परंतु कोई अपील तब तक ख़ारिज नहीं की जाएगी, जब तक कि दोनों पक्षकारों को वैयक्तिक रूप से या सम्यक रूप से प्राधिकृत प्रतिनिधि के माध्यम से सुने जाने का अक्सर ने दे दिया गया हो।
6) अपील अधिकरण अपना आदेश अपील की प्राप्ति के एक मास के भीतर लिखित में सुनाने का प्रयास करेगा।
7) उपधारा (5) के अधीन किये गये प्रत्येक आदेश की एक – एक प्रति दोनों पक्षकारों को नि:शुल्क भेजी जाएगी।
विधिक अभ्यावेदन का अधिकार
17. किसी अन्य विधि में किसी बात के होते हुए भी, अधिकरण या अपील अधिकरण के समक्ष कार्यवाहियों के किसी पक्षकार का प्रतिनिधित्व किसी विधि व्यवसायी द्वारा नहीं किया जायगे।
भरणपोषण अधिकारी
18. 1) राज्य सरकार, जिला समाज कल्याण अधिकारी या जिला समाज कल्याण अधिकारी की पंक्ति में अन्यून पंक्ति के किसी अधिकारी को, चाहे वह किसी नाम से ज्ञात हो, भरणपोषण अधिकार के रूप में पदाभिहित करेगी।
2) उपधारा (1) में निर्दिष्ट भरणपोषण अधिकारी, यदि कोई माता – पिता ऐसी वांछा करे, उसका, यथास्थिति, अधिकरण के समक्ष कार्यवाहियों के दौरान प्रत्तिनिधित्व करेगा।
19 . 1) राज्य सरकार, ऐसी पहुँच के भीतर के स्थानों पर, चरणबद्ध रीति में, वृद्धाश्रम स्थापित करेगी और उनका अनुरक्षण करेगी, जितने वह आवश्यक समझे और आरंभ में प्रत्येक जिले में कम – से – कम एक ऐसे वृद्धश्रम की स्थापना करेगी, जिसमें न्यूनतम एक सौ पचास ऐसे वरिष्ठ नागरिकों को आवास सुविधा दी जा सके, जो निर्धन है।
2) राज्य सरकार, वृद्धाश्रम के प्रबंध की एक स्कीम विहित करेगी, जिसके अंतर्गत उनके द्वारा प्रदान की जाने वाली सेवाओं के मानदंड और विभिन्न प्रकार की सेवाएँ भी हैं, जो ऐसे आश्रमों के निवासियों को चिकित्सीय देखरेख और मनोरंजन के साधनों के लिए आवश्यक है।
स्पष्टीकरण – इस धारा के प्रयोजनों के लिए निर्धन से कोई ऐसा वरिष्ठ नागरिक अभिप्रेत हैं, जिसके पास स्वयं के भरणपोषण करने के लिए उतने पर्याप्त साधन नहीं हैं, जो राज्य सरकार द्वारा, समय – समय पर अवधारित किये जाएँ।
वरिष्ठ नागरिकों के लिए चिकित्सा सहायता
20. राज्य सरकार यह सुनिश्चित करेगी कि –
i. सरकारी अस्पताल या सरकार द्वारा पूर्णत: या भागत वित्तपोषित अस्पताल, सभी वरिष्ठ नागरिकों की, यथासंभव, विस्तार प्रदान करेंगे।
ii. वरिष्ठ नागरिकों के लिए पृथक पंक्तियों की व्यवस्था की जाएगी।
iii. चिरकारी, जानलेवा और हासी रोगों के उपचार के लिए सुविधाएँ वरिष्ठ नागरिकों तक विस्तारित की जाएँ।
iv. चिरकारी वृद्धावस्था के रोगों और वृद्धावस्था के संबंध में अनुसन्धान क्रियाकलापों का विस्तार किया जाये।
v. जरा चिकित्सीय देखरेख में अनुभव रखने वाले चिकित्सा अधिकारी को अध्यक्षता वाले प्रत्येक जिला अस्पताल में जरा चिकित्सा के रोगियों के लिए निर्दिष्ट सुविधायें नि:शुल्क दी जाएँ।
वरिष्ठ नागरिकों के कल्याण के लिए प्रचार, जागरूकता, आदि के उपाय
21. राज्य सरकार, यह सुनिश्चित करने के लिए सभी उपाय करेगी कि –
i. इस अधिनियम के उपबंधों का जन माध्यम, ज्सिके अंतर्गत टेलीवीजन, रेडियो और मुद्रण माध्यम भी हैं, सर नियमित अंतरालों पर व्यापक प्रचार किया जाए।
ii. केंद्रीय सरकार और राज्य सरकारों के अधिकारीयों को, जिसके अंतर्गत पुलिस अधिकारी और न्यायिक सेवा सदस्य भी हैं, इस अधिनियम से संबंधित मुद्दों पर समय समय पर सुग्राही और जागरूक होने का प्रशिक्षण दिया जाये।
iii. वरिष्ठ नागरिकों के कल्याण से संबंधित मुद्दों का समाधान करने के लिए विधि, गृह, स्वास्थ्य और कल्याण से संबंद्ध मंत्रालयों या विभागों द्वारा प्रदान की गई सेवाओं के बीच प्रभावी समन्वय और उनका कालिक पुनर्विलोकन किया जाये।
प्राधिकारी, जिन्हें इस अधिनियम के उपबंधों की कार्यान्वित करने के लिए विनिर्दिष्ट किया जा सकेगा।
22. 1) राज्य सरकार, किसी जिला मजिस्ट्रेट को ऐसी शक्तियां प्रदत्त कर सकेगी और उस पर ऐसे कर्तव्य अधिरोपीत कर सकेगी, जो इस अधिनियम के उपबंधों का उचित रूप से पालन सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक हो, और जिला मजिस्ट्रेट, अपने अधीनस्थ ऐसे अधिकारी को, जो इस प्रकार प्रदत्त या किसी शक्ति का प्रयोग और अधिरोपित सभी या किसी कर्तव्य का पालन करेगा और वे स्थानीय सीमाएं विनिर्दिष्ट कर सकेगा, जिनके भीतर ऐसी शक्तियों या कर्तव्यों का, जो विहित किए जाएं, उस अधिकारी द्वारा पालन किया जाएगा।
2) राज्य सरकार, वरिष्ठ नागरिकों के जीवन और संपत्ति को सुरक्षा प्रदान करने के लिए एक व्यापक कार्य योजना विहित करेगी।
कतिपय परिस्थितियों में संपत्ति के अंतरण का शून्य होना।
23. 1) जहाँ कोई वरिष्ठ नागरिक, जिसने इस अधिनियम के आरंभ के पश्चात् अपनी संपत्ति का दान के रूप में अन्यथा अंतरण इस शर्त के अधीन रहते हुए किया है कि अंतरिती, अंतरक को बुनियादी सुख – सुविधायें और बुनियादी भौतिक आवश्यकताएं प्रदान करेगा और ऐसा अंतरिती ऐसी सुख – सुविधाओं तथा भौतिक आवश्यकताएं प्रदान करने से इंकार करेगा या असफल रहेगा तो संपत्ति का उक्त अंतरण कपट या प्रपीड़न या अनावश्यक प्रभाव के अधीन किया गया समझा जाएगा और अंतरक के विकल्प पर अधिकरण द्वारा शून्य घोषित किया जाएगा।
2) जहाँ किसी वरिष्ठ नागरिक को किसी संपदा से भरणपोषण प्राप्त करने का अधिकार है ऐसी संपदा या उसका भाग अंतरिक कर दिया जाता है, यदि अंतरिती को उस अधिकार की जानकारी है या, यदि अंतरण बिना प्रतिफल के हैं तो भरणपोषण प्राप्त करने का अधिकार अंतरिती के विरूद्ध प्रवृत्त किया जा सकेगा, न कि उस अंतरिती के विरूद्ध जो प्रतिफल के लिए है और जिसके पास अधिकार की सूचना नहीं है।
3) यदि कोई वरिष्ठ नागरिक उपधारा (1) और उपधारा (2) के अधीन अधिकार को प्रवर्तित कराने में असमर्थ है तो धारा 5 की उपधारा (1) के स्पष्टीकरण में निर्दिष्ट किसी संगठन द्वारा उसकी ओर से कार्रवाई की जा सकेगी।
वरिष्ठ नागरिकों को आरक्षित छोड़ना और उनका परित्याग
24. जो कोई, जिसके पास वरिष्ठ नागरिक की देखरेख या सुरक्षा है, ऐसे वरिष्ठ नागरिक को, किसी स्थान में, ऐसे वरिष्ठ नागरिक का पूर्णतया परित्याग करने के आशय से छोड़ेगा, वह ऐ सी अवधि के किसी कारावास से, जो तीन मास तक की हो सकेगी या जुर्माने से, जो पांच हजार रूपये तक का हो सकेगा, या दोनों से दंडनीय होगा।
अपराधी का संज्ञान
25. 1) दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 में किसी बात के होते हुए भी, इस अधिनियम के अधीन प्रत्येक अपराध संज्ञेय और जमानतीय होगा।
2) इस अधिनियम के अधीन किसी अपराध का किसी मजिस्ट्रेट द्वारा संक्षिप्त विचारण किया जायेगा।
अधिकारीयों का लोक सेवक होना
26. इस अधिनियम के अधीन कृत्यों को प्रयोग करने के लिए नियुक्त किए गये प्रत्येक अधिकारी या कर्मचारिवृन्द को, भारतीय दंड संहिता की धारा 21 के अंतर्गत लोक सेवक समझा जाएगा। 1860 का 45
27. किसी सिविल न्यायालय को ऐसे किसी मामले में अधिकारिता नहीं होगी, इसे इस अधिनियम का कोई उपबंध लागू होता है और किसी सिविल न्यायालय द्वारा ऐसी किसी बात की बाबत, जो इस अधिनियम द्वारा या उसके या उसके अधिन की गई है या किये जाने के लिए आशयित है, कोई व्यादेश नहीं दिया जायेगा।
सद्भावपूर्वक की गई कार्रवाई के लिए संरक्षण
28. इस अधिनियम या तद्धीन बनाये गये किन्हीं नियमों या आदेशों के अनुसरण में सद्भावपूर्वक की गई या की जाने के लिए आशयित किसी बात के संबंध में कोई भी वाद, अभियोजन या अन्य विधिक कार्यवाही, केंद्रीय सरकार, राज्य सरकारों या स्थानीय प्राधिकारी या उस सरकार के किसी अधिकारी के विरूद्ध न होगी।
29. यदि इस अधिनियम के उपबंधों को प्रभावी करने में कोई कठिनाई उत्पन्न होती है तो राज्य सरकार राजपत्र में प्रकाशित ऐसे आदेश हुए, जो इस अधिनियम के उपबंधों से असंगत न हो, ऐसे उपबंध बना सकेगी, उस उस कठिनाई को दूर करने के लिए उसे आवश्यक या समीचीन प्रतीत हों ।
परंतु ऐसा कोई आदेश इस अधिनियम के उपबंधों का निष्पादन करने के बारे में किसी राज्य सरकार को निर्देश दे सकेगी।
30. केन्द्रीय सरकार इस अधिनियम के उपबंधों का निष्पादन करने के बारे में किसी राज्य सरकार को निर्देश दे सकेगी।
31. केंद्रीय सरकार राज्य सरकारों द्वारा इस अधिनियम के उपबंधों के कार्यान्वयन किन प्रगति का कालिक पुनर्विलोकन और निगरानी कर सकेगी।
32. 1) राज्य सरकार राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, इस अधिनियम के प्रयोजनों को कार्यान्वित करने के लिए नियम बना सकेगी।
2) पूर्वगामी शक्ति की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, ऐसे नियम निम्नलिखित के लिए उपबंध कर सकेंगे।
क) ऐसे नियमों के अधीन रहते हुए, जो धारा 8 के उपधारा (1) के अधीन विहित किये जाएँ, धारा 5 के अधीन जाँच करने की रीति।
ख) धारा 8 की उपधारा (2) के अधीन अन्य प्रयोजनों के लिए अधिकरण की शक्ति और प्रक्रिया
ग) अधिकतम भरणपोषण भत्ता जो धारा 9 की उपधारा (2) के अधीन अधिकरण द्वारा आदेशित किया जाये।
घ) धारा 19 की उपधारा (2) के अधीन वृद्धाश्रम के प्रबंध के लिए स्कीम, जिसके अंतर्गत उनके द्वारा उपलब्ध कराई जाने वाली सेवाओं के मानक और विभिन्न प्रकार की सेवाएँ भी हैं, जो ऐसे आश्रमों के निवासियों की चिकित्सीय देख - रेख और मनोरंजन के साधनों के लिए आवश्यक है।
ङ) धारा 22 की उपधारा (1) के अधीन, इस अधिनियम के उपबंधों को को कार्यान्वित करने के लिए प्राधिकारियों की शक्तियाँ और कर्त्तव्य
च) धारा 22 के उपधारा (2) के अधीन वरिष्ठ नागरिकों के जीवन और संपत्ति को सुरक्षा प्रदान करने के लिए व्यापक कार्य योजना
छ) कोई अन्य विषय, जो विहित किया जाना हैं या विहित किया जाए।
(3) इस अधिनियम के अधीन बनाया गया प्रत्येक नियम, बनाये जाने के पश्चात्, यथाशीघ्र, विधानमंडल के प्रत्येक सदन के समक्ष, जहाँ वह दो सदनों से मिलकर बना हैं या जहाँ ऐसे विधान – मंडल में एक मदन है वहां उस सदन के समक्ष रखा जाएगा।
अंतिम बार संशोधित : 1/18/2024
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